- कहां दफन हो गए पानीदार तालाब जब हर गांव,मजरों, शहरों मे तालाबों की नजीरें थी।
@आशीष सागर दीक्षित,बाँदा
बाँदा। बसपा प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी ने अपनी सरकार मे सबसे पहले ‘खेत तालाब योजना‘ की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत बड़े व लघु तालाब किसानों की सहमति से उनके खेतों मे बनाने का नियम था। इसके निर्माण मे राज्य सरकार आर्थिक सहयोग करती थी। वहीं किसानों को सिंचाई के लिए वाटर स्प्रिंकलर सेट देने का भी निर्देश था। किंतु ज़िला स्तर पर कृषि विभाग एवं भूमि संरक्षण विभाग ने इस योजना पर जमकर पलीता लगाया। खैर समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव जी ने भी 20 अप्रैल 2016 से ‘खेत तालाब’ योजना’ को रिपीट किया। इसको इनकी सरकार मे बाँदा के कुछ किसानों ने ‘अपना तालाब’ योजना नाम भी दिया। वहीं सपा मुख्यमंत्री ने तालाबों के साथ सूखे से किसानों को निजात के लिए सूखा-राहत योजना प्रारंभ की थी।
जिसके अंतर्गत किसानों के खेतों मे उनकी मर्जी से 2000 तालाब बनवाने का दावा किया गया। इसके लिए भी भारीभरकम बजट आया। वहीं मनरेगा योजना से भी ग्रामपंचायत स्तर पर हजारों आदर्श तालाब बनाये गए। लेकिन आज ग्राउंड पर वही माडल तालाब नदारद है। मौजूदा राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व मे जहां किसानों को सिंचाई के लिए पुरानी ‘खेत तालाब’ योजना को प्रोत्साहन दिया है। वहीं बुंदेलखंड मे जल संरक्षण व पर्यटन को ध्यान मे रखकर चन्देलों के बनाये बड़े जलाशयों को भी रिवाइवल करने की योजना पर काम किया।
ऐसा कुछ सपा सरकार ने भी किया था। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश जी ने बाँदा के तालाबों का जीर्णोद्धार करने के लिए करीब 206 अरब का बजट दिया था। बाँदा के तत्कालीन जिलाधिकारी श्री जीएस नवीन कुमार ने इस बजट से पूरी तन्मयता से तालाबों का पुनुरुद्धार कराने का जतन किया। कार्यदाई संस्था पीडब्ल्यूडी व सिंचाई विभाग को जोरदार तरीक़े से लगाया गया। तत्कालीन सरकार मे ‘बुंदेलखंड पेयजल विशेषज्ञ समिति’ के सदस्य रहे आशीष सागर दीक्षित कहतें है कि तब डीएम जीएस नवीन कुमार नवाब टैंक के समीप सिंचाई विभाग की भूमि पर भी एक तालाब बनवाया था। यह वक्त के साथ जर्जर हो गया है। इसका बोर्ड फ़ोटो आज भी पर्यावरण पैरोकार के पास सुरक्षित है। वहीं शहर के छाबी तालाब, अतर्रा चुंगी चौकी के बाबू साहब तालाब, स्टेडियम रोड के कैंट तालाब, मवई बुजुर्ग के गोसांई तालाब आदि का सुंदरीकरण होना था लेकिन स्थानीय सपा नेताओं ने यह मुकम्मल होने नही दिया और तालाबों के जीर्णोद्धार का काम टेंडर व्यवस्था / ठेकेदारों से कराने का राज्य सरकार पर दबाव बनाया गया जिससे पूरा बजट खर्च नही हुआ और वापस लौट गया। वहीं महोबा के तत्कालीन डीएम श्री वीरेश्वर सिंह व प्रभात झा ने भी चन्देलों के तालाबों को बचाने का भरसक प्रयास किया लेकिन स्थानीय ठेकेदारी व्यवस्था ने तालाबों की मिट्टी खोदकर सिर्फ अपनी जेबें भरी।
गौरतलब है कि तब राजस्थान रहवासी राजेन्द्र सिंह राणा ‘जलपुरुष’ ने तामझाम के साथ महोबा के मदन सागर मे स्वयं फावड़ा चलाकर अभियान की शुरुआत को बल दिया। साथ ही बुंदेलखंड को गोद लेने का दावा किया था। पनवाड़ी के बेला ताल से चरखारी के विजय सागर, जय सागर तक जोरशोर से तालाबों की मिट्टी खुदाई हुई औऱ बेच दी गई। उदाहरण के लिए कबरई विकासखंड के ग्राम डड़हत माफ मे विशाल जलाशय बड़ा तालाब के साथ जमकर भ्रस्टाचार किया गया। वहीं झांसी के लक्ष्मी तालाब मे व्यापक खेल हुआ। आज भी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी जी को तालाबों के संदर्भ मे बुंदेलखंड के लिए ऐसी पारदर्शी योजना की सख्त जरूरत है। लेकिन जलसंरक्षण की ऐसी किसी भी योजना को अमल मे लाने से पहले माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद और सर्वोच्च न्यायालय के तालाबों के बारे मे आदेशित निर्देश को ज़मीन पर उतारना ज़रूरी है।
