झूठे मुकदमों पर फर्जी चार्जशीट,बेनकाब होने पर रि-इन्वेस्टिगेशन तक नही कराती बाँदा पुलिस.. | Soochana Sansar

झूठे मुकदमों पर फर्जी चार्जशीट,बेनकाब होने पर रि-इन्वेस्टिगेशन तक नही कराती बाँदा पुलिस..

बीते 17 मई 2025 को लिखी खबर नीचे लिंक मे पढ़े प्रकरण से वास्ता है-

https://soochanasansar.in/banda-district-in-rural-tahseel-palani-police-station-which-was-sympathetic-to-the-mafia-involved-in-illegal-mining-in-sandi-moram-block-77-conspired-and-sent-woman-farmer-and-ground-social-activist/

@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।

  • इस खबर पर चार मुकदमों से बाँदा के करप्ट सिस्टम को समझने की कवायद करिएगा।

“बाँदा पुलिस व्यवस्था आंदोलनकारी सामाजिक कार्यकर्ता / पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे लिखने का लगातार षड्यंत्र चला रही है। इन कूटरचित मुकदमों को साज़िश के तहत रसूखदार ब्यूरोक्रेट्स / सफेदपोश कद्दावर व्यक्तियों / मौरम-बालू माफियाओं के इशारे पर प्लांट किया जा रहा है। इन मुकदमों पर गिरफ्तारी के बाद पुलिस मीडिया सेल पर फ़ोटो-वीडियो प्रसारण होता है।

ताकि स्थानीय मीडिया उनका चरित्र हनन सार्वजनिक रूप से खबरों के माध्यम से करे। खबर भी पुलिस विज्ञप्ति अनुसार हो यह ध्यान रखने की हिदायत होती है। फिर तयशुदा दिशानिर्देश के मुताबिक बगैर तथ्यों का ग्राउंड व नेचर आफ केस परीक्षण किए बिना आरोपपत्र / चार्जशीट न्यायालय मे दाखिल होती है। भ्रष्टाचार मे संलिप्त व्यवस्था से पीड़ित अभियुक्त/अभियुक्ता कोर्ट, कचहरी के चक्कर लगाना शुरू करता है। यहीं से वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के दो स्तंभ कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूलभुलैया मे दिनरात अवसादग्रस्त होता है। समाज उनके साथ खड़ा नही होता क्योंकि पुलिसिया भय और आर्थिक टूटन तो समाज के पास भी है,परिवार तो उनके पास भी है उन्हें इन कुचक्रो से बचाना लाजमी है। अलग-थलग पड़ा व्हिसिल ब्लोअर अथवा जनसेवी अधिवक्ता के लिए कामधेनु बन जाता है। लेकिन जब पुलिस अपने बुने जाल पर बेनकाब होटी है तो तमाम कुतर्को एवं कानूनी दांवपेंच की दुहाई के साथ रिइन्वेस्टिगेशन तक नही कराती है। पाठकों यह चार मुकदमे जिला मुख्यालय बाँदा मे पुलिसिया मकड़जाल का खुलासा करतें है। निर्दोषों को अपराधी बनाने की यह सुनियोजित मंशा खतरनाक व समाज और संविधान के लिए घातक है।”

बाँदा। हाल ही मे दिनांक 17 मई 2025 को पैलानी तहसील के गांव सांडी मजरा अमान डेरा की रहवासी सामाजिक कार्यकर्ता व महिला किसान ऊषा निषाद को मुकदमा अपराध संख्या 114/25 थाना पैलानी अंतर्गत धारा 308(6), 351(2) बीएनएस के दर्ज करके ज़िला कारागार भेज दिया गया है। कथित अभियुक्ता / महिला किसान व पर्यावरण कार्यकर्ता ऊषा निषाद को जेल भेजने के एक दिन पूर्व दिनांक 16 मई (शुक्रवार ) को धारा 107/16 शांति व्यवस्था / लोक व्यवस्था भंग करने के आरोप पर गिरफ्तार करके देरशाम मुचलके पर छोड़ा गया था। यहां यह बतलाना अनिवार्य है कि ऊषा निषाद गांव के किसानों व अवैध खनन से प्रभावित महिलाओं के खेत और ग्राम सभा की ज़मीन पर अवैध खनन रोकने को लेकर बीते 25 मार्च से 13 मई तक स्थानीय प्रशासन को प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही की मांग कर रही है। इस कड़ी मे ही ऊषा निषाद गत 15 मई को केन नदी मे जल सत्याग्रह के बाद 16 मई को समुदाय नदी क्षेत्र से लगे अपने सब्जी के खेतों मे बैठकर गांधीवादी तरीक़े से उपवास कर रहीं थी। बतलाते चले कि गांव की ग्राम सभा ज़मीन के साथ किसानों के गाटा संख्या 103/217 व 102/3 हेक्टेयर पर अवैध मौरम खण्ड सांडी 77 कर रहा है। यह अनैतिक, अनलीगल खनन अनवरत अक्टूबर माह से क्रियान्वित हो रहा है। ग्राम सांडी के किसान राम औतार, शिवराज, सतनिया, बैजनाथ पुत्र शिवपाली, रामबाबू पुत्र जयनारायण, रमेशचन्द्र पुत्र पुत्र चुनुबाद, मदारी पुत्र महावीर, पंकज पुत्र जागेश्वर, पुष्पेंद्र आदि ऊषा निषाद के साथ लगातार बाँदा प्रशासन के समक्ष न्याय की गुहार लगा रहे थे। इन किसानों ने 25 मार्च को डीएम बाँदा के सामने शिकायत पत्र दिया। फिर 26 मार्च को मंडल आयुक्त को मांगपत्र दिया गया।

सकते मे आये खनन नेटवर्क ने 27 मार्च को माफियाओं / खदान पट्टेधारक हिमांशु मीणा के निर्देश पर उनके रहबर क्रमशः जैकी, हबीब सिद्दीकी, अजहर, अनिल बंसल, विजय सचान आदि ने 11 अर्थ मूविंग पोकलैण्ड लगाकर अवैध खनन के भारी गढ्ढे भरने का काम किया था। मौके इसी दिन अपर गए लेकिन कार्यवाही नही हो सकी। आहत किसानों ने सारी वीडियोग्राफी सोशल मीडिया पर जारी की लेकिन कुछ नही हुआ।इधर लोकल मीडिया मौन बैठी थी। दिनांक 29 मार्च गांव की खदान मे डीएम बाँदा श्रीमती जे.रीभा जी औचक पहुंचती है तो हड़कंप मचता है। तुरंत ही संभंधित खनिज अधिकारी, एसडीएम, तहसीलदार पैलानी व चौकी प्रभारी आते है जिन्हें कार्यवाही के निर्देश होते है लेकिन खान अधिकारी राज रंजन मौन साधना मे तल्लीनता बनाये रखते है। यह सबकुछ मौरम खण्ड सांडीखादर के गाटा संख्या 73/1,73/2,77/7, 89 व 102/1 कुल रकबा 26.62 हेक्टेयर मे अवैध खनन के संदर्भ मे पट्टेधारक के हितार्थ खनिज विभाग एवं क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कर रहा था।

अभियुक्ता के जीडी प्रपत्र आख्या मे लिखा झूठ-


इस कपोल मुकदमे मे अभियुक्ता की गिरफ्तारी जीडी प्रपत्र / विवरण अनुसार सांडी बस स्टैंड से 50 मीटर पहले खैरेई की तरफ सड़क किनारे से दिखाई गई है। जबकिं दिनांक 16 मई को महिलाओं व किसानों के साथ अपराह्न 2 बजे के आसपास जब पुलिस आंदोलन कर्मियों को हिरासत मे लेती है तब ऊषा निषाद उनके साथ थी। इन सबका देरशाम तक बैठाने के बाद धारा 151 शांति भंग मे चलान काटा जाता है और अधिकारी छोड़ देते है। इस घटनाक्रम के दरम्यान नेतृत्व कर्ता ऊषा निषाद के तीन किसानों के मोबाइल खपटिहा पुलिस कर्मी छीन लेते है। जिसमे ऊषा निषाद का मोबाइल अभी तक पुलिस के पास है। इसमे आंदोलन स्थल की झड़पें, तहसीलदार राधेश्याम की अभद्रता और एसएचओ पैलानी व एसडीएम की गर्मागर्मी रिकार्ड है।

गिरफ्तारी के वक्त जीडी विवरण मुताबिक अभियुक्ता के पास महज 160 रुपया मिलता है। यह उस महिला किसान की माली हैसियत है जिसको मौरम माफियाओं के महंत हिमांशू मीणा / मल्होत्रा ग्रुप / न्यू यूरेका माइन्स एंड मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड ने खदान इंचार्ज विजय सचान की एफआईआर इबारत मुताबिक एक सप्ताह पहले 50 हजार रुपया वसूली के आरोप पर जेल भिजवाया है। गरीब महिला के पिता स्वर्गीय रामचरण निषाद दो दशक पूर्व प्राइमरी अध्यापक थे जो दुनिया मे नही है। बुजुर्ग माताजी बाँदा शहर जरैली कोठी अपनी बेटी तो कभी गांव के कच्चे मकान मे रहती है। अदनी सी खेती मे बसर करते परिवार के दो बेटे (ऊषा के बड़े सहोदर भाई ) परदेस मे मजदूरी करते है। बेहद सादगी पूर्ण पहनावे की धारण कर्ता ऊषा निषाद स्वभाव से स्वाभिमानी व सत्य की राह पर आक्रामक आंदोलन के लिए चर्चित है। लेकिन किसी पर दुष्कर्म का झूठा केस या अवैध उगाही का कोई ऑडियो, वीडियो आज तक सोशल मीडिया पर वायरल नही हुआ जैसा आरोप खदान खंड 77 के विजय साचान ने अपने आकाओं के रहमोकरम पर गरीब बेटी के ऊपर लगाया है।


धारा 151 शांति भंग के चालान से छूटने के बाद ऊषा बाँदा बहन के घर आ गई थी-


इस घटनाक्रम का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि दिनांक 16 मई को आंदोलन करते वक्त जब खपटिहा पुलिस चौकी ने ऊषा सहित अन्य को शांति भंग मे उठाया था। तब भी यह सूचना पुलिस को विजय सचान ने ही दी थी जो 17 मई के मुकदमा संख्या 0114/25 का वादी मुकदमा व खदान इंचार्ज है। साथ ही इस दिन मौके पर स्थानीय प्रशासन भी उपस्थित था। जिसमें तहसीलदार राधेश्याम की गरीब बेटी को दी गई गाली किसानों ने सुनी है।

यदि ऐसा नही था तो द वायर के संपादक वरदहस्त राजन मामले मिली सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइंस को ताक पर रखकर सांडी मे महिलाओं के सूचना उपकरण / मोबाइल को पुलिस ने कब्जे मे क्यो लिया है। वहीं धारा 151 मे चलान से छूटने के बाद ऊषा निषाद शहर बाँदा अपनी बड़ी बहन के घर जरैली कोठी आ जाती है। अगली सुबह दिन शनिवार 17 मई को मोबाइल लेने के लिए भतीजे सर्वेश निषाद के साथ मोटरसाइकिल मे बैठकर खपटिहा चौकी पहुंचती है। सीसीटीवी फुटेज इसकी तस्दीक कर देंगे। फिर वहीं खदान मालिक से हल्के की पुलिस व्यवस्था मे थाना पैलानी उप निरीक्षक रौशन गुप्ता, एसडीएम शशि भूषण तहसीलदार राधेश्याम की गोलबंदी मे जैकी व हबीब सिद्दीकी के सांठगांठ से खदान इंचार्ज विजय सचान को आगे करके तहरीर दिलाकर ऊषा निषाद के विरुद्ध एक नई एफआईआर प्लांट कर दी जाती है। ताकि इस लड़की की मजबूत व्यवस्था आगामी 30 जून तक हो सके। वहीं आंदोलन नेतृत्व कर्ता को सीधा टारगेट करने के वास्ते यह षड़यंत्र किया जाता है जिससे गांव के किसानों, महिलाओं मे अफसरों और मौरम पट्टेधारक के प्रति भय का वातावरण परिदृश्य मे तब्दील हो जाएगा तो कोई आगे नही आएगा। फिर अगले पंद्रह दिन 30 जून तक बेखौफ खनन माफिया बनाम प्रशासन का काला कारोबार पोषित होता रहेगा। इस खदान पर अवैध खनन की सारी इंतहा पार करके लाल सोना लूटकर बेचने का काम रातदिन जारी है। शेष अभियान तीन माह बाद अक्टूबर से पुनः देखा जाएगा। उल्लेखनीय है क्या 16 मई को विजय साचान ऊषा निषाद द्वारा एक सप्ताह पूर्व वसूले गए 50 हजार रकम व दुष्कर्म केस मे फंसाने की तहरीर नही दे सकता था ? यदि दी थी तो दिनांक 16 मई को धारा 151 शांति भंग / बीएनएस की धारा अनुसार चलान क्यों काटा गया था ? तभी सीधे मुकदमा संख्या 0114