भरत झुनझुनवालावर्ष 2014 में भाजपा ने आर्थिक विकास के मुद्दे पर चुनाव जीते थे। भाजपा का कहना था कि कांग्रेस में निर्णय लेने की क्षमता नहीं रह गयी थी। भाजपा अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाएगी, जिससे कि तमाम रोजगार उत्पन्न होंगे। बीते समय में तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत को शाबासी भी दी है। कहा है कि भारत सबसे तेजी से आर्थिक विकास की राह पर चल रहा है और शीघ्र ही भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दूसरी ओर बीते 5 साल में हमारी आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत पर ही टिकी हुई है। बीते वर्ष तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं एशियन डेवलपमेंट बैंक ने आने वाले वर्ष में भारत की होने वाली विकास दर को नीचे किया है। जमीनी स्तर पर भी जनता आर्थिक विकास से प्रसन्न नहीं दिखती। युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहे हैं और छोटे उद्यम दबाव में हैं।पहली बात यह है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी आर्थिक विकास का सही मापदंड है ही नहीं। जीडीपी में देश में होने वाले कुल उत्पादन का आकलन किया जाता है। यह नहीं देखा जाता कि उत्पादन किस प्रकार के माल का हुआ। जैसे यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति बीमार पड़ गया। वह माह में एक लाख रुपये का उत्पादन करता था। उसके एक माह बीमार पडऩे से देश का जीडीपी एक लाख से कम हुआ। उसे बाईपास सर्जरी करने के लिए 5 लाख खर्च करने पड़ें तो देश का जीडीपी 4 लाख से बढ़ जायेगा क्योंकि पांच लाख रुपये के उपचार का उत्पादन होगा जबकि बीमारी के दौरान एक लाख के उत्पादन की हानि होगी। जितने लोग बीमार पड़ेंगे, उतना जीडीपी बढ़ेगा।अत: इतना सही है कि भारत में 7 प्रतिशत के दर से उत्पादन बढ़ रहा है। लेकिन यह भी देखना होगा कि यह माल अच्छा है या बुरा वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा बनाये गये पर्यावरण सूचकांक में इंग्लैंड को छठा रैंक मिला था जबकि भारत को 177वां। 180 देशों में भारत लगभग सबसे नीचे रहा था। भारत में प्रदूषण अधिक है। उस प्रदूषण को उत्पन्न करने में एवं उससे राहत पाने के लिए हम अपना जीडीपी बढ़ा रहे हैं। भारत का जीडीपी 3000 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है जबकि इंगलैंड का 2900 बिलियन डॉलर। लेकिन पर्यावरण की परिस्थिति विपरीत होने के कारण हम ऐसा मान सकते हैं कि भारत में 3000 बिलियन डॉलर के पोल्यूशन मास्कों का उत्पादन हो रहा है जबकि इंग्लैंड में 2900 डॉलर के दूध अथवा संगीत का। यद्यपि कोरे धन के मापदंड पर हम आगे हैं लेकिन हमारे धन की गुणवत्ता न्यून है। यह इस प्रकार हुआ कि सड़क पर दो ट्रक जा रहे हैं। भारत के ट्रक में शहर का कूड़ा भरा हुआ है और इंग्लैंड के ट्रक में फल और सब्जी। उत्पादित जीडीपी की दृष्टि से दोनों ट्रक भरे हैं और दोनों के चलने से उत्पादन हो रहा है। जाहिर है कि हमारा जीडीपी सही नहीं है।दूसरा बिंदु यह है कि भारत का 3000 बिलियन अमेरिकी डॉलर का जीडीपी 130 करोड़ लोगों द्वारा उत्पादित किया गया है जबकि इंग्लैंड का 2900 बिलियन डॉलर का जीडीपी मात्र 6.7 करोड़ लोगों द्वारा उत्पादित है। प्रति व्यक्ति गणना करें तो इंग्लैंड में प्रति व्यक्ति 39,800 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति का जीडीपी उत्पादित होता है जबकि भारत में मात्र 1983 अमेरिकी डॉलर। लेकिन जनसंख्या अधिक होने के कारण हमारा कुल जीडीपी इंग्लैंड से ज्यादा होने को है। यह इसी प्रकार हुआ जैसे किसी उद्योग के 1000 श्रमिक यह बोलें कि उनका जीडीपी मालिक से अधिक है। वे इस बात को भूल जाते हैं कि उनका जीडीपी 1000 श्रमिकों द्वारा उत्पादित है जबकि उनका मालिक उनके बराबर जीडीपी उत्पादन कर रहा है।बताया जा रहा है कि भारत की विकास दर चीन से आगे है। वर्तमान में भारत की विकास दर 7.4 प्रतिशत होने का अनुमान है जबकि चीन की 6.6 प्रतिशत। भारत का जीडीपी वर्तमान में 2600 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। इसमें 7.4 प्रतिशत की ग्रोथ रेट के अनुसार हम प्रति वर्ष 197 बिलियन अमेरिकी डॉलर जोड़ रहे हैं। चीन का वर्तमान में जीडीपी 12300 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। इसमें 6.6 प्रतिशत की विकास दर से हर वर्ष 807 बिलियन अमेरिकी डालर की वृद्धि हो रही है। फिर भी हमारी जीडीपी वृद्धि चीन की वृद्धि की तुलना में मात्र चौथाई है।वास्तविक तुलना हमें चीन की उस समय की विकास दर से करनी चाहिए, जिस समय चीन का जीडीपी भी लगभग 2600 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जैसा कि आज हमारा है। जैसे 1991 के लगभग चीन की जीडीपी ग्रोथ रेट 12 प्रतिशत थी। वर्ष 1980 में चीन और हमारा जीडीपी लगभग एक ही स्तर पर था लेकिन पिछले 30 वर्षों में चीन हमसे पांच गुना बढ़ गया है।००