इस मुद्दे पर पूर्व लिखी खबर नीचे लिंक मे है
एडीएम एफआर के स्थानांतरण की लिस्ट तस्वीर मे
@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।
अरुणेश की मधुशाला,हरितपट्टी पर ज़मीन का घोटाला,अफसर की पत्नी संग नर्सिंग होम का कारोबार,पोल खुली तो शासन ने पहना दी एडीएम राजेश को विदाई की माला….!
- सूचना संसार ने इस मामलें पर लगातार तथ्यात्मक 3 रिपोर्ट की थी यह चौथी है। बावजूद इसके हम खबर का असर जैसा पब्लिक स्टंट शब्द नही बोलेंगे।
- बाँदा के एडीएम वित्त एवं राजस्व राजेश कुमार वर्मा (पटेल) जी का मीडिया की खबरों से ऐसा खुलासा हुआ कि वे उत्तरप्रदेश सरकार के लिए प्रश्नचिन्ह बन चुके है।
- बाबू शिवकृष्ण प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के तले संचालित शिवकृष्ण मल्टीस्पेशलिटी निजी नर्सिंग होम / शिवकृष्ण डायग्नोस्टिक सेंटर इनसे एडीएम एफआर की धर्मपत्नी सोनी वर्मा के व्यापारिक रिश्ते से शासन की किरकिरी हुई।
- मुख्यमंत्री योगी जी व्यक्तिगत ईमानदार हस्ती है इसके चलते शासन ने फिलहाल एडीएम एफआर बाँदा राजेश कुमार को सहकारी चीनी मिल संघ का प्रधान प्रबंधक नियुक्त किया है।
- बाँदा की यह तबादला एक्सप्रेस उन भ्रस्ट अफसरों के लिए सबक है जो पद और पावर को अफसरशाही का पर्याय समझ बैठें है।
- बाँदा के दो एडीएम वित्त एवं राजस्व क्रमशः पूर्व मे दयाशंकर पांडेय और अब पीसीएस राजेश कुमार ने यूपी सरकार की भद्द पिटवा दी है पर मुख्यमंत्री चुप !!!
बाँदा। यूपी के चित्रकूट मंडल के ज़िला बाँदा मे ब्यूरोक्रेसी को लेकर जनता मे एक आम अवधारणा है कि शासन से यहां अफसरों को काला पानी की सजा के तौर पर भेजा जाता है। बावजूद इसके ऋषि बामदेव की नगरी का ऐसा प्रताप इन आला अफसरों को मिलता है कि जो एक बार आ गया वो जाने का नाम नही लेता है। इसमे डाक्टर से लेकर अधिकारी तक शामिल है। कुछ सरकारी डाक्टर तो ऐसे है जिन्होंने ट्रांसफर मे बाँदा नौकरी की और यहां की कमाई/ मलाई देखकर यहीं के होकर रह गए। सरकारी नौकरी से वीआरएस लिया फिर निजी नर्सिंग होम डाल दिया। मसलन डाक्टर नरेंद्र गुप्ता, डाक्टर मनोरमा, डाक्टर बीके पटेल आदि। कुछ सरकारी डाक्टर ऐसे है जो सेवानिवृत्त के बाद निजी प्रैक्टिस कर रहें है जैसे डाक्टर केशव गुप्ता। वहीं कुछ नौकरी करते घर पर देखते है जैसे डाक्टर करन राजपूत।
बाँदा मे बहुत से निजी नर्सिंग होम खोलकर चिकित्सा कारोबार को कमाई का जरिया बना चुके हैं। आवास-विकास बी ब्लाक तो दवा और चिकित्सा माफियाओं का कुनबा ही तैयार कराने लगा है। खैरमकदम मूल खबर पर आते है कि बाँदा के एडीएम वित्त और राजस्व राजेश कुमार वर्मा (पटेल) जी का तबादला हो गया है। वे अब सहकारी चीनी मिल संघ के प्रधान प्रबंधक होंगे। इसी पद पर तैनात कुमार धर्मेंद्र नवनियुक्त एडीएम एफआर