यहां पटेलवाद और ब्राह्मणत्व दोनों राजनैतिक "सिलेक्टिव एजेंडा" की चालबाजी है, ये बाँदा की विडंबना है कि इस घटिया राजनीति पर गोदी मीडिया राजी है... | Soochana Sansar

यहां पटेलवाद और ब्राह्मणत्व दोनों राजनैतिक “सिलेक्टिव एजेंडा” की चालबाजी है, ये बाँदा की विडंबना है कि इस घटिया राजनीति पर गोदी मीडिया राजी है…

@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।

  • ब्राह्मण को जेल भिजवाने मे नेत्री शालनी पटेल का भी हाथ रहा था। 31 मई 2022 को चिंगारी संगठन की साज़िशकर्ता महिलाओं के साथ आन कैमरा मीडिया शालनी पटेल ने बोला था आशीष सागर को पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए।
  • आज जब ब्राह्मण पत्रकार न्यायालय से दोषमुक्त हुआ तो भी पटेल नेत्री या ब्राह्मण माननीय के मुंह से एक शब्द नही निकला कि यह साज़िश गलत हुई थी। निकलता भी कैसे जब दोनों दोनों जन चिंगारी से कनेक्ट हो। मंचो की तस्वीर गवाह है उन्हें कौन झुठलाया सकता है ?
  • बबेरू से लेकर बाँदा और नरैनी तक कितने पटेलों के साथ दिखीं है नेत्री जी ? क्या राजनीति महज मीडिया चर्चा की पाठशाला है या जनसेवा है ?
  • सदर विधायक का बबेरू ब्राम्हणत्व सवर्ण परिवार के मकान पर बुलडोजर से नही उपजा है बल्कि यह ब्राह्मणवाद सुनील पटेल से अभिप्रेरित है।
  • जब शहर के आधा दर्जन ब्राह्मण पत्रकार मिथ्या मुकदमों से जेल गए थे। तब ब्राह्मणवाद कहां था और कहां थे ब्राह्मण वोटों के जातीय ठेकेदार ?
  • जब एक ब्राह्मण जनसेवी/ पत्रकार की बुजुर्ग माताजी बेटे को झूठी एफआईआर से बचाने को तत्कालीन एसपी कार्यालय मे गुहार लगा रहीं थी तब पटेल और ब्राह्मण दोनों राजनीतिक नेता/ नेत्री कहां थी ?
  • अमन त्रिपाठी हत्याकांड से लेकर नरैनी के विकलांग ब्राह्मण परिवार की दुर्दशा तक किसी माननीय का ब्राह्मणवाद उबाल नही मारा क्योंकि उससे व्यक्तिगत राजनीति प्रभावित नही थी।
  • बाँदा ज़िला उद्योग संस्थान मे सर्वेश दीक्षित नाम के अधिकारी को सिर्फ इसलिए फंसाया गया क्योंकि ज़िला उद्योग मे प्लाटिंग के भूखण्ड उन्होंने सत्तारूढ़ नेताओं को देने से इंकार कर दिया था।
  • यदि ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल बनाम सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी नही होता तो बबेरू के असहाय ब्राह्मण परिवार पर बुलडोजर की गाज से उपजी ब्राह्मण पीड़ा सियासत के आभामंडल पर नजर नही आती। बल्कि वह उत्पीड़न के क्षितिज पर बैठकर बेबसी का करुण विलाप कर रही होती।
  • ये मामला खनिज तहबाजारी ठेके से 6.21 करोड़ रुपये की अवैध वसूली बनाम 120 करोड़ रुपया के आरोप पर केंद्रित है इसलिए बबेरू के ब्राह्मण परिवार से पटेल वर्सेज ब्राह्मण का सुदर्शन घूम रहा है।
  • बबेरू के ब्राम्हण परिवार का घर सहकारी समिति के पुनर्निर्माण को तोड़ा गया लेकिन क्या एसडीएम बबेरू रजत वर्मा ने लेखपाल से दस्तावेज का सत्यापन कराया है ? लेखपाल राजनीति से प्रेरित नही हो सकता इसकी गारंटी कौन लेगा ?
  • कुछ पत्रकार जिस तर्ज पर पटेल ज़िला पंचायत अध्यक्ष को घेरकर ब्राह्मण माननीय की बैसाखी बनें है जैसा वे अक्सर करतें है। उन्हें अपने मृत ज़मीर को पत्रकारिता के संदर्भ मे ज़िंदा रखने के लिए निष्पक्षता की संजीवनी अवश्य पिलानी चाहिए। क्योंकि यह लोकतंत्र एवं समाज दोनों के लिए सत्य को स्थापित करना होगा। यही पत्रकारिता का कर्मपथ है। कृपया पत्रकारिता की लज्जाभंग तो न ही करिये।

बाँदा। ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल और सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी जी की सियासी नूराकुश्ती मे आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगी है। ऐसा लगता है बाँदा मे बीजेपी के अंदरखाने मे दो नेताओं ने एकदूसरे को नीचा दिखाने का सावन माह चला रखा है। अब यह चातुर्मास होगा या पार्टी मे मीटिंग कराकर आपसी सुलह पर निपट जाएगा यह तो वक्त की करवट पर निश्चित होगा। इधर बीते शनिवार को सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी जी बबेरू विकासखंड पहुंचे थे। उनके साथ उनके अति करीबी मीडियाधर्मी भी थे। सदर विधायक ने वहां एक ब्राह्मण परिवार के घर पर एसडीएम रजत वर्मा द्वारा बुलडोजर चलाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है। माननीय सदर विधायक ने मौके से जनता के सामने एसडीएम रजत वर्मा को अपने ठेठ अंदाज मे खरीखोटी सुनाई।

सदर विधायक ने कहा वहीं आकर ठीक कर दूंगा-


हाल ही मे नरैनी एसडीएम अमित शुक्ला के साथ थप्पड़बाजी को लेकर चर्चा मे आये सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी ने एक बार पुनः बबेरू एसडीएम रजत वर्मा को फोन करके उन्हें गोरखपुर मंडल आयुक्त द्वारा एसडीएम रजत पर की गई टिप्पणी /आख्या का हवाला देकर लताड़ लगाई। उन्होंने सख्त लहजे मे कहा कि सरकार जितना कूड़ा-करकट बाँदा भेज रहीं है सबसे निपटा जाएगा। सरकार के हिसाब से काम करिएगा, किसी का मिशन पूरा मत करिए। उन्होंने भारत समाचार के पत्रकार से आन कैमरा कहा कि यहां इतना भ्रष्टाचार है कि बिना रुपया दिए काम नही होता है। उधर एसडीएम ने फोन पर सदर विधायक से क्या कहा यह जनता मे फिलहाल नही आया है। बतलाते चले सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी ने एसडीएम बबेरू रजत वर्मा को फोन पर जो कुछ सुनाया उसके पीछे सहकारी समिति के पुनर्निर्माण की जद मे एक ब्राह्मण परिवार का घर गिराया जाना है। मीडिया जानकारी मुताबिक सहकारी समिति के पुनर्निर्माण की प्रस्तावित भूमि के आड़े वह घर / दुकान आ रही थी जिस पर बुलडोजर चलाया गया है। बीजेपी पार्टी के लोग व क्षेत्रीय नेता अजय कुमार पटेल सहित अन्य लोग मौके पर मौजूद थे।

सदर विधायक को मिला मौका,ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल निशाने पर-

बबेरू मे ब्राम्हण परिवार के घर पर बुलडोजर चलवाने का दोषारोपण पीड़ित परिवार की गृहणी महिला ने वीडियो बयान पर किया है। शायद उन्हें किसी ने मोटिवेशनल जड़ीबूटी दी होगी। या हकीकत मे कुछ ऐसा ही कृत्य कारित हो कि सुनील पटेल के पद प्रभाव से यह बुलडोजर प्रक्रिया चली हो। अलबत्ता ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल की घेराबंदी सदर विधायक ने लोकल मीडिया कैमरों से करा दी है। सूचना संसार यह कदापि दावा नही करता कि सुनील पटेल ईमानदार है लेकिन पत्रकारिता निष्पक्ष हो यह प्राथमिकता है।