सर्वोच्च न्यायालय मे अपील संख्या (सी.) 4787/2011
हिंचलाल तिवारी बनाम कमलादेवी व अन्य मे पारित निर्णय दिनांक 25 जुलाई 2001 एवं रिट याचिका संख्या 6442(एम/बी)/2012 ओमप्रकाश वर्मा व अन्य बनाम राज्य सरकार में माननीय लखनऊ खंडपीठ द्वारा पारित आदेश दिनांक 7 अगस्त 2012 का अनुपालन कराना महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त माननीय उच्चतम न्यायालय मे सिविल अपील संख्या-1132(सी./2011) विशेष अनुज्ञा याचिका (सी.) 3109/2011 परिवर्तित विशेष अनुज्ञा याचिका (सी.) 19869/2010 जगपाल सिंह बनाम स्टेट आफ पंजाब मे पारित आदेश 28 जनवरी 2011 भी काबिलेगौर है।
तालाब संरक्षण को प्रत्येक ज़िले मे समिति –
उपरोक्त आदेशो के अनुक्रम मे जिलाधिकारी की अध्यक्षता मे समस्त जनपदों मे एक समिति काम करती है। जिसमें डीएम अध्यक्ष होता है। पुलिस अधीक्षक सदस्य, अपर जिलाधिकारी प्रशासन/ राजस्व सदस्य, समस्त एसडीएम सदस्य, पुलिस उपाधीक्षक सदस्य, ज़िला सूचना अधिकारी सदस्य नामित है। लेकिन यूपी मे यह समिति महज कागजों पर क्रियाशील है। जनता को यकीनन इसकी जानकारी नही होगी। उक्त समिति द्वारा प्रदेश की ग्राम सभाओं/ ग्रामपंचायत मे तालाब/पोखर/चारागाह/कब्रिस्तान की भूमि पर अवैध कब्जे हटवाने की ज़िम्मेदारी इनकी है। तालाबों के सम्बंध मे जनता से प्राप्त शिकायत का निस्तारण करना प्राथमिकता मे है।
चित्रकूट मंडल के लापता तालाब –
चित्रकूट जिले मे राजस्व रिकार्ड अनुसार कुल 3692 तालाब और कुएं है, जिनमे 151 समाप्त हो चुके है। वहीं बांदा में 14598 है जिनमे 869 खत्म हो चुके है। हाल ही मे बाँदा प्रशासन को ‘अमृत सरोवर योजना’ मे 806 तालाब खोजने पर नही मिले थे। कस्बा अतर्रा के एक तालाब पर जल संस्थान का दफ्तर निर्मित है। वहीं महोबा मे 8399 तालाब है, जिनमे 1402 गायब हो गये हैं। हमीरपुर मे भी करीब 3000 से ज्यादा तालाब थे जो अस्तित्वहीन हो रहें है। झांसी मंडल के बड़े तालाबों पर विकास की बदरंग चादर ने उनकी पानीदारी लगभग खत्म कर दी है।
महोबा का मदन सागर –
वीरभूमि महोबा मे चन्देलों के बड़े तालाब जलसंरक्षण की बेमिसाल नजीर है। चरखारी को तालाबों के कारण मिनी कश्मीर कहतें रहें है। इस शहर का कीरत सागर तो आह्वा-उदल के पराक्रम और कजली मेला को विख्यात है। किंतु आज शहर के मदन सागर (खकरा मठ) की सूरत ही नासाज है। बतलाते चले कि 29 जुलाई 2023 की तस्वीर है जब इस मदन सागर पर प्रशासन ने एक तैरने वाला फ्लोटिंग फाइबर पुल बनवाया था। लाखों रुपया इसमें खर्च हुआ था। इस तालाब के बीचोंबीच खकरामठ शिवालय है। यहां तक तैरने वाला फ्लोटिंग पुल बना था। लेकिन पर्यावरण एनओसी न होने से यह बाधित हुआ। तालाब पर फ्लोटिंग पुल बनाते वक्त प्रशासन ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति नही ली थी। वहीं दूसरी तस्वीर 29 जुलाई 2025 की है जब रखरखाव के अभाव मे यह फ्लोटिंग पुल बह गया। तीसरी तस्वीर 21 अगस्त 2025 की है जब करोडों का खूबसूरत पुल टूटकर बिखर गया है और खकरामठ शिवालय तक उसके निशान मौजूद नही है। चौथी तस्वीर मे सिर्फ खकरामठ दिखता है।
कुछ ऐसा ही कारनामा बाँदा मे नगरपालिका की कामधेनु ‘छाबी तालाब’ के साथ है हाल ही मे अमृत सरोवर से इसमें 3 करोड़ रुपया खर्च हुआ है। इसके पूर्व तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती विनोद जैन ने इसमें लाखों रुपया का काम कराया था। ठेकेदारों ने लाखों की मिट्टी बेचीं और तालाब का स्वरूप तक मिट्टी भरकर बिगाड़ दिया गया। कभी बाँदा के मशहूर चोर आबिद बेग ने इस तालाब के घाट बनवाये थे। बामदेवेश्वर पहाड़ का पानी से तालाब भरता था। वहीं शहर का ढालान यहीं था। तालाब की छवि अत्यंत मनमोहक थी इसलिए इसको अपभ्रंश मे छाबी तालाब कहने लगे। बुंदेलखंड मे हर गांव मे कहीं दर्जन भर तो कहीं इससे कम या ज्यादा तालाब ग्रामसभा मे आज भी है पर विडंबना है उन्हें बचाने का भगीरथ संकल्प सरकार और समाज के पास उपलब्ध नही है। यह विंध्याचल को सुखाड़ और पानी के भूगर्भीय स्रोतों से वंचित करता है।