@अरुण सिंह पन्ना / आशीष सागर दीक्षित,बाँदा।
- मध्यप्रदेश सरकार ने इस नदी के पुनर्जीवन को 20 करोड़ रुपया खर्च किया लेकिन नतीजा ढांक के तीन पात।
- इस नदी की मुख्य सहायक नदी केन पन्ना, छतरपुर, बाँदा क्षेत्र मे भयावह उत्खनन का शिकार है।
पन्ना / बाँदा। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली केन नदी ( बाँदा की मुख्य नदी है जो चिल्ला फतेहपुर की सीमा पर यमुना से मिलती है ) की सहायक नदियों में शुमार ‘मिढ़ासन नदी‘ को पुनर्जीवित करने के नाम पर वर्षों पूर्व तक़रीबन 20 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके है। फिर भी इस नदी की हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ गई है। पहले तो इस नदी में गर्मी के समय कहीं-कहीं गड्ढों में पानी दिख भी जाता था, लेकिन अब तो यह पूरी तरह सूखे मैदान में तब्दील हो जाती है। पन्ना के वरिष्ठ बुजुर्ग पत्रकार श्री अरुण सिंह कहते है ‘मिढ़ासन नदी’ को जीवित करना असल मे केन के जींवन प्रवाह और उसकी जैवविविधता को भी संरक्षण करना होगा। किंतु जब सरकारें केन-बेतवा लिंक जैसी वाहियात परियोजना से पन्ना का विशाल जंगल बर्बाद करने पर आमादा हो। वहीं दो नदियों के भौगोलिक तासीर को समझें बगैर यह नहर सिंचाई परियोजना सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश को ताक पर रखकर पूरी करने की ज़िद हो तब ‘मिढ़ासन नदी’ के 20 करोड़ रुपया क्या मायने रखते है ? लिंक प्रोजेक्ट पर तो 40 हजार करोड़ दांव मे लगे है। केन नदी के प्रवाह / कैचमेंट क्षेत्रफल मे यूपी-एमपी तक चलती पोकलेन और लिफ्टर तो सरकार का आभूषण बन चुकी है।
मालूम रहे कि मिढ़ासन नदी को सदानीरा बनाने का संकल्प तत्कालीन मुख्यमंत्री व मौजूदा केंद्र सरकार के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिया था। साथ ही 15 वर्ष पूर्व बड़े ही धूमधाम के साथ इस अभिनव योजना का शुभारंभ किया गया था। किंतु नदियों को उत्खनन और जलराशियों को संरक्षण मे सरकारी ड्रामा बनाने की विशेषज्ञ ब्यूरोक्रेसी व भ्रष्ट तंत्र ने योजना की हवा निकाल दी है। वहीं पुनर्जीवन के नाम पर खर्च की गई राशि कहां और कैसे खर्च हुई, इस बात का आज तक खुलासा नहीं हो सका है। गौरतलब है कि यह मिढ़ासन नदी जस की तस रूखी-सूखी पड़ी है और सिर्फ बारिश होने पर ही यह नदी बहती नजर आती है। इस लिहाज से सदानीरा बनने के बजाय यह नदी बरसाती बनकर रह गई है। यह कुछ वैसे ही है जैसे उत्तरप्रदेश के भूभाग पर बहने वाली महोबा क्षेत्र की उर्मिल,धसान, चंद्रावल नदियां जिन्हें लाख जतन व भारी बजट के बावजूद उत्खनन की मार और सरकारी अदूरदर्शिता के चलते धरातल पर पुनर्जीवित नही किया जा सका। यह अलग बात है कि सूबे के यूपी जलशक्ति मंत्रियों / अफसरों ने इनके बजट खर्च पर मीडिया कैमरे मे तसले उठाकर जल सम्मान हासिल किए है। कहते है आत्ममुग्धता उस धृतराष्ट्र की तरह है जो संजय के युद्ध वर्णन करने के बावजूद आंखों व बौद्धिक मिजाज से सूरदास ही रहे। यहां यह भी बतलाते चले कि छतरपुर-पन्ना-बाँदा की जीवनरेखा केन नदी (कर्णवती ) बीते दो दशकों से खनन माफियाओं व सत्ता पोषित ठेकेदारों से भयावह स्वरूप मे बर्बादी की चपेट पर है।