अमेरिका में अब बाइडेन दौर मेंचुनाव संपन्न

अमेरिका में अब बाइडेनमहामारी के दौर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हो गया।

कड़े मुकाबले में 77 वर्षीय जो बाइडेन ने 74 साल के डोनाल्ड ट्रंप को करारी शिकस्त दी।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति रहे

बाइडेन सबसे अधिक उम्र के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं।

बाइडेन ही वह शख्स हैं जो 1972 में सबसे कम उम्र (29 वर्ष) में सीनेटर बने थे। व्हाइट हाउस पहुंचने की उनकी तीसरी कोशिश कामयाब रही।

इससे पहले बाइडेन को वर्ष 1988 और 2008 में नाकामी मिली थी।

पेनसिल्वेनिया में वर्ष 1942 में जन्मे जो रॉबिनेट बाइडेन जूनियर ने डेलावेयर विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की।

उन्होंने वर्ष 1968 में कानून की डिग्री हासिल की। अब, बाइडेन के राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही भारतीय मूल की कमला

देवी हैरिस ने अमेरिका में पहली अश्वेत एवं पहली महिला उपराष्ट्रपति बनकर इतिहास रच दिया है।

ओबामा के कार्यकाल में वह ‘फीमेल ओबामा’ के नाम से लोकप्रिय थीं।

कैलिफोर्निया के ऑकलैंड में 20 अक्तूबर, 1964 को जन्मी कमला देवी हैरिस की मां श्यामला गोपालन 1960 में भारत के तमिलनाडु से यूसी बर्कले पहुंची थीं

, जबकि उनके पिता डोनाल्ड जे हैरिस 1961 में ब्रिटिश जमैका से इकोनॉमिक्स में स्नातक की पढ़ाई करने यूसी बर्कले आए थे।

कमला भारतीय संस्कृति से गहरे से जुड़ी रहीं। कमला ने 2014 में जब अपने साथी वकील डगलस एम्पहॉफ से विवाह किया

तो वह भारतीय, अफ्रीकी और अमेरिकी परंपरा के साथ-साथ यहूदी परंपरा से भी जुड़ गईं। बाइडेन और 56 वर्षीय कमला हैरिस का शपथ ग्रहण समारोह अगले साल 20 जनवरी को होगा।


अमेरिका में चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप जहां ‘अमेरिका फर्स्टÓ जैसे नारे दे रहे थे, वहीं बाइडेन ‘सबको साथ लेकर चलनेÓ की बात कह रहे थे।

कोरोना काल में ‘चुनावी उलझनÓ में फंसे ट्रंप के अनेक कदमों की खूब आलोचना भी हुई। खैर… अब जनता ने अपना फैसला सुना दिया है।

अमेरिकी सत्ता में इस बड़े परिवर्तन का असर निश्चित रूप से भारत समेत अनेक दक्षिण एशियाई देशों पर पड़ेगा।

सबसे पहले तो बाइडेन को कोरोना महामारी से जूझ रही जनता के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे, साथ ही आर्थिक और वैश्विक मसलों पर अपनी नीति स्पष्ट करनी होगी।

जहां तक भारत के साथ संबंधों की बात है, बाइडेन की टीम में बड़ी संख्या में भारतीय-अमेरिकी हैं।

चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि भारत-अमेरिका ‘प्राकृतिक साझेदारÓ हैं। उन्होंने कहा था कि भारत-अमेरिकी रिश्ते उनकी प्राथमिकता हैं।

यही नहीं, भारतीयों, खासतौर पर आईटी प्रोफेशनल्स के लिए महत्वपूर्ण एच-1बी वीजा को लेकर भी उनका रुख नरम है।

गौर हो कि ट्रंप प्रशासन की कुछ नीतियों से भारतीय पेशेवर बुरी तरह प्रभावित हुए थे।

अब नये बदलाव से उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिका में काम कर रहे भारतीय मूल के लोगों और वहां जाने की इच्छा रखने वालों को काफी राहत मिल सकेगी।

इसके साथ ही भारत को उम्मीद है कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई में नया अमेरिकी प्रशासन साथ देगा

और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए भी पुरजोर वकालत करेगा।

Like us share us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *