तालाबों पर लिखी पूर्व खबर नीचे लिंक मे पढ़ सकते है –
@आशीष सागर दीक्षित,बाँदा ।
- सवाल ये है कि नदियों मे पूजन सामग्री, प्लास्टिक कचरा, सीवेज, मलमूत्र अपशिष्ट का तो एक बहाना है कि यह बहते पानी मे चला जायेगा। बरसात मे नदी सफाई कर लेती है। लेकिन तालाबों मे जो इस तरह का कुकृत्य कर रहें है वे यह बतलाए कि क्या तालाब नदी है या उसमे आपका जनित अपशिष्ट कैसे खत्म होगा ? यह आपकी आस्था है या तालाबों और नदियों को दूषित करने का आधुनिक मनोयोग / हठधर्मिता है। क्या सरकार इसके लिए ज़िम्मेदार है ?
महोबा। ये महोबा का कीरत सागर तालाब है। वही ऐतिहासिक तालाब जिसको बड़ी शिद्दत से चन्देलों ने वीरभूमि महोबा मे पुरुसार्थ से बनाया था। प्राचीन जलस्रोतों का पारस कीरत सागर तालाब झील से कमतर नही है। इतिहास कहता है कि इसी तालाब मे 11वीं-12वीं शताब्दी के दरम्यान दुर्लभ पारसमणि ने जलसमाधि ली थी। वो पारस मणि जो लोहे को स्पर्श मात्र से सोना करती थी। महोबा की स्थानीय भाषा मे लोग इसको पारस पथरिया कहते थे। स्थानीय बाशिंदों के अनुसार यह पारस मणि सिर्फ चंदेल राजाओं के पास ही थी।
कुछ लोग इस किवदंती को मिथक भी मानते है लेकिन विश्वास पर आस्था और उम्मीद टिकी होती है। इतिहास के पन्ने जानकारी देते है कि चंदेल राजा परमाल के सेनापति आल्हा ऊदल ने इसी कीरत सागर झील के एक किलोमीटर लंबे तट पर भुजरियन की लड़ाई मे राजकुमारी चंद्रावल को अगवा कर ले जा रही दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान तृतीय की सेना को सन् 1182 मे हराया था। यह भुजरिया गेहूं के उस बीज को कहते है जिसे अपने खेत की माटी व गेहूं के अपने बीज का परीक्षण करने के लिए हम बुंदेले एक कच्ची मिट्टी के बर्तन मे श्रावण मास की अमावस्या को डालते है। फिर श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबंधन के दिन बीज से निकली करीब 1 से 5 फुट बड़ी बाली को सरोवर मे विसर्जित करते है। इस बाली को ही भुजरिया अथवा कजली कहते है। कुछ लोग इसको ज्वारे भी बोलते है।
गौरतलब है कि भुजरिया की लंबाई अच्छी हो गई तो फसल अच्छी होना तय माना जाता है। इन्हीं भुजरियों को विसर्जित करने के लिए 1182 मे रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी चंद्रावल अपनी सखियों के साथ कीरत सागर झील के तट पर गई थी तभी पृथ्वीराज चौहान की सेना ने हमला कर उसे अगवा करने की कोशिश की लेकिन वीर आल्हा ऊदल ने पृथ्वीराज की सेना को खदेड़कर चंद्रावल को बचा लिया। चूंकि रक्षाबंधन के दिन यहां लड़ाई चल रही थी, नगर का माहौल तनावपूर्ण था इसलिए महोबा की बहनें अपने भाइयों को उस दिन राखी नहीं बांधतीं है। यहां अगले दिन विजय पर्व मनाने के बाद ही भाइयों को राखी बांधने का रिवाज है।
यह परंपरा यहां आज भी कायम है। रक्षाबंधन के अगले दिन महोबा मे विशाल विजय जुलूस निकाला जाता है जो हवेली दरवाजा शहीद मैदान से शुरू होकर कीरत सागर झील के तट पर समाप्त होता है। इस लोकाचार मे पूरे नगर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। प्रशासन पूरी चाक चौबंद व्यवस्था करता है। राज्य सरकार इस कजली मेले को प्रांतीय उत्सव का दर्जा दे चुकी है। वहीं सन 1060-1090 के मध्य कीर्ति वर्मन द्वारा चंदनौर नदी पर बांध बनवाकर निर्मित की गई कीरत सागर झील के तट पर आज बड़ा विशाल मेला लगता है। लगातार एक हफ्ते तक महोबा कजली उत्सव चलता है।
महोबा के पत्रकार व महोबा न्यूज के संपादक अनुज शर्मा बतलाते है कि हाल ही मे महोबा डीएम गजल भारद्वाज भी कीरत सागर झील को देखने पहुंचीं थी। उन्होंने इसकी निर्मलता का जायजा लिया था। बतलाते है कि सन् 1182 मे महोबा मे मिली हार से बौखलाए पृथ्वीराज चौहान ने महोबा के राजा से बदला लेने के लिए कुछ महीने बाद सवा लाख सैनिकों की विशाल सेना भेजी और उरई के पास बैरागढ़ मे डेरा डालकर राजा परमाल से राजकुमारी चंद्रावल, पारसमणि व नौलखा हार देने की मांग की थी। जिसे राजा परमाल ने ठुकरा दिया और युद्ध के लिए तैयार हो गये थे। उन्होंने पारसमणि को कीरत सागर झील मे फिंकवा दिया ताकि वो पृथ्वीराज के हाथ न लग जाए। यह पारस मणि आज तक किसी को मिली नही। इसी कीरत सागर के आज आपको हलात दिखाते है। यह भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीनस्थ है। इसकी देखरेख पर केंद्र व राज्य सरकार विशेष ध्यान देती है। आते-जाते जिलाधिकारी भी इसको सुरक्षित करने का जतन करतें है।
लेकिन लोकल रहवासियों की तालाबों के प्रति उपभोग वादी मानसिकता और तालाबों, नदियों को कूड़ादान बनाने की आदत ने आज कीरत सागर को कुछ इस तरह बदरंग कर दिया है। समाज को सरकार के बजट खर्च और महोबा के शौर्य गाथा की पहचान दिलाते कीरत सागर झील व तालाब की तनिक फिक्र नही है। उल्लेखनीय है महोबा मे मदन सागर की भी ऐसी ही करुण व्यथा कथा है। उसके गर्भगृह पर बना ऐतिहासिक खकरा मठ शिवालय जर्जर है। तालाब मे बना दो साल पहले का फाइबर फ्लोटिंग पुल नदारद है और मदन सागर अपने अतिक्रमण पर बेहिसाब आंसू बहाता है।
उल्लेखनीय है इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्राम सभा मे मौजूद पिछले 20 साल के तालाबों का भू-राजस्व रिकार्ड बुंदेलखंड के सातों जिलाधिकारी से 17 सितंबर तक तलब किया है। अनुमान मुताबिक बुंदेलखंड मे 2450 तालाब नदारद है। लेकिन इसका स्याह सच बेहद कड़वा है क्योंकि अर्थ एवं संख्या विभाग के सर्वेक्षण मुताबिक अकेले बाँदा मे ही साल 2006 तक 4045 तालाब थे जिसमें 3602 तालाब गायब हो चुके है। तब बुंदेलखंड के सात जनपदों का हिसाबकिताब आप ही लगा लिनिये। अलबत्ता हाईकोर्ट की यह पहल नेककदम है। तब जबकिं कीरत,मदन,जय और विजय सागर जैसे महोबा के तालाब दफन हो रहें है। बाँदा के तालाब भूमाफिया बेंच रहें है। चित्रकूट का कोठी और गणेश तालाब अंतिम अवसान पर है। झांसी के लक्ष्मी तालाब मे आवासीय कालोनी बन चुकी है। इसके उलट प्रशासन यहां हर ज़िले मे नए तालाब बनवाने और पुराने को बचाने का करतब करती रहती है। आपके आसपास बदहाल, खुशहाल तालाबों पर फिर रूबरू होंगे…।