मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश के सभी मठ-मंदिरों के संंतों और महंतों से अपील की है कि वह संस्कृत, संस्कृति और गोरक्षा के लिए आगे आएं। सरकार इस कार्य में उनकी हर संभव मदद करने के लिए तैयार है। भारत और भारतीय संस्कृति को संजोए रखने के लिए तैयार रहने को उन्होंने हर भारतीय का भी आह्वान किया है। कहा है कि हर नागरिक को आत्मावलोकन करते हुए देश के लिए अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। मुख्यमंत्री गुरुवार को गोरखनाथ मंदिर के दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में आयोजित ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के श्रद्धांजलि कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
सभी धार्मिक पीठों को संस्कृत विद्यालय खोलने की दी सलाह
मुख्यमंत्री ने यह कहा कि सभी धार्मिक पीठ संस्कृत विद्यालय खोलें और इसमें सरकार का सहयोग लें। संस्कृत और संस्कृति के प्रोत्साहन लिए मठ-मंदिरों को आगे आना होगा। संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए योग्यता के आधार पर शिक्षकों का चयन करना होगा। शिक्षकों की अयोग्यता शिक्षण संस्थान के नुकसानदेह होगी। योग्य शिक्षकों को तराशने की जिम्मेदारी धर्माचार्यों और उनके पीठ व आश्रमों को लेनी होगी। संस्कृत और संस्कृति के साथ गोरक्षा की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके लिए सरकार तीन स्तर पर कार्य कर रही है। पहले स्तर में निराश्रित गोवंश के लिए आश्रय स्थल बनाए गए हैं, जहां वर्तमान में प्रदेश में छह लाख गोवंश सुरक्षित हैं। दूसरी योजना प्रोत्साहन आधारित है, जिसमें चार गोवंश को पालने वाले गोपालक को सरकार प्रति गाय 900 रुपये के हिसाब से प्रतिमाह 3600 रुपये देती है। तीसरी व्यवस्था कुपोषित महिलाओं व बच्चों के लिए की गई है। इसमें संबंधित परिवार को एक गाय व उसके पालन के लिए प्रतिमाह 900 रुपये दिए जा रहे हैं।
गोरक्षा योजना का किसी धार्मिक संस्था ने नहीं ली सरकार की मदद
मुख्यमंत्री योगी ने इसे लेकर दुख जताया कि गोरक्षा योजना का किसी भी धार्मिक संस्था या मठ गोसंरक्षण से जुड़ी सरकार की किसी योजना की मदद नहीं ली। कहा कि हमें समझना होगा कि धर्म की रक्षा तभी होगी जब हम उसके मूल और मूल्यों को जानेंगे। गोरक्षा उसका मूल है। इसके लिए हर मठ-मंदिर को गोरक्षा में अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। गोरक्षा में गोरक्षपीठ के योगदान की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मंदिर के प्रसाद को तैयार करने में गाय के गोबर से तैयार ईंधन से बनता है। यहां तक कि खेतों में अन्न उत्पादन में भी गोबर की खाद का ही इस्तेमाल होता है।
दैवयोग से गोरखपुर आए महंत दिग्विजयनाथ
दिग्विजयनाथ को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने बताया कि गोरखपुर में उनका आगमन दैवयोग से हुआ। वह महाराणा प्रताप के वंशज थे, इसलिए उन्होंने भी राष्ट्ररक्षा के किसी प्रकार का बलिदान देने में कोई संकोच नहीं किया। अपने शिक्षक को नौकरी निकाल देने के बाद ही उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना कर दी। वर्तमान में जिसकी छत्रछाया में चार दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थाएं संचालित हो रही है। हर धार्मिक पीठ को धर्म और अध्यात्म के साथ सभ्यता और संस्कृति के लिए क्या करना चाहिए, यह मानक दिग्विजयनाथ ने ही तय किया। उनके इसी अभियान ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने बखूबी आगे बढ़ाया।