@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।
- मुकदमा अपराध संख्या 0043/2025 थाना अतर्रा सरकार बनाम राजाभैया मे आरोपपत्र न्यायालय मे दाखिल।
- करीब 1500 पेज की चार्जशीट पर तहरीर मे नामजद कुल 22 मे से 21 लोग आरोपपत्र से बाहर किये है। अकेले राजाभैया को बेबसी मे अभियुक्त बनाया गया।
- गत 2 फरवरी को अतर्रा थाने मे दर्ज मुकदमा संख्या 043/25 मे तहरीर कर्त्ता विद्याधाम समिति / चिंगारी संगठन की पूर्व सदस्या दलित युवती निवासी ग्राम बगदरी, मानिकपुर,चित्रकूट है।
- अपहरण, गैंगरेप, हत्या के प्रयास आदि मे नामजद मुख्य अभियुक्तों मे क्रमशः राजाभैया यादव,मुबीन खान, विजय बहादुर प्रधान, शिवकुमार गर्ग,शिराज अहमद थे। जबकि 21 महिलाओं को 66 आईटी एक्ट मे पक्षकार बनाया गया था।
- मुख्य अभियुक्त राजाभैया यादव संचालक विद्याधाम समिति / चिंगारी को विगत 21 फरवरी को तत्कालीन थाना प्रभारी श्री कुलदीप तिवारी जी ने गिरफ्तार किया था। सेशन कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद से अभियुक्त जेल मे है।
- उच्चन्यायालय मे लगातार मुकदमा अपराध संख्या 043/25 की बेल एप्लिकेशन व मुकदमा अपराध संख्या 0314/24 दिनांक 17 दिसंबर पर सुनवाई चल रही है।
- अभियुक्त के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट के निर्देश होने के बावजूद एनजीओ का वित्तीय डाटा कोर्ट मे दाखिल नही किया है। सिर्फ बैलेन्स सीट के आंकड़ों से खेल रहें है राजाभैया के अधिवक्ता।
- थाना अतर्रा सीओ व अभियुक्त के सजातीय विवेचक प्रवीण कुमार यादव के लचर व पक्षपाती बर्ताव और पावरफुल अभियुक्त को खाकी के संरक्षण पर दलित पीड़िता ने सहयोगी महिला व मुकदमा अपराध संख्या 0315/24 की वादी राजपूत महिला के साथ पिछले 6 माह दर्जनों पत्राचार किये लेकिन रत्तीभर असर आईओ पर नही हुआ। उन्होंने वही किया जो तयशुदा था।
- न्यायालय मे दाखिल मुकदमा अपराध संख्या 043/25 की चार्जशीट मे गैंगरेप,66 आईटी एक्ट,अपहरण की धारा हटाई गई। वहीं राजाभैया यादव को दुष्कर्म, महिला को बेहोश करना सहित अन्य मे अभियुक्त बनाया गया है।
- आईओ ने अभी तक मुकदमा अपराध संख्या 0314/24 की केस डायरी / आरोपपत्र कोर्ट मे दाखिल नही की है।
- मुकदमा अपराध संख्या 0315/24 की चार्जशीट विवेचक काशीनाथ यादव मुताबिक ने सीओ अतर्रा को दी गई है। लेकिन जानकारी अनुसार अभी अतर्रा न्यायालय दाखिल नही हुई है।
- अपहरण, गैंगरेप व आईटी एक्ट मे भी जमानत खारिज होने / गिरफ्तारी के दिन से 90 दिन पूरे होने तक चार्जशीट कोर्ट दाखिल न करने की मंशा थी लेकिन सेशन कोर्ट की आईओ को मिली फटकार से 22 मई 2025 को चार्जशीट न्यायालय मे प्रस्तुत कर दी गई है।
बाँदा। यदि आप पावरफुल है और चारोंतरफ मीडिया प्रायोजित षड़यंत्र का आवरण चढ़ा हुआ कद रखतें है तो सबकुछ संभव है। आज खाकी के लोगों ने एक बार फिर साबित किया कि रुपया हो तो तंत्र का हर हिस्सा खोखला व लचर किया जा सकता है। सरकारी सिस्टम मे प्रार्थना पत्र / आईजीआरएस शिकायत/महिला आयोग सदस्यों की जनसुनवाई महज खानापूर्ति रह गई है। उधर पीड़िता के अधिवक्ता ने बताया कि चार्जशीट के अध्ययन पश्चात तथ्यों के अन्वेषण से साबित होगा कि किन मूल बातों, साक्ष्यों के साथ हेराफेरी विवेचना मे की गई है। मसलन अपहरण और गैंगरेप मामले मे ढाई माह बाद 23 अप्रैल को दलित युवती का अतर्रा आईओ ने नरैनी पीएचसी मे मेडिकल कराया है।
