एक मई को मटका प्रदर्शन और तीन मई को जाम, कांशीराम के बाशिंदे मांगे पानी का इंतजाम… | Soochana Sansar

एक मई को मटका प्रदर्शन और तीन मई को जाम, कांशीराम के बाशिंदे मांगे पानी का इंतजाम…

@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।

  • करीब 4 हजार की आबादी पर 4 हैंडपंप है। नलकूप एक साल से खराब है। मुस्लिम बाहुल्य एवं मजदूर तबका बसर करता है।

बाँदा। शहर मे पेयजल संकट को लेकर मई की शुरुआत से हल्ला बोल शुरू हो गया है। बीते 1 मई मजदूर दिवस को जनसेवी एएस. नोमानी ने अपने साथी कार्यकर्ता के साथ जिलाधिकारी कार्यालय मे मटका प्रदर्शन करके शहर / जिले की पेयजलापूर्ति को दुरुस्त करने की जद्दोजहद मे धरना प्रदर्शन किया था। इधर 3 मई को कांशीराम कालोनी के रहवासियों ने प्रदर्शन किया। सामाजिक कार्यकर्ता नोमानी ने गत 1 मई को खाली मिट्टी के मटकों पर स्लोगन लिखे पर्चे और उन्हें सिर पर रखे हुए लोग डीएम कार्यालय तक पहुंचे थे। इस प्रदर्शन मांगपत्र को एडीएम न्यायिक राजेश कुमार ने लिए था।

नेतृत्व कर्ता एएस नोमानी ने ज़िले मे संचालित दो दर्जन मौरम बालू खदानों को शहरी / ग्रामीण जल संकट का जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने प्रशासन से अविलंब खदानों को जल संकट प्रभावित क्षेत्र मे बन्द करने की मांग उठाई थी। लेकिन यह मांग पूरी होने के आसार इसलिए नही है क्योंकि करोडों रुपया लगाकर बाहरी कंपनी ने खनन लीज पट्टे लिए है। उत्तरप्रदेश सरकार के राजस्व का खनन मुख्य स्रोत है। खाशकर बुंदेलखंड मे खनन ही यूपी-एमपी राज्य से 5000 करोड़ रुपया से ज्यादा वार्षिक राजस्व देता है।

साथ ही सैकड़ो ट्रांसपोर्टर,पोकलैंड मशीनों के चालक, कंपनी स्टाफ, मजदूर इनका रोजगार खनन देता है। यह अलग मसला है कि अब एक दशक से नदियों / पहाड़ों मे खनन मजदूरों की बनिस्बत पोकलैंड / जेसीबी / लिफ्टर करती है। जबकि यह नियम संगत नही है। खनन पट्टेधारक एक बकेट (जेसीबी / पोकलैंड का पंजा) बालू, मौरम मशीन से नही निकाल सकता क्योंकि एक बकेट / मशीनों के पंजे की खुदाई से तुरंत नदी से पानी निकल आता है। नियमतः पानी निकलते ही माइनिंग अवैध खनन की श्रेणी मे आ जाती है। इसलिए खनन की गहराई का मानक 3 मीटर है।

साथ जहां नदी जलधारा मे पानी कम है वहां खनन वर्जित होता है। जिससे जलीय जीवों, नदी जैवविविधता, पर्यावरण क्षति/ पर्यावरण अनापत्ति प्रमाणपत्र।/ जल-वायु एनओसी की अवमानना न होने पाए। किंतु यह सबकुछ बुंदेलखंड खाशकर बाँदा मे कागजी नियम व शर्ते होती है। धरातल पर इस कारोबार मे पूरे प्रशासन की आंख मूंदने का दौर चलता है। जनता और जनसेवी अथवा पत्रकार बहुत हल्ला किये तो फौरी कार्यवाही पर जुर्माना करके इतिश्री हो जाता है। या यूं कहिये ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर इस खनन पेशे मे चांदी का जूता अपनी रुतबेदारी रखता है। अलबत्ता एएस नोमानी का प्रदर्शन प्रशासन के लिए एक स्टंट से ज्यादा मायने नही रखता है। बाकी पत्रकार तो निज-लाभ को खनन मुद्दा गाहेबगाहे उठाते रहते है। अपवाद मे निष्पक्षता बरकरार रहती है। वहीं उत्खनन कंपनी मालिक का मुख्य इंचार्ज / मुनीम भी इसमे अच्छी गुल्ली फिट करता है।

