लखनऊ के अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर, भंडारे की इकलौती परंपरा | Lucknow Old Hanuman Mandir

अवध का यह ऐसा धार्मिक त्योहार जिसमे हिंदू व मुस्लिम एक साथ शामिल होते हैं। अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर की स्थापना को लेकर अनेक मत हैं, एक मत के अनुसार अवध के छठें नवाब सआदत अली खां की मां छतर कुंअर ने मंदिर का निर्माण कराया था। अवध के नवाब शुजाउद्दौला की यह बेगम हिंदू थीं और चूंकि सआदत अली खां मंगलवार को पैदा हुए थे। इसलिए प्यार से उन्हें मंगलू भी कहा जाता था। मंगलवार हनुमान जी का दिन होता है, इसलिए हिंदू के साथ-साथ नवाब की आस्था भी इस दिन से जुड़ी रही है। छतर कुंअर को बेगम आलिया भी कहते थे। उनकी आस्था की बदौलत मंदिर का निर्माण हुआ । पौराणिक कथा के अनुसार हीवेट पॉलीटेक्निक के पास एक बाग होता था जिसे हनुमान बाड़ी कहते थे, क्योकि रामायण काल में जब लक्ष्मण और हनुमान जी सीता माता को वन में छोड़ने के लिए बिठूर ले जा रहे थे तो रात होने पर वह इसी स्थान पर रुक गए थे।

Faith Beyond Religion- The Incredible Story Of Purana Hanuman Mandir,  Aliganj - Banani Vista

उस दौरान हनुमान जी ने मां सीता माता की सुरक्षा की थी। बाद में इस्लामिक काल में इसका नाम बदल कर इस्लाम बाड़ी कर दिया गया था। कहा जाता है कि एक बार बेगम के सपने में बजरंग बली आए थे व सपने में इस बाग में अपनी मूर्ति होने की बात कही थी। अत: बेगम ने लावलस्कर के साथ जब जमीन को खोदवाया तो वहां पर प्रतिमा गड़ी पाई गई । इस प्रतिमा को उन्होंने पूरी श्रद्धा के साथ एक सिंहासन पर रखकर हाथी पर रखवाया ताकि बड़े इमामबाड़े के पास मंदिर बनाकर प्रतिमा की स्थापना की जा सके। किंतु  हाथी जब वर्तमान अलीगंज के मंदिर के पास पहुंचा तो महावत को कोशिश के बावजूद आगे बढ़ने के बजाय वहीं बैठ गया। इस घटना को भगवान का अलौकिक संदेश समझा गया। मूर्ति की स्थापना इसी स्थान पर होगी चाहिए। अत: मंदिर का निर्माण इसी स्थान पर सरकारी खजाने से कर दिया गया। यही अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर है।  मंदिर के शिखर पर पर चांद का चिह्न आज भी देखा जा सकता है। बड़े मंगल को मनाने के पीछे तीन मुख्य मत है।

एक मत के अनुसार शहर में  एक महामारी फैल गई जिससे घबराकर काफी लोग मंदिर में आकार रहने लगे थे और बच गए थे। उस समय ज्येष्ठ का महीना था। उसी दिन से ज्येष्ठ के मंगल भंडारा उत्सव होने लगा। दूसरे मत के अनुसार एक बार यहां पर इत्र का मारवाड़ी व्यापारी जटमल आया, लेकिन उसका इत्र नहीं बिका । नवाब को जब यह बात पत चला तो उन्होंने पूरा इत्र खरीद लिया। इससे खुश  होकर जटमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और चांदी का छत्र भी चढ़ाया। कुछ लोगों का मानना है कि नवाब वाजिद अली शाह के परिवार की एक महिला सदस्य की तबीयत बहुत खराब हो गई थी और मंदिर में दुआ से वह ठीक हो गईं। 

वह दिन मंगलवार था और ज्येष्ठ का महीना भी था।  किंतु इतिहास के परिपेक्ष्य में कुछ कह पाना संभव नही है परंतु आस्था के स्तर पर बडो मंगल के ये तीन मुख्य कारण हैं। उसी समय से शुरू हुआ बड़ा मंगल लगातार जारी है। जगह-जगह भंडारे के साथ हिंदू- मुस्लिम दोनों ही शामिल होते हैं। समय के साथ सबकुछ बदलता रहा। गुड़, चना और भुना गेहूं से बनी गुड़धनियां से शुरू हुई भंडारे की परंपरा अभी भी चली आ रही है। कोरोना संक्रमण की वजह से दो साल से भंडारे समाज सेवा के रूप में तब्दील हो गए। हिंदू मुस्लिम एक साथ भंडारा करते हैं यह यहां की अपनी तरह की इकलौती परंपरा है। ऐसी परंपरा अवध के बाहर कही नहीं मिलती। समय के साथ बदलाव हुआ तो भंडारे का स्वरूप भी बदल गया। पूड़ी सब्जी के साथ लोग मटर पनीर, चाऊमीन, छोले भटूरे व आइसक्रीम पानी के बताशे सहित युवाओं की पसंद के भंडारे लगने लगे जो इस धार्मिक पररंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य करेंगे।

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