बाँदा की इस अवैध तहबाजारी पर नीचे खबर लिंक मे भी पढ़े –
@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।
‘जिलाधिकारी श्रीमती जे. रीभा ने एमए (अपर मुख्य अधिकारी) व जिला पंचायत अध्यक्ष से एक सप्ताह मे स्पष्टीकरण मांगा गया है। पूर्व मे बीते फरवरी माह मंडल आयुक्त ने समिति बनाकर जांच कराई थी। जिस पर शासन को कार्यवाही हेतु संस्तुति की गई है।’
बाँदा। उत्तरप्रदेश के बाँदा मे अवैध रूप तहबाजारी का यह मुद्दा नया नही है। सत्ता के स्थानीय माननीयों मे आपसी सामंजस्य बना रहा तो सब ठीक चलता रहता है फिर भले ही अवैध तहबाजारी हो या अवैध खनन। लेकिन माननीयों मे अनबन / वैचारिक मतभेद हुआ तो ज़िला पंचायत के अंदरखाने मे पोषित मनमुटाव और राजनैतिक वैमनस्यता उभरकर सामने आ जाती है। बाँदा जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल और सदर विधायक की तनातनी का परिणाम ये हुआ कि मौरम खदानों से बालू लदे ट्रक / परिवहन पर 200 रुपया निर्धारित सरकारी रसीद शुल्क पर 400 की उगाही का पर्दाफाश हो गया है। जबकि साल 2021,2022,2023 तक तहबाजारी मे 200 रुपया की जगह 300 रुपया वसूली होती थी लेकिन ज़िला पंचायत अध्यक्ष एवं सदर विधायक जी मे राजनैतिक नूराकुश्ती नही होती थी तो सब ठीकठाक चल रहा था। बाँदा मे तहबाजारी के 3.5 करोड़ रुपया घोटाले ने अपर मुख्य अधिकारी का स्थांतरण कराया। वहीं दो अन्य अधिकारियों पर कार्यवाही हो गई।
अब जिलाधिकारी श्रीमती जे.रीभा जी इस मामले की जांच करेंगी जिसमे ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल पर आंच आ सकती है। यदि ऐसा मुमकिन हुआ तो ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल के वित्तीय अधिकार सीज हो जाएंगे। बतलाते चले कि शासन के निर्देशानुसार डीएम बाँदा श्रीमती जे.रीभा ने इस अंधेरगर्दी भ्रष्टाचार की जांच शुरू कर दी है। वहीं उन्होंने पूर्व जांच मे संलिप्त पाए गए ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल व अपर मुख्य अधिकारी से उनके पक्ष जानने को स्पष्टीकरण मांग लिया है। गौरतलब है कि कुछ ज़िला पंचायत सदस्यों ने 29 अक्टूबर 2024 को एकजुटता से वर्तमान ज़िला पंचायत अध्यक्ष और एमए की शिकायत शासन को की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि वर्ष 2023-24 मे ज़िला पंचायत ने टेंडर करके तहबाजारी का ठेका 2 करोड़ 7 लाख रुपया मे दिया था। इसमे शासन ने प्रति परिवहन / मौरम लोडेड गाड़ी से 200 रुपया रसीद काटने का प्रावधान था। शुरुआत ठीक रही लेकिन लाल सोने की अंधी चमक ने मौरम खदानों के ठेकेदारों की तर्ज पर जिला पंचायत के ज़िम्मेदारों को भी बे-लगाम कर दिया। इसका खामियाजा यह हुआ कि 200 रुपया की जगह 400 रुपया वसूली प्रति परिवहन होने लगी। वहीं अन्य कार्यो मे / विभागीय सामग्री खरीद फरोख्त मे भी मनमानी चलने लगी। इस तहबाजारी की अवैध वसूली से करोड़ो रुपया समेट लिया गया। यह जिला पंचायत मे जमा करने के बजाय आपस मे बांट लिया गया।
इस तथ्यात्मक शिकायत की प्रारंभिक जांच शासन के विशेष सचिव राजेश कुमार त्यागी ने की थी। वहीं उन्होंने मंडल आयुक्त बाँदा को जांच ट्रांसफर कर दी। मंडल आयुक्त ने सीडीओ के नेतृत्व मे कमेटी गठित करके इसकी ग्राउंड रिपोर्ट मांगी। तीन सदस्यों की कमेटी ने गत 29 जनवरी को रिपोर्ट दी जिसमे ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल के साथ अपर मुख्य अधिकारी / एमए सहित अन्य दोषी मिले। एमए धर्मेंद्र कुमार का स्थांतरण किया गया। किंतु राजनेता व निर्वाचित लोकसेवक ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल पर अब गाज गिरना तय माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि जिला पंचायत अध्यक्ष इस मामले पर राहट को हाईकोर्ट भी गए है लेकिन अभी वहां से भी फौरी राहत नही मिली है।
क्या कहते है सुनील पटेल-
ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल कहते है यह राजनैतिक खेल है। मुझे फंसाया जा रहा है। मामला हाईकोर्ट मे लंबित है, 8 मई को सुनवाई होगी। उधर जनता मे तहबाजारी के इस अवैध भ्रष्टाचार पर तमाम सवाल है। यदि राजनैतिक विद्वेष भी मान लिया जाए तो भी आला अधिकारियों को दिए गए साक्ष्यों पर जांच की गई। गबन सामने आया तो क्या अधिकारी निष्पक्ष नही है ? यदि जांचकर्ताओं को पारदर्शी मानेंगे तो वित्तीय भ्रष्टाचार तो हुआ है। जिसकी ज़िम्मेदारी निर्वाचित ज़िला पंचायत अध्यक्ष को लेनी चाहिए यदि वे डीएम बाँदा से हरी झंडी नही पाते है।