होंगे। उत्तरप्रदेश सरकार ने बीते सोमवार 21 पीसीएस अफसरों के ट्रांसफर किये है। उनमें सर्वाधिक चर्चा बाँदा अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व राजेश कुमार जी की है और होनी भी चाहिए। क्योंकि उन्होंने चमत्कार ही ऐसा किया है कि जिस बाँदा मे वो कभी सिटी मजिस्ट्रेट हुआ करते थे तत्कालीन डीएम अमित सिंह बंसल जी के वक्त। आज उसी ज़िले के अपर जिलाधिकारी एफआर बनकर कार्यरत थे। किन्तु उन्होंने यहां सिटी मजिस्ट्रेट फिर एडीएम एफआर होने से तक सजातीय नातेदारी / जातिवाद का ऐसा तालमेल बिठाया कि बबेरू एसडीएम रजत वर्मा (पटेल) से उनके अच्छे संबंध बने। वहीं भ्रस्टाचार को लेकर मशहूर चिकित्सा कारोबारी शिक्षा से इंजीनियरिंग पढ़े अरुणेश सिंह पटेल के साथ ऐसी मित्रता बनी कि ब्यूरोक्रेटस और चिकित्सा कारोबारी ने सरकारी व्यवस्था को करप्ट करने के बड़े मापदंड तक बौने कर दिए।
अरुणेश पटेल के निजी नर्सिंग होम मे एडीएम एफआर की धर्मपत्नी हिस्सेदार-
उत्तरप्रदेश शासन की छवि तब ज्यादा धूमिल होने लगी जब रीढ़ की हड्डी बचाये स्थानीय मीडिया के कुछ जुनूनी / खांटी पत्रकार इस वित्तीय व हरित पट्टी के घोटाले पर मुखरता से खबर लिखने लगे। मजबूरन अरुणेश सिंह पटेल को 23 जुलाई मे सार्वजनिक प्रेसवार्ता करनी पड़ी। हो सकता है ऐसा करने को उक्त अफसर ने इशारा किया हो जिससे बाँदा की खबरिया मंडी का जनज्वार थम सके। इस प्रेसवार्ता मे अरुणेश पटेल ने मीडिया की वायरल खबरों पर गुस्सा जाहिर करते हुए पहले हरिश्चन्द्र बनने की कवायद कर डाली। लेकिन जब पत्रकारों ने उन्हें सवालों से घेर लिया तो बन्द बोतल का रहा-सहा जिन्न पूरी तरह बेनकाब हो गया। उन्होंने खुद एडीएम एफआर से व्यक्तिगत नजदीकी होने की बातें स्वीकार की परंतु मीडिया को वो बात हजम नही हो रही जब अरुणेश पटेल एडीएम एफआर राजेश कुमार से अपनी बचपन की यारी अर्थात लंगोटिया यार होने का दावा कर दिए।
बैरहाल इस बचपन की यारी के ‘कच्चा बदाम’ का वे कोई सबूत नही दे सके। लेकिन हां सोशल मीडिया मे एडीएम एफआर राजेश कुमार और अरुणेश जी की बन्द गाड़ी मे बोतल दिखाती मधुशाला ने ज़िले की आबोहवा मदहोश कर दी। जनता ने खाशकर युवाओं ने सोशल मीडिया पर तंज करते हुए हर तरह की बातें उठाई। बतलाते चले कि बाबू शिवकृष्ण प्राइवेट लिमिटेड के बैनर से शहर के मेडिकल कालेज मार्ग पर चले रहे नर्सिंग होम की बुनियाद हरित पट्टी पर रखी गई थी। निर्माण होते दरम्यान तत्कालीन डीएम बाँदा अमित सिंह बंसल ने इसको लाल फीते से बीडीए द्वारा सीलबंद कराया था। इसमे बिना कमर्शियल नक्शा व एनओसी के बेसमेंट सहित तीन मंजिल ऊपरी निर्माण हुआ है। वहीं इसके साथ ही बाँदा-झांसी मार्ग रोडवेज के पास निर्मित डाक्टर नरेन्द्र गुप्ता का निजी नर्सिंग होम स्टेट हाइवे पर बिना नक्शा बेसमेंट सहित बहुमंजिला बन रहा था। इसको भी सीलबंद किया गया था। मगर राजनीतिक मगरमच्छों ने तत्कालीन डीएम अमित सिंह बंसल का यहां से ट्रांसफर कराया और सजातीय डीएम अनुराग पटेल संग अरुणेश पटेल संग पूर्व सांसद आरके पटेल हो गया। फिर क्या था तड़ातड़ सारे दस्तावेज से फेरबदल हुआ। अरुणेश का यह भी दावा है कि उन्होंने मंडल आयुक्त / कमिश्नर कोर्ट से मुकदमा जीत लिया था। वो चाहते तो प्रेसवार्ता मे जन मीडिया को कोर्ट आदेश की प्रतिलिपि बांट देते। खैर ग्रीननलैंड पर उसी सीज करने वाले बीडीएड ने व्यावसायिक भूखण्ड निर्माण निकाल दिया। साथ मे राजा पैलेस तक यह सुविधा सड़क के दोनों तरफ 1200 लोगों की आपत्ति लेकर कर डाली। जाहिर है जिन किसान के खेत, व्यक्तियों के भूखण्ड हरित पट्टी से प्रभावित हो रहे होंगे वो क्यों न आपत्ति हस्ताक्षर पत्र बीडीए को देंगे ? भैया जल्दी से इसको व्यावसायिक कर दो हम सबका भला हो जाएगा….अधिकारियों का राम भला करेंगे।
नरैनी के शिवकृष्ण डायग्नोस्टिक सेंटर मे ब्यूरोक्रेटस की पत्नी ने ली इंट्री व पार्टनरशिप –
बाँदा एडीएम एफआर राजेश कुमार की धर्मपत्नी श्रीमती सोनी वर्मा एवं अरुणेश पटेल की पत्नी डाक्टर संगीता भारती उक्त शिवकृष्ण डायग्नोस्टिक सेंटर मे हिस्सेदारी लिए है। दो अन्य पार्टनर भी है जो अरुणेश के अति विश्वासी है। या यूं कहें कि अरुणेश चालीसा के अनन्य भक्त है। एडीएम एफआर साहब की पत्नी जी 30 फीसदी की हिस्सेदार है। यह पांच पेज की डीड्स जनता के सामने आ गई। मीडिया की छीछालेदर से गन्ध मच गई और शासन को एडीएम एफआर राजेश कुमार का ट्रांसफर करना पड़ा। यह न भी होता लेकिन दोनों पटेलवाद बन्दों की गोपनीयता भंग करती दर्जन भर तस्वीर मीडिया के हाथ लग चुकी है। यह अलग बात है कि बाँदा प्रशासन पर शर्म की चादर इतनी गहरी है कि उन्हें जनता या शासन या मीडिया मे चल रही चर्चाओं की कोई फिक्र नही है।
क्या मुख्यमंत्री योगी इस मसले की जांच कराने का नैतिक कर्तव्य निभाएंगे-
जनता और जन मीडिया दोनों सवाल पूछते है कि पूर्व एडीएम एफआर रहे दयाशंकर पांडेय ने बाँदा की जनता के विस्वास को जैसे डाक्टर नंदलाल शुक्ला के साथ मिलकर डिग्री कालेज मामलें मे रौंद डाला था। क्या इस बार भी यह एडीएम एफआर राजेश कुमार संग अरुणेश पटेल को लाभार्जन कराती करतूतों पर मुख्यमंत्री योगी जी / यूपी शासन चुप्पी साध लेगा ? क्या श्रीराम के अनुयायियों मे इतना भी नैतिक बल व कर्तव्यनिष्ठता का कृतसंकल्प नही जीवित रहा कि केन नदी की लज्जा भंग करते माफियाओं को सबक सिखाने वाली सरकार चाटूकारों से लैस अफसरों व उनके कारनामों पर मौन व्रत तोड़ सके ? आशान्वित है कि कार्यवाही होगी और नही भी हुई तो भ्रष्टाचार का इतिहास पलटते वक्त बाँदा के रहवासियों को एडीएम एफआर राजेश कुमार व अरुणेश पटेल यकीनन याद आएंगे।