गांव में कोरोना संक्रमण के विस्तार का कारण बन रहे हैं आंदोलनकारी किसान | Kisan Andolan Latest News Update

हरियाणा में करीब 60 लाख परिवार रहते हैं। इनमें से 40 लाख परिवार गांवों में रहते हैं। पिछले साल जब महामारी का असर सामने आया था, तब शहरों में बसने वाले काफी लोगों ने अपनी जान-पहचान के लोगों के यहां गांवों में जाकर शुद्ध आबोहवा का फायदा उठाया था। ऐसे तमाम लोग जो किसी रोजगार, नौकरी या कामधंधे की वजह से शहरों में आकर बस गए थे, वे भी अपने गांव लौट गए थे। सोच यही थी कि कोरोना का असर शहरों में ज्यादा है और गांव इससे बचे हुए हैं। लिहाजा वहां अच्छा खानपान मिलेगा, शुद्ध हवा-पानी का इंतजाम होगा और हर तरह के प्रदूषण तथा बीमारियों से भी बचे रहेंगे।

Farmers protest in Delhi: Experts worry about Covid, farmers say new laws  bigger threat to their survival | India News - Times of India

ऐसे में एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि आखिर गांवों में फैले इस कोरोना की बड़ी वजह क्या है। राजनीतिक लोग इसे सरकार की लापरवाही बता रहे हैं। प्रभावित ग्रामीण सामान्य बुखार और टायफाइड कहकर कोरोना की चपेट में आने की सच्चाई स्वीकार करने को राजी नहीं हैं। सरकार का सर्वे कहता है कि टीकरी व सिंघु बार्डर पर लंबे समय से चल रहे धरने हरियाणा-पंजाब-दिल्ली समेत आसपास के राज्यों में इस महामारी के फैलने का बड़ा कारण बने हैं।

टीकरी और सिंघु बार्डर वह इलाके हैं, जहां पंजाब के लोग हरियाणा के विभिन्न जिलों से होते हुए लगातार यहां धरना देने के लिए पहुंचते रहे हैं। हरियाणा के कम से एक एक दर्जन जिलों के लोगों की भी इन धरना स्थलों पर निरंतर आवाजाही रही है। इनमें रोहतक, भिवानी, करनाल, हिसार, झज्जर, पानीपत, जींद, गुरुग्राम, फरीदाबाद और रेवाड़ी जिले शामिल हैं।आश्चर्यजनक सत्य यह है कि इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में सबसे अधिक कोरोना पीड़ित लोग मिल रहे हैं।

हिसार के सिसाय गांव और मैयड टोल प्लाजा से सटे इलाकों के लोगों की आंदोलन में सक्रिय भागीदारी किसी से छिपी नहीं है। प्रदेश सरकार ने इन आंदोलनकारियों से बार-बार आग्रह किया कि उनकी सेहत पहले है, आंदोलन तो बाद में भी किया जा सकता है, लेकिन सरकार की हर अपील को नजरअंदाज करते हुए न केवल ग्रामीण कोरोना का टेस्ट कराने से बचते रहे, बल्कि खुद को मौत के मुंह में धकेलने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। प्रदेश सरकार यदि जिद पर नहीं अड़ती और गांवों में स्वास्थ्य विभाग की टीमें भेजकर पीड़ितों का इलाज शुरू न कराती तो राज्य में भयंकर हालात पैदा हो सकते थे। ग्रामीणों की जिद ने पूरे क्षेत्र को मौत के मुहाने पर ला खड़ा कर दिया है। इसके लिए जितने जिम्मेदार किसान संगठनों के नेता हैं, उससे कहीं अधिक जवाबदेही हरियाणा व पंजाब के लोगों की भी बनती है।

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