अनिश्चय का मारा 20 देशों की दिवसीय वर्चुअल शिखर बैठक में


रविवार को संपन्न हुई जी-20 देशों की दो दिवसीय वर्चुअल शिखर बैठक में कोविड-19 महामारी का मुद्दा छाया रहा, जो स्वाभाविक है।

जो बात स्वाभाविक नहीं कही जा सकती वह यह कि इसी महामारी से पैदा हो रहे

वैश्विक मंदी के हालात को लेकर विश्व अर्थव्यवस्था के इस सबसे महत्वपूर्ण मंच पर अपेक्षित चर्चा नहीं हो पाई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के बाद की दुनिया को ध्यान में रखते हुए नया ग्लोबल इंडेक्स बनाने का आह्वान किया

जिसमें विस्तृत टैलंट पूल बनाने, समाज के हर तबके तक टेक्नॉलजी की पहुंच सुनिश्चित करने, शासन में पारदर्शिता लाने और धरती मां के साथ स्वामित्व के बजाय ट्रस्टीशिप का संबंध विकसित करने पर जोर हो।


दीर्घकालिक नजरिये से उनके इन सुझावों की अहमियत से शायद ही कोई इनकार करे, लेकिन स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जिन भीषण चुनौतियों से दुनिया जूझ रही है

, उन पर जी-20 देशों की तरफ से कोई ठोस पहल सामने न आना न केवल आश्चर्यजनक और काफी हद तक निराशाजनक है

बल्कि इसको इस प्रभावी वैश्विक मंच की एक नाकामी के ही रूप में दर्ज किया जाएगा। जी-7 भले ही दुनिया के सबसे अमीर और साधनसंपन्न देशों का समूह हो, पर उसका रेंज इस मायने में बहुत कम है

कि उसमें दिनोंदिन अधिक शक्तिशाली हो चली विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता।


इसके बरक्स जी-20 में दुनिया के कुल उत्पादन के 85 फीसदी हिस्से को कवर करने वाले तमाम बड़ी और मध्यम अर्थव्यवस्थाओं वाले देश शामिल हैं।

यही वजह है कि जब भी दुनिया किसी बड़ी चुनौती के रू-ब-रू होती है तो जी-20 से यह उम्मीद की जाती है

कि वह कोई एकीकृत रणनीति लेकर सामने आएगा। 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान इस मंच ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई थी।

इस बार तो दुनिया महामारी और आर्थिक संकट की दोहरी चुनौती से गुजर रही है। कोरोना के चलते पूरी दुनिया में 14 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कह चुका है कि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4.4 फीसदी की गिरावट आने वाली है।
विश्व बैंक ने आगाह किया है कि कोरोना महामारी के चलते 10 करोड़ लोग भीषण गरीबी में धकेले जा सकते हैं।

बावजूद इसके, जी-20 के देश सहयोग और सामंजस्य की सामान्य अपीलों से आगे नहीं बढ़ सके। हालांकि इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह जी-20 के सामूहिक विवेक पर नहीं डाली जा सकती।

इस अनिश्चय के पीछे काफी बड़ी भूमिका अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के असहयोग की भी है जो अपने पूरे कार्यकाल के दौरान तमाम अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संस्थाओं के प्रति असम्मान प्रदर्शित करते रहे हैं।


जी-20 की बैठक के दौरान भी इसके कुछ कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करने के बजाय गोल्फ खेलते हुए अपना समय बिताना उन्हें ज्यादा जरूरी लगा। देखना होगा

कि अगले साल जनवरी में नए राष्ट्रपति जो बाइडन के सत्ता संभालने के बाद अमेरिकी रुख में कैसा और कितना बदलाव आता है।

हालांकि यह सकारात्मक हो तो भी संकट से एकदिश होकर निपटने वाली बड़ी पहलकदमियां जी-20 जैसे मंचों के जरिये ही ली जा सकेंगी।

Like us share us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *