इस प्रकरण से जुड़ी खबर भड़ास मीडिया पोर्टल पर भी नीचे लिंक मे पढ़े-
https://www.bhadas4media.com/suchna-ayukt-nadeem-ka-ahankar/
@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।
- विगत 23 अप्रैल 2025 को लखनऊ के राज्य सूचना आयोग भवन मे नियुक्त मोहम्मद नदीम की तरफ से पेशी दरम्यान अधिवक्ता दीपक शुक्ला के द्वारा नोकझोंक / जूता फेंकने का आरोप लगा था।
- लोकसेवक के साथ अभद्रता, सरकारी काम मे बाधा व अन्य धाराओं मे मुकदमा लिखाकर सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम ने प्रयागराज के अधिवक्ता / सूचना अधिकार कार्यकर्ता दीपक शुक्ला को जेल भिजवा दिया।
- अधिवक्ता दीपक शुक्ला की पूर्व सूचना आयुक्त अजय कुमार उप्रेती से भी विवाद हुआ था।
- अपील आवेदन कर्त्ता व अधिवक्ता ने सूचना आयुक्त की निष्पक्षता पर सवाल किए थे।
- पेशे से पूर्व दैनिक जागरण व नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार रहे वर्तमान सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम ने सोशल मीडिया पर आयोग मे लंबित सर्वाधिक 84 अपीलकर्ताओं की सूची डालकर उन्हें ब्लैकमेलर / वसूलीबाज लिखा / लिखवाया।
- अधिवक्ता दीपक शुक्ला बीते 28 अप्रैल को जमानत पर छूट गए है।
- आक्रोशित अधिवक्ता समूह ने सूचना आयुक्त का प्रतीकात्मक पुतला दहन किया।
बाँदा /लखनऊ/प्रयागराज। उत्तरप्रदेश राज्य सूचना आयोग के सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम इस वक्त अपनी हठधर्मिता / तानाशाही को लेकर विवादित है। सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम पूर्व पत्रकार रहे है। उत्तरप्रदेश सरकार से उनकी घनिष्ठता के क्रम मे वे वर्ष 2024 मे सूचना आयुक्त बने। पत्रकार कोटे से उनके साथ अन्य व्यक्तियों को भी राज्य सूचना आयुक्त बनाया गया। इस घटनाक्रम के पीछे मोहम्मद नदीम का 23 अप्रैल को अपीलकर्ता व प्रयागराज अधिवक्ता दीपक शुक्ला से बहसाबहसी और विवाद उभरकर सामने आया। सुनवाई दरम्यान मानसिक असंतुलन खो बैठे या सूचना आयुक्त से असंतुष्ट अधिवक्ता ने नोकझोंक की थी।
इस क्रम मे मोहम्मद नदीम ने उनपर जूता फेंककर मारने का आरोप लगाया। सम्भव है उसका सीसीटीवी फुटेज भी होगा। सूचना संसार इस कथन की पुष्टि नही करता है। अखबारों, न्यूज़ चैनलों पर यह खबर चली। उधर अधिवक्ता दीपक शुक्ला लोकसेवक पर हमला, सरकारी काम मे बाधा व अन्य धाराओं पर जेल चले गए। इधर तानाशाही पर उतरे सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम ने अपने फेसबुक अकाउंट / एक्स प्लेटफार्म पर लगातार दो दिन प्रदेशभर के आरटीआई कार्यकर्ता को निशाने पर लिया। उन्होंने रॉबिनहुड की तर्ज पर स्वयं अमर्यादित पोस्ट की एवं अपने पत्रकारिक सहयोगियों से साझा कराई। वहीं सूचना आयोग मे सर्वाधिक लंबित 84 लोगों की द्वितीय अपील लिस्ट को सार्वजनिक करके पब्लिक डोमेन सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। उल्लेखनीय है कि मोहम्मद नदीम ने बतौर लोकसेवक, सूचना आयुक्त रहते हुए आरटीआई कार्यकर्ता को ब्लैकमेलर व वसूलीबाज जैसे शब्दों से सुशोभित किया। इससे पत्रकारिक जींवन / सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं मे आक्रोश पनपा। मोहम्मद नदीम से विवाद मे जेल गए अधिवक्ता दीपक शुक्ला महज 7 दिन बाद जमानत पर छूट गए है। वहीं अधिवक्ता वर्ग मोहम्मद नदीम से असंतुष्ट है।
मोहम्मद नदीम का पुतला फूंका गया-
अधिवक्ता समूह ने बीते 28 अप्रैल को सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम का पुतला दहन किया है। वहीं सूचना अधिकार कानून 2005 की प्रदेशभर मे अपंगता, लोकसेवक / लोकसूचना प्रदाता की दुर्दशा, जनसूचना अधिकारीयों की हिटलरशाही पर चर्च गर्म है। देशभर मे दर्जनों सूचना अधिकार कार्यकर्ता मारे जा चुके है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद उन्हें लोकसेवक कोई सुरक्षा नही देते है। व्हिसिल ब्लोअर व पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने मोहम्मद नदीम को लीगल नोटिस देकर जवाब मांगा है। 84 लोगों की सूची मे जेल गए अधिवक्ता दीपक शुक्ला के साथ अमिताभ ठाकुर का भी नाम शामिल था। उन्होंने पूछा है कि 84 लोगो की लिस्ट सार्वजनिक क्यों की गई ? उन्हें ब्लैकमेलर / वसूली बाज बिना तथ्यों के सोशल मीडिया पर क्यों कहा गया ? वहीं पत्रकार पूछ रहे कि क्या कोई ईमानदारी वाला लोकसेवक ब्लैकमेल होता है ? भ्रष्टाचार मे संलिप्त अधिकारी, कमर्चारियों को ही ब्लैकमेल होने का खतरा क्यों है ? फिलहाल कभी दैनिक जागरण व नवभारत टाइम्स अखबार से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार रहे मोहम्मद नदीम आज भले ही सूचना मांगने को ब्लैकमेल पेशा कहने लगे लेकिन उन्हें भी इस संघर्ष से गुजरना पड़ा है।
खबरों मे आंकड़ों, तथ्यों की क्या अहमियत है यह वे बखूबी समझते है। खाशकर जब भ्रष्टाचार की जांच या गोपनीय दस्तावेज दबाए जाते हो। इनसे से जुड़े मामले की पड़ताल की जा रही हो तब जनसूचना ही जनता का लोकतांत्रिक औजार है।