जबकि 17 दिसंबर को दर्ज प्रथम दुष्कर्म आदि की एफआईआर मुकदमा संख्या 0314/24 को परिस्थिति जन्य भारी दबाव मे तब लिखा गया जब रेप पीड़िता दलित महिला अचेतावस्था मे आला पुलिस अफसरों के निर्देश पर जिला अस्पताल भर्ती हुई थी। उसको मानिकपुर के ओहन स्टेशन के रेलवे ट्रैक से 112 पुलिस दल ने बरामद किया और परिचितों को सुपुर्द किया था। तभी उसी रात्रि तक न तो उसके अपहरण व गैंगरेप की एफआईआर दर्ज की गई थी। और न प्रशासन/अतर्रा सीओ ने मेडिकल कराया था। उक्त दलित महिला का चार दिन बाद मेडिकल नरैनी पीएचसी मे 17 दिसंबर को लिखी गई रिपोर्ट संख्या 0314/24 धारा 376, 120 बी आदि मे मेडिकल कराया गया था। उसके बाद ही 161 सीआरसी व 164 के बयान हुए थे। तत्पश्चात दलित महिला सहयोगी महिला के साथ लगातार सरकारी चौखट तक भटकती रही लेकिन सुनवाई नही हुई। सारे अभियुक्तों को खाकी का संरक्षण था। वे फरारी मे घूम रहे थे। जब थक-हारकर दलित महिला ने 4 फरवरी से 18 फरवरी तक आमरण अनशन किया। फिर लखनऊ विधानसभा तक गई तो पुलिसिया तंत्र ने आनन-फानन मे सीओ अतर्रा के अवकाश मे होने पर तत्कालीन थाना प्रभारी कुलदीप तिवारी के नेतृत्व मे अभियुक्त राजाभैया यादव को हाईकोर्ट से वापसी मे बरगढ़ के पास से गिरफ्तार किया था।
जबकि शातिर अभियुक्त राजाभैया ने हाईकोर्ट की बेल याचिका व एक अन्य रिट मे अपनी गिरफ्तारी इलाहाबाद मे अधिवक्ता के घर से दर्शायी है। अलबत्ता सीओ अतर्रा प्रवीण यादव छुट्टी से वापसी होते है। कुलदीप तिवारी से तल्खियां होती है। वहीं चंद रोज बाद थाना प्रभारी को ट्रांसफर करके बाँदा पुलिस लाइन भेज दिया जाता है। जबकिं एक दर्जन पत्राचार करने के बावजूद आईओ अतर्रा प्रवीण यादव को हटाया नही जाता है। वे आज भी जमे है और राजाभैया यादव प्रकरण मे पूर्वानुमान मुताबिक मुकदमा संख्या 043/25 मे चार्जशीट दाखिल कर दिए है। लेकिन सजातीय सीओ के रहमोकरम से दो मुकदमे अभी तक आरोपपत्र लेकर कोर्ट नही पहुंचे है। सूत्र बतलाते है उनमे भी भरसक लीपापोती की गई है। इससे संदर्भित सारी मीडिया रिपोर्ट्स पहले ही लिखी जा चुकी है।
मुकदमे से बाहर होते ही सड़क पर दिखने लगे अभियुक्त और सक्रिय हुआ विद्याधाम…
न्यायालय चार्जशीट पर अकेले राजाभैया यादव को 043/25 मे दुष्कर्म आदि का अभियुक्त की खबर मिलने के बाद से चिंगारी व विद्याधाम समिति की बांछे खिली है। गौरतलब है कि इधर सपा नेता बने दद्दू प्रसाद की सियासी ज़मीन पुख्ता करने को संस्था गतिविधियों से पहल करते हुए अभियुक्त राजाभैया यादव के पितामह गयाप्रसाद उर्फ गोपाल भाई व लल्लूराम शुक्ला ने बीते 30 मई दिन शुक्रवार को पूर्व बसपा नेता व ग्राम्य विकास मंत्री रहे और अब समाजवादी झंडे पर राजनीतिक