- विधानसभा के सामने पहुंचकर लगाई न्याय की गुहार, बाँदा मे फैला पुलिसिया अत्याचार।
- तीन मुकदमों मे नामजद बाहुबली और डकैती कोर्ट से एनबीडब्ल्यू वारंटी राजाभैया यादव व उसके सहयोगियों को मिला खाकी का साथ।
बाँदा। बुंदेलखंड के बाँदा मे इन दिनों पुलिस अधिकारियों के लिए अतर्रा निवासी राजाभैया यादव अनबूझ पहेली बन चुका है। उसका प्रभाव ऐसा कि तीन संगीन अपराध मे नामजद अभियुक्त को पुलिस गिरफ्तार करना तो दूर बल्कि पीड़ितों के विरुद्ध ही अभियुक्त के चिंगारी संगठन से प्रदर्शन का दंश दिला रही है। बेखौफ राजाभैया यादव सजातीय आईओ / क्षेत्राधिकारी अतर्रा श्री प्रवीण यादव के वरदहस्त से पूरा थाना साधे है।
अभियुक्त का मनोबल इतना कि स्वयं फरारी काटकर कथित चिंगारी से जुड़ी गांव की कम पढ़ीलिखी महिलाओं की भीड़ को आगे करके पुलिस अधिकारियों के बीच माहौल और दबाव बनाने का षड़यंत्र लगातार कर रहा है। इधर बीते 5 दिसंबर से पुलिसिया न्याय को तरसती दो महिलाओं की आपबीती 20 फरवरी दिन गुरुवार को प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंच गई। बतलाते चले कि दर-दर भटककर गत 4 फरवरी से 18 फरवरी तक अनशन फिर भूखहड़ताल पर बैठी एक दलित महिला व राजपूत महिला ने आखिरकार विधानसभा के सामने साहसिक कदम उठाया।
उन्होंने अनशन के बैनर को हाथ मे लेकर अपनी आवाज बुलंद की लेकिन विधानसभा बजट सत्र के मद्देनजर भारी पुलिस बल वहां मौजूद था। अलबत्ता किसी अनहोनी को भांपकर मौके पर डटी पुलिस ने दोनों महिलाओं को पकड़ लिया। उन्होंने रोते-चित्कारते अपनी व्यथा सुनाई। वहीं लखनऊ के आला अफसरों ने बाँदा पुलिस को जानकारी दी है। आनन फानन मे बाँदा पुलिस राजधानी लखनऊ पहुंची और उक्त दोनों महिलाओं को अपने संरक्षण मे लिया है।
बाँदा के प्रमुख दैनिक अखबार अमर उजाला की खबर अनुसार इन दोनों महिलाओं ने 18 फरवरी को करुणा से भरा अपना अंतिम पत्र बाँदा पुलिस अधिकारी को दिया था। उन्होंने सिलसिले वार अपनी बात लिखी और अतर्रा आईओ पर पक्षपाती बर्ताव के आरोप लगाएं है। उन्होंने अभियुक्त राजाभैया यादव और सजातीय आईओ क्षेत्राधिकारी प्रवीण कुमार यादव- दलित महिला के विवेचक व एसआई काशीनाथ यादव ( राजपूत महिला के विवेचक ) पर दुर्भाग्यपूर्ण लचर कार्यवाही और आईजीआरएस पर की गई शिकायत पत्रों को आरोपी के ही बयान लेकर निस्तारण की बात भी लिखी है। देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश तक भेजे गए इस प्रार्थना पत्र पर मर्माहत करने वाली बातें है।
गौरतलब है कि 70 दिन से स्थानीय और शीर्ष अधिकारियों के बीच अपने साथ हुए उत्पीड़न की इबारत सुनाती दोनों महिलाओं ने विद्याधाम समिति और चिंगारी पर इससे पूर्व भी एक लड़की के यौन शोषण मामले को उजागर किया है। उन्होंने दावा किया कि खौफ मे दबी कई महिलाओं को आवाज उठाने से पहले ही चरित्र हनन करके राजाभैया यादव और उसका सिंडिकेट / संगठन नौकरी से निकाल देता है। फिर थाने और प्रशासनिक अफसरों को प्रभाव मे लेने को धरना प्रदर्शन करवाया जाता है।
काबिलेगौर बात है कि आधा दर्जन मुकदमे अभियुक्त पर है लेकिन पुलिस खासमखास है। वहीं करोड़ों रुपया एनजीओ से विदेशी फंडिंग लेने वाले इस सख्स के तार और नेटवर्क ज़िले के सफेदपोश लोगों, अन्य एनजीओ संचालन कर्ताओं व फर्जी मुकदमे मे अभ्यस्त उन महिलाओं से जुड़े है जो इसका खुलासा करने वालों को निशाना बनाती है। लखनऊ विधानसभा बजट सत्र की गर्माहट के मध्य बाँदा की दोनों महिलाओं का यह कदम स्थानीय प्रशासन के लिए न्याय संगत संदेश साबित हो सकता है।