अंदरखाने मे खनिज विभाग की अवैध तहबाजारी वसूली मुख्य मुद्दा-

सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी और जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल के बीच शनिवार को ब्राह्मण परिवार के घर बुलडोजर चलने का मौका असल मे अवसरवादी राजनीति मात्र है। जिसको भुनाया गया है। मूल वजह बीजेपी के दोनों नेताओं मे एकदूसरे पर भ्रष्टाचार का हल्ला बोल करना है। गौरतलब है कि सदर विधायक खेमे के कुछ ज़िला पंचायत सदस्यों ज़िला पंचायत अध्यक्ष के भ्रष्टाचार मामले का मुद्दा उठाया। उन्होंने 6.21 करोड़ के अवैध तहबाजारी वसूली की शिकायत सुजाता राजपूत आदि के माध्यम से तत्कालीन मंडल आयुक्त श्री बालकृष्ण त्रिपाठी को की थी। वहीं सदर विधायक इसको लगातार करोड़ो का घपला बतला रहें है। इस मुद्दे पर दोनों नेताओं ने प्रेसवार्ता तक कर डाली और आंतरिक विवादों को नया चुनावी आयाम दे दिया है। सोशल मीडिया पर दोनों गुटों के प्यादे पोस्ट लिखकर अपने-अपने नेता को पवित्र बतला रहें है। बतलाते चले कि जिला पंचायत मे हुए घपले की जांच के बीच 18 लाख रुपये के जनरेटर खरीद का मामला भी प्रकट हुआ है। वर्तमान मंडल आयुक्त श्री अजीत कुमार ने जांच कराई। यह जांच क्रमशः दो बार हुई है। प्रथम बार सीडीओ रहे वेदप्रकाश मौर्या ने तीन सदस्यीय कमेटी से जांच कराई। फिर मंडल आयुक्त ने बाँदा डीएम जे.रीभा की जगह महोबा डीएम काजल भारद्वाज पुनः जांच कराई क्योंकि ज़िला पंचायत अध्यक्ष स्तर की जांच जिलाधिकारी रैंक के अफसर को करनी चाहिए। दोनों बार की जांच मे सुनील पटेल सहित तत्कालीन एमए सत्येंद्र सिंह, परामर्श दाता पंचानन वर्मा सहित एक अन्य दोषी पाए गए है। ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल पर 200 की जगह 400 रुपया प्रति परिवहन तहबाजारी वसूली का भ्रष्टाचार आरोप तय हुआ है। उल्लेखनीय है यह ठेका ज़िला पंचायत मे शक्ति नारायण सिंह की फर्म के नाम था लेकिन इनका नाम जांच आख्या मे आरोपी की शक्ल पर नही है। इसके पूर्व जब कांग्रेस नेता राजेश दीक्षित तहबाजारी चलाते थे तब भी 200 की जगह 300 रुपया प्रति परिवहन वसूली थी लेकिन शिकायत नही की गई थी क्योंकि तब सिस्टम सेटिंग्स अनुकूल थी। इधर सुनील पटेल ने भी सदर विधायक पर पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सरिता द्विवेदी के कार्यकाल मे 120 करोड़ के घपले का जिन्न बन्द बोतल से निकाल दिया है।


सोशल मीडिया पर पटेलवाद वर्सेज ब्राह्मणत्व हो रहा है-

सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी और जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल की राजनीतिक उठापटक पर जनता के हिस्से मौज-मजा व चटखारे का मधुमास आया है। सोशल मीडिया पर दोनों खेमे के कारिंदे तैनात है जैसे की पत्रकारिता भी मुस्तैद है। जदयू नेत्री शालनी पटेल सदर विधायक को रोज व्हाट्सएप / फेसबुक पर घेरती नजर आ रहीं है। जबकि सदर विधायक के खास युवाओं ने सदर विधायक को सूर्यवंशम और नायक फ़िल्म का अवतार तक बतला दिया है। उपमाओं की बेला मे किसी को पटेलवाद की अवसरवादी राजनीति व ब्राह्मणत्व का मूल याद नही है। उल्लेखनीय है इसी बाँदा मे ब्राह्मण पत्रकार गंदी राजनीति का शिकार हुए है।

बीजेपी का युवा ब्राह्मण नेता व भाजयुमो पूर्व जिलाध्यक्ष अतुल मोहन द्विवेदी सहित 4 अन्य पत्रकार क्रमशः सुमित उपाध्याय,राघवेंद्र मिश्रा, अनिल तिवारी,केके दीक्षित को जरर पहाड़ खदान मसले पर तूल देकर जेल भेजा गया था। कुछ अन्य पत्रकार भी दूसरी जातियों के लाल मौरम माफियाओं की साज़िश व चक्रव्यूह मे फंसे थे। उधर साल 2022 मे पत्रकार / जनसेवी संवाददाता आशीष सागर को चिंगारी का दंश झेलना पड़ा। इनकी बुजुर्ग माताजी सहित 9 महिलाओं पर झूठे केस लादे गए है। वहीं मिथ्या चार्जशीट लगी और षडयंत्र की पराकाष्ठा पर कोई पटेल धर्मी या ब्राह्मण ठेकेदार नेता/नेत्री का शब्द तक नही निकला। उल्टा युवा पत्रकार को फंसाने मे जदयू नेत्री तक 31 मई 2022 को चिंगारी की साज़िश मे शामिल थी। उन्होंने पत्रकार को पत्रकारिता छोड़ने की सलाह तक दे डाली थी। वहीं नरैनी के विकलांग ब्राह्मण परिवार सहित अमन त्रिपाठी हत्याकांड, ज़िला उद्योग संस्थान के अधिकारी सर्वेश दीक्षित तक जो कुछ हुआ सबने खुली आंख से देखा है। मगर सत्तारूढ़ दल व अन्य पार्टीबंदी द्वारा उफ तक नही की गई पीड़ितों के लिए अधिकारियों से मिलना तो छोड़ ही दीजिये। तमाशबीन भीड़ मे आज जब ज़िला पंचायत अध्यक्ष का मामला सामने है तो जातिवाद का तड़का लगाकर जनता को चुनावी लाभ के मद्देनजर गुमराह किया जा रहा है। देखना यह मुनासिब होगा कि राजनीति का यह स्याह दौर अपनी अंतरात्मा मे कितना नीचे गिरने के बाद झांकता और पश्चाताप करता है।

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