मौरम खदानों के भुगतान बिल बाउचर / रजिस्टर पर एक-एक खदान से पत्रकारों को करीब 9 लाख तो कहीं कम या ज्यादा धनराशि 200 पत्रकारों के बीच बांटने का ज़िक्र रहता है लेकिन एक पत्रकार को उसके कद मुताबिक अधिकतम 10 हजार ( तीन बड़े अखबार बैनर), बड़े न्यूज़ इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को 5 हजार, न्यूज़ पोर्टल को 1500 से 2500 या 3 हजार रुपया मासिक दिया जाता है। यह मैनेजमेंट खदान इंचार्ज देखता है। इसके वितरण के लिए हर खदान मे एक बंदा रुपया बांटने को पत्रकार या कारखास की शक्ल मे सिस्टम पर रहता है। वहीं हल्के का चौकी-थाना, ज़िले विभागीय अफसरों तक खदान इंचार्ज अपने खासमखास के जरिये या खुद परवाना पहुंचा कर पूरे खनन व्यवस्था / ब्यूरोक्रेसी तंत्र को मैनेज करता है। ऐसे मे एएस नोमानी का ‘मटका प्रदर्शन’ क्या परिणाम दे सकता है सवाल यही है ? फिर भी मटका प्रदर्शन का हौसला शहरी बाशिंदों की जागरूकता का उदाहरण कहे जा सकते है।


कांशीराम कालोनी की चार हजार आबादी प्यासी-

शहर के हरदौली घाट कांशीराम कालोनी मे लगभग 400 ब्लाक है। इसमे ज्यादातर मुस्लिम आबादी है। अधिकांश मे मेहनत-मजदूरी वर्ग निवास करता है। इसके समीप ही सपा सरकार मे बनी आसरा कालोनी है। वहां क्या व्यवस्था है ये वे ही बतला सकते है क्योंकि वह प्रदर्शन मे शामिल नही थे। गौरतलब है कि शहरी कांशीराम आवासीय कालोनी बसपा सरकार मे अस्तित्व पर आई थी। फिर सपा सरकार ने इसको आसरा कालोनी से कमतर सुविधाओं को देकर अनदेखा किया। कमोबेश यही पिछले 7 साल से बीजेपी राज्य सरकार मे लगभग हर ज़िले के हालात कांशीराम कालोनी की पेयजल, साफ सफाई व्यवस्था को लेकर बने है।

राजनैतिक शिकार कांशीराम कालोनी बाँदा मे एक नलकूप एक साल से खराब है। वहीं 4 हैंडपंप चलते है। लेकिन 4 हजार की आबादी मे यह नकाफी है। उधर हर गर्मी जलसंकट की यह लोग परेशानी झेलते है। वहीं कार्यवाही के नाम पर भरोसा दिलासा मिलती है। बीते 3 मई सुबह को महाराणा प्रताप चौराहा पानी से प्यासे कांशीराम के बाशिंदों का था। सड़क पर खाली बर्तन लेकर प्रदर्शन हुआ। एक महिला बेहोश हो गई। प्रशासन तक बात गई तो सीओ सिटी राजीव प्रताप सिंह व एसडीएम सदर अमित शुक्ला मौके पर पहुंचे। जनता को समझाया गया, जलनिगम के अधिकारियों को बुलाया और पानी के लिए टैंकर बंदोबस्त करने के साथ जल्दी नलकूप मरम्मत की बात एसडीएम साहब ने कही। वहीं यह आश्वासन लिखित मे लोगों ने लिया है। देखना यह मुनासिब होगा कि कांशीराम कालोनी के लोगों का प्रदर्शन आगे पुनः पानी को लेकर न होने पाए। वहीं गांवों मे भी हर घर नल जल योजना धड़ाम है। थाना मटौंध का अच्छरौंड़ गांव पानी से हलकान है।

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