@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।
ज़िला पंचायत अध्यक्ष जेम पोर्टल की दरों पर उठा रहे सवाल, सुनील पटेल के घोटाले से बीजेपी मे बवाल…
- ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल अपने कार्यकाल के 6.21 करोड़ अवैध तहबाजारी घोटाले को जस्टिफाई करने के वास्ते जेम पोर्टल की बढ़ी हुई दरों पर सवाल उठा रहें है।
- क्या सुनील पटेल सरकारी विभागों मे सरकार के जेम पोर्टल का स्याह सच नही जानते है ? कैसे विभागों की चहेती फर्म / झोलाछाप बिना कार्यालय वाली कंपनियों को बढ़ी हुई दरों की सांठगांठ से निविदा/टेंडर मिलते है ?
- जेम पोर्टल की घोटालेबाजी को देखना है तो सुनील पटेल जी वनविभाग,बेसिक शिक्षा विभाग,निदेशक महिला कल्याण विभाग,यूपी/बाँदा ज़िला पंचायत परिसर स्थित कार्यालय मे अफसर पति-पत्नी का भ्रस्टाचार और विकास भवन मे राष्ट्रीय आजीवका मिशन विभाग जाकर गहनता से जेम पोर्टल पर अधिकारियों/कर्मचारियों की करीबी फर्मो से विभागीय खरीदफरोख्त देखने का कष्ट करें।
- उत्तरप्रदेश शासन के विशेष सचिव राजेश कुमार त्यागी ने ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल से वित्तीय गबन पर नोटिस देकर 15 दिनों मे जवाब मांगा है।
बाँदा। उत्तरप्रदेश के ज़िला बाँदा की सियासत इन दिनों सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल के इर्दगिर्द घूमती नजर आती है। वहीं प्रशासनिक अमला सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी जी के मोहपाश और कार्यशैली पर आशक्त है। अलबत्ता दोनों क्षेत्रीय नेताओं के बीच राजनीतिक दंगल चरम पर है। इसका बड़ा कारण ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल के कार्यकाल मे तहबाजारी ठेकेदार शक्ति नारायण सिंह की मिलीभगत से ज़िला पंचायत मे 6.21 करोड़ रुपया की अवैध तहबाजारी वसूली की गई। ऐसा ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल के विरुद्ध बीते साल की गई वित्तीय घोटालेबाजी की शिकायत पर जांच से उजागर हुआ था। यह अनुमान सरकारी अफसरों जिसमें तत्कालीन मंडल आयुक्त श्री बालकृष्ण त्रिपाठी द्वारा गठित जांच टीम ने अन्वेषण दरम्यान लगाया था। जांच के संदर्भ मे तत्कालीन सीडीओ वेदप्रकाश मौर्या के नेतृत्व मे एक पैलाइज जांच की गई। जिसमें ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल को जिला पंचायत सदस्य सुजाता,सदाशिव अनुरागी आदि की शिकायत पर जांच की गई थी। इस जांच के सारांश मुताबिक ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल पर जेम पोर्टल की बढ़ी दरों ( यह दर जेम पोर्टल पर पहले से योजनाबद्ध तरीके से तयशुदा व करीबी फर्मो के माध्यम से बढ़ी हुई दरों पर निविदा/टेंडर डालते है। फिर विभागों को सामग्री/उपकरण/स्टेशनरी आदि की सप्लाई करते है। जिसमे अधिकारी/मुख्य क्लर्क बड़ा बाबू/आशुलिपिक या अकाउंटेंट आदि का कमीशन परसेंटेज तय रहता है।) पर जनरेटर खरीदने का आरोप लगा है जो जांच मे सही पाया गया। हाल ही मे ज़िला पंचायत परिसर मे खुले महिला एवं बाल कल्याण विभाग मे मानव श्रम संसाधन आपूर्ति की निविदा मे वहां पहले से काम कर रही फर्म / सप्लायर वकील अहमद निवासी ज़िला फतेहपुर की फर्म को ही कूटरचित व्यवस्था से टेंडर दूसरी कम्पनी के नाम से दिया गया है। जबकि दोनों का ऑनर एक ही है। इसकी गाइडलाइंस को ताक पर रखकर डीएम बाँदा व विभागीय अधिकारी/कार्मिक की सहमति व सिस्टम से यह हुआ। उक्त दोनों फर्म क्रमशः जॉब्स इम्फराटेक प्राइवेट लिमिटेड व जॉब इंटरप्राइजेज है। सुनील पटेल क्या इसकी जांच करा सकते है ? अथवा कोई माननीय भी!!! पूरे दस्तावेज सूचना संसार के पास ही है।
वहीं सुनील पटेल इसके बचाव मे कहते है कि जनरेटर खरीद / जेम पोर्टल से सामग्री क्रय करने हेतु तीन सदस्यीय टीम रहती है जो निविदा फर्म का बिलिंग भुगतान पास करती है। अथवा फर्म चयन करती है। इसमे कमेटी अधिकारी भी दोषी होना चाहिए लेकिन यहां अकेले सुनील पटेल को मोहरा बनाया जा रहा है। वे कहतें है जैसे तहबाजारी ठेके मे 6.21 करोड़ रुपया की अवैध वसूली मे क्या बिना ठेकेदार शक्ति नारायण सिंह जो कि पर्दे के पीछे खनन कारोबारी भी है। इनकी बिना मिलीभगत के प्रति परिवहन 200 की जगह 400 रुपया वसूली हुई है ? किंतु जांच मे शक्ति नारायण सिंह का नाम नही आया क्योंकि वे सदर विधायक के प्रिय है। इसके अंदरखाने की भसड़ यह भी है कि तहबाजारी का ठेका अब ज़िला पंचायत सदस्य / पूर्व तहबाजारी ठेकेदार जयराम सिंह एंड कम्पनी लेना चाहती है। अभी कुछ वर्ष से जबसे कांग्रेस जिलाध्यक्ष राजेश दीक्षित तहबाजारी मे उतरे है सदर विधायक गुट से तहबाजारी ठेकेदार व राजनीतिक रसूखदार पार्टनरशिप रहती है। परन्तु सदर विधायक के साथ ज़िला पंचायत मे शुरूआत के तीन वर्ष तक अच्छा तालमेल रखने वाले ज़िला पंचायत अध्यक्ष एकदम इतने विवादित कैसे हो गए इसके पीछे भी तहबाजारी ठेकेदार व उससे जुड़े इस सिंडिकेट कारोबार मे आपसी खींचतान को माना जा रहा है। साथ ही एक बड़ा कारण ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल का अपने सियासी कद को बढ़ाने के लिए उच्च सदन की मशक्कत मे बबेरू विधानसभा सीट से 2027 चुनाव की दावेदारी भी है। सुनील पटेल भी चाहते है वे सदर विधायक का बिल्ला / पट्टा लेकर बाँदा की राजनीति मे लंबा सफर तय न करें। कुछ व्यक्तिगत वजूद भी होना चाहिये जिससे जनता मे रुआब बना रहे।
महोबा डीएम की जांच पर शासन की नोटिस-
वर्तमान मंडल आयुक्त श्री अजीत कुमार द्वारा बाँदा डीएम श्रीमती जे.रीभा की बनिस्बत महोबा डीएम से तहबाजारी, 40 केवीए जनरेटर खरीद और जिला पंचायत सदस्य मीरा पटेल (सुनील पटेल गुट) के पिताजी रामौतार की फर्म को जिला पंचायत मे ठेका दिलाने की जांच प्रेषित की थी। बतलाते चले कि मीरा पटेल के पिताजी रामौतार ज़िला पंचायत बाँदा के पंजीकृत ठेकेदार है। इस पर महोबा डीएम ने पूर्व जांच रिपोर्ट पर मोहर लगाते हुए ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल,तत्कालीन एमए जिनका ट्रांसफर हो चुका है। परामर्श दाता पंचानन वर्मा व एक अन्य कार्मिक को दोषी ठहराया है। मंडल आयुक्त ने डीएम से जांच इसलिए करवाई क्योंकि ज़िला पंचायत अध्यक्ष के स्तर के वित्तीय गबन की जांच जिलाधिकारी लेबल का अधिकारी ही कर सकता है। इसके बाद आख्या शासन को प्रेषण होती है। पहले सीडीओ स्तर की कमेटी ने जांच की थी जो सुनील पटेल के कद अनुसार नियम संगत नही थी। महोबा डीएम काजल भारद्वाज ने 40 केवीए जनरेटर जो 18.90 लाख मे खरीद हुई वह अमूमन 9-10 लाख का आता है। जबकि बाजार ठीकठाक खंगालने पर यह साढ़े 7 लाख का मिल जाता है। इसका बिल भुगतान 15 अक्तूबर 2025 को लगाया गया जो कि 25 अक्टूबर को पेमेंट हुआ, बाकायदा चेक भुगतान हुआ। लेकिन शिकायत हुई तो भुगतान मे रोक लगी थी। उधर शासन के विशेष सचिव राजेश कुमार त्यागी ने जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल से जांच आख्या पर स्पष्टीकरण मांगा है। उत्तर न मिलने पर एकतरफा कार्यवाही की चेतावनी है।
क्या कहते है सदर विधायक प्रकाश-
ज़िला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल जुड़े घोटाले की जांच पर सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी कहते है कि जब सुनील पटेल अपने रिश्तेदारों, चचेरे संबंधियों, मीरा पटेल के पिताजी को ठेके देंगे तो सवाल उठना लाजमी है। उन्होंने कहा ज़िला पंचायत सदस्यों ने सबूतों के साथ शिकायत की थी। सुनील पटेल हाईकोर्ट भी गए थे लेकिन राहत नही मिली है। तहबाजारी मे अवैध वसूली हुई है जिसमे ज़िला पंचायत अध्यक्ष दोषी है। वे भूल रहें है उनका राजनीतिक भविष्य कब किसने कैसे तय किया था। भ्रस्टाचार मुख्यमंत्री योगी जी को स्वीकार नही है।
क्या कहते है सुनील पटेल-
अपने ऊपर भ्रस्टाचार के आरोप व जांच मे दोषी पाए जाने पर जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल कहते है मुझे राजनीतिक शिकार बनाया जा रहा है। ताकि मेरा भविष्य इस कुर्सी के बाद आगे न बढ़े। वहीं सदर विधायक की धर्मपत्नी श्रीमती सरिता द्विवेदी जी के कार्यकाल मे 120 करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी व टेंडर की जांच क्यों दबा दी गई है ?
इसके दस्तावेज भी उनके पास है। वहीं बाँदा से बाहर किन माननीय ने कहां प्रॉपर्टी खरीदी और बनाई है क्या महोबा डीएम या मंडल आयुक्त इसकी भी जांच करेंगे? उससे पूर्व क्या अन्य अध्यक्ष भ्रस्टाचार नही किये थे जबकि जांच करा लीजिए। बैरहाल इन दोनों माननीयों की रस्साकशी के बीच बाँदा की भाजपा मुसीबत मे है। पार्टी का यह अंतर्कलह चुनावी नुकसान व विपक्ष को मुद्दा दे सकता है। यह अलग बात है पुलिस की लाठीचार्ज व मुकदमें के भय से कांग्रेस और समाजवादी इन मामलों को केंद्रीय लोकपाल, यूपी लोकायुक्त अथवा हाईकोर्ट या जन आंदोलन की शक्ल नही दे रहें है। यह चुप्पी विपक्ष का सियासी नुकसान भी करेगी। सोशल मीडिया के बाँदा हीरो नेताओं को धरातल पर जनता से कनेक्शन बनाने होंगे। देखना होगा कि क्या सुनील पटेल ज़िला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी खो बैठेंगे ? या वे इतने ही मुखर होकर अपना राजनीतिक कद ऊंचा करेंगे।
वैसे सदर विधायक का लक्ष्यभेदी तीर इस बार खाली रहेगा इसकी उम्मीद तब अधिक होगी जब मुख्यमंत्री जी जातीय समीकरण साधने वाली राजनीति को ज़ीरो टॉलरेंस भ्रस्टाचार पर बौना न कर दे। ब्राह्मण वर्सेज पटेलवाद या फिर ठाकुरबाड़ी ही सूबे का सियासी मिजाज है।