परिदृश्य मे पीडीए फार्मूला सेट करने वाले दद्दू प्रसाद को साधकर एक कार्यक्रम किया है। इसमे वनांगना एनजीओ बाँदा प्रमुख के धर्मपति इमरान अली भी सहभागी थे। उक्त कार्यक्रम मे महिलाओं को जागरूक व एकजुटता की सीख दी गई है। लेकिन नराधम पुरोधाओं ने न पूर्व वर्ष 2016 मे अनथुआ की विश्वकर्मा बेटी का कष्ट पूछा था। और न ये आज भी पसीजे है। इनके असंवेदनशील जनसेवी संसार मे ग्राम की बगदरी दलित व अतर्रा ग्रामीण की राजपूत महिला के लिया न्याय की चेतना अवशेष नही है।
वह यातना और स्त्री अस्मिता की उबासी भी नही है। बावजूद इसके महिलाओं को सशक्तिकरण की शिक्षा व हक-अधिकारों की पाठशाला मे नए चक्रव्यूहों का प्रशिक्षण देने वाले क्या वास्तविकता मे माननीय न्यायालय को भी गुमराह कर सकतें है जैसे अब तक करते आ रहें है ? काश लखनऊ के ज़िला न्यायालय अधिवक्ता लाखन सिंह की तर्ज पर बाँदा के इस एनजीओ का केस लड़ने वाले अधिवक्ता / कराने वालों पर भी सक्षम न्यायालय सख्त कार्यवाही करे ताकि मिथ्या मुकदमेबाजी के बोझ तले दबते जा रही न्यायिक व्यवस्था पर काले कोट के कलंकित पैरोकार और ऐसे संघठित संस्थागत गैंग उनकी पारदर्शी गरिमा पर बट्टा न लगाते रहें। ऐसा इसलिए भी मुकम्मल होना चाहिए क्योंकि ये नेक्सेस की आम नागरिक को हलकान करके उसके चारित्रिक भविष्य को बर्बाद कर रहें है। आर्थिक लाभार्जन हेतु हरिजन एक्ट को हथियार की तरह प्रयोग करते है। गिरने की पराकाष्ठा पार करते विद्याधाम / चिंगारी सरीखे एनजीओ को चिन्हित करते हुए गृहमंत्रालय को भी फारेन रेग्युलेशन एक्ट निरस्त करते हुए इन्हें ब्लैकलिस्ट करना चाहिए। अथवा हाईकोर्ट मे जनहित याचिका डालकर लोकहित की पहल हो। जिससे समाज मे समाजसेवा पर विश्वास खत्म करने वालों को रोका जा सकता है। बाँदा मे इस एनजीओ से पीड़ित ऐसे ग्यारह परिवारों का जींवन मिली जानकारी अनुसार अब तक कोर्ट कचहरी की चकल्लस मे न्याय के दिन गिनकर संघर्षरत है जिन्हें चिंगारी की महिलाओं ने षड़यंत्र रचकर फंसाया है।
इसकी सीबीसीआईडी / सीबीआई जांच आवश्यक है। लेकिन दलित वोट बैंक की खेती काटने के विशेषज्ञ नेता ऐसा कभी नही कर सकते है। खुद को गांधी और विनोबा के सापेक्ष रखने वाले पिताजी उर्फ गोपाल भाई उम्रदराज होकर भी इस विषैले पेड़ को छायादार बरगद बनाने की कवायद करते रहते है। असल मे यह पेड़ का बीज तो इन्होंने ही रोपित किया है। जिससे देवरती समाधान केंद्र साज़िशों का गढ़ बन चुका है। बतलाते चले कि गोपाल भाई की धर्मपत्नी देवरती के नाम पर यह हाल है। संस्था ज़मीन राजाभैया के खासमखास सह अभियुक्त शिवकुमार गर्ग ने दी थी। विद्याधाम का साल 2002 मे रजिस्ट्रेशन गोपाल भाई ने ही अगुआकार होकर कराया था। तत्कालीन बाँदा डीएम डीएन लाल, सीडीओ हीरामणि मिश्रा के सहयोग से ग्राम मोहन पुर / खारियारी मे अध्यापक यशवंत पटेल के बाबा पारगीलाल के नाम पर सर्वप्रथम एनजीओ का नाम परागीलाल विद्याधाम समिति रखा गया था। जो आज आपके सामने बदले हुए नाम के साथ न्यायपालिका से खेलने की चिंगारी को औजार बना बैठे है।