@लखनऊ निज संवाददाता।
- अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषाएँ विश्वविद्यालय (EFLU), क्षेत्रीय परिसर, लखनऊ द्वारा आयोजित दो दिवसीय युवा शोधार्थी सम्मेलन “मानविकी अध्ययन: भाषा, साहित्य और अंग्रेज़ी भाषा शिक्षा में प्रवृत्तियाँ” गुरुवार को सफलतापूर्वक हुआ संपन्न।
लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ मे दो दिवसीय युवा शोधार्थी सम्मेलन सम्पन्न हुआ। राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार आशीष वशिष्ठ ने इस सम्मेलन के बारे मे बताया कि इसमे पीएचडी शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। वहीं समाज भाषा विज्ञान, बहुभाषिकता, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, अनुवाद अध्ययन, स्वदेशी साहित्य, सब ऑल्टर्न विमर्श, शिक्षाशास्त्र और डिजिटल मानविकी जैसे समसामयिक शोध विषयों पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए गए है। उल्लेखनीय है कि यह आयोजन वैश्विक और स्थानीय अकादमिक चिंताओं के बीच एक जीवंत और संवादात्मक मंच के रूप में उभरा है। इस सफल आयोजन मे युवाओं की बढ़-चढ़कर उपस्थिती रही।
समापन सत्र की प्रमुख बातें–
उक्त सम्मेलन के समापन सत्र मे प्रो. रजनीश अरोड़ा, निदेशक, EFLU लखनऊ परिसर ने कहा कि मानविकी आज के समय में कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है। युवा शोधार्थी ज्ञान के उपनिवेशीकरण को तोड़ रहे हैं, स्वदेशी स्वर को केंद्र में ला रहे हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप भारतीय मूल्यों पर आधारित शोध कर वैश्विक संवाद से भी जुड़े हुए है। साथ ही सच्चा शोध केवल उत्तर खोजने मे नहीं, बल्कि सही प्रश्न पूछने मे है।
शोधकर्ताओं के इस सम्मेलन के समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. ओंकार नाथ उपाध्याय, अध्यक्ष, अंग्रेज़ी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषाएँ विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने की। उन्होंने “भारतीय शास्त्रीय और समकालीन साहित्य का अनुवाद” विषय पर अपने विचार साझा करते हुए कहा कि अनुवाद केवल भाषाई प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक सेतु है। यह शास्त्रीय और क्षेत्रीय साहित्य को वैश्विक पाठकों से जोड़ने का माध्यम है। वेद, उपनिषद, रामचरितमानस और महाभारत जैसे ग्रंथ केवल धार्मिक या साहित्यिक कृतियाँ नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा के वाहक हैं, जिनके लिए संवेदनशील और संदर्भानुकूल अनुवाद की आवश्यकता है। शोध सम्मेलन के भविष्य गामी योजनाओं पर भी मंथन किया गया।