सीता राम गुप्तापंजाबी भाषा के रचनाकार डॉ. श्यामसुंदर दीप्ति की एक लघुकथा बीज पढ़ रहा था। कश्मीर सिंह अपने दोस्त सुरजन सिंह के साथ अपने बेटे दिलदार का, जिसकी एक अच्छे सरकारी पद पर नियुक्ति हुई है और जो अपने कॉलेज का बैस्ट एथलीट रहा है, मेडिकल करवाने सिविल सर्जन के दफ्तर पहुंचता है। जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि दिलदार का ब्लड प्रैशर ज्यादा है। इस बात पर कश्मीर सिंह को गुस्सा आ जाता है। इस पर उसका दोस्त सुरजन सिंह कहता है, ‘चल छोड़। पांच सौ रुपए मांगता होगा और क्या? मार मुंह पर।Ó कश्मीर सिंह कहता है, ‘पांच-चार सौ की बात नहीं सुरजन मियां। बात यह है कि इसने दिलदार के दिल में बीज गलत बो दिया है और कुछ नहीं।Ó लघुकथा में कश्मीर सिंह का कथन बहुत महत्वपूर्ण है। आज जिधर नजर डालिए लोग गलत बीज बीजते मिल जाएंगे।ये गलत बीज ही ईमानदारी और नैतिकता की राह में सबसे बड़ी रुकावट हैं। ये गलत बीज ही बढ़ते हुए भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण हैं। जब हमारे साथ बार-बार ऐसा होता है तो मन में यही ख्याल आता है कि क्यों न हम भी ऐसा ही करें? अधिकांश युवक जब अपने कार्यक्षेत्र में पदार्पण करते हैं तो उनके मन में अपने कार्य करने के क्षेत्र में अच्छे से अच्छा करने का उत्साह होता है। साथ ही अनेक युवक ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करने के साथ-साथ हर जगह व्याप्त भ्रष्टाचार मिटाने के संकल्प के साथ नौकरी अथवा सेवा के क्षेत्र में आते हैं लेकिन उपरोक्त गलत बीजों के बीजे जाने के कारण उनका उत्साह व संकल्प धरे के धरे रह जाते हैं।शिक्षा का मनुष्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी शुरुआत भी प्राय: गलत बीज बीजने से होती है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अधिकांश अच्छे स्कूलों में मोटे डोनेशन के बिना दाखिला नहीं मिलता। यही कारण है कि हम अपने बच्चों को एक अच्छा इनसान बनने की बजाय एक बड़ा आदमी बनाने को विवश हैं। और बड़ा आदमी बनाने के लिए चाहे जो करना पड़े। चाहे जैसे बीज बीजने पड़ें।लेकिन ये वास्तविकता है कि हर बच्चे को पता होता है कि उसके दाखिले के लिए कितनी रिश्वत दी गई। शिक्षक भी ईमानदारी से पढ़ाना चाहते हैं लेकिन जब उनसे चालीस हजार पर दस्तखत करवाकर मात्र बारह-पंद्रह हजार रुपए उनकी हथेली पर रख दिए जाते हैं तो इसका किसी पर भी अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। डॉक्टरी जैसे सम्मानित पेशे का व्यक्ति भी जब रिश्वत लेने लगे तो ये एक गंभीर बात है लेकिन इसके मूल में गलत बीज बीजे जाने का ही असर है। बेशक निजी मेडिकल कॉलेजों में प्राय: मोटा डोनेशन देने पर ही प्रवेश मिलता है लेकिन इसका ये अर्थ तो नहीं कि एक डॉक्टर गलत तरीकों से अपने मरीजों से पैसे ऐंठे। सरकारी अस्पतालों में आज भी अनेक ऐसे डॉक्टर हैं जो निस्स्वार्थ भाव से मरीजों का उपचार करते हैं। कई प्राइवेट डॉक्टर भी बहुत कम या नाममात्र की फीस लेकर रोगियों का उपचार करते हैं। तो ऐसे डॉक्टर बाकी डॉक्टर के रोल मॉडल क्यों नहीं बनते?आज जहां नजर डालिए, गलत बीज ही बीजे जाते दिखलाई पड़ेंगे। तो क्या इस कारण से बाकी लोगों को अनैतिक होने अथवा भ्रष्ट आचरण करने की छूट दे दी जाए? माना कि हमारे मार्ग में कुछ लोगों ने गलत बीज बो दिए लेकिन जिन लोगों ने हमारे मार्ग में सही बीज बीजे, हमें वे क्यों नहीं दिखलाई पड़ते? हम उनकी तरह सिर्फ अच्छे बीज क्यों नहीं बीजते? आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी अपने एक निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए?Ó में एक स्थान पर लिखते हैं, ‘एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए ग़लती से दस के बजाय सौ रुपये का नोट दे दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद टिकट बाबू मुझे ढूंढता आया। उसने मुझे पहचान लिया। उसने बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, ‘यह बहुत बड़ी ग़लती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।Ó उसके चेहरे पर आत्मिक संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया।उपरोक्त घटना से कई चीज़ें स्पष्ट होती हैं जैसे हर दौर में अच्छे, ईमानदार और विनम्र व्यक्ति मौजूद होते हैं तथा जीवन में जब भी हम अच्छाई, ईमानदारी और विनम्रता आदि उदात्त गुणों का निर्वाह करते हैं तो इससे न केवल हमारे चेहरे पर संतुष्टि का भाव झलकने लगता है अपितु हमारे व्यक्तित्व में भी इसकी गरिमा दिखलाई पडऩे लगती है।बेईमान व्यक्ति के चेहरे से जहां हमेशा धूर्तता टपकती रहती है वहीं ईमानदार व्यक्ति का चेहरा सदैव आत्मविश्वास की गरिमा से दमकता रहता है। आज बहुत से लोग केवल उन क्षेत्रों में ही नौकरी करना चाहते हैं जहां ऊपर की कमाई भी हो और मोटी कमाई हो लेकिन मनुष्य और समाज के संतुलित विकास के लिए भ्रष्टाचार के इस दुष्चक्र को तोडऩा अनिवार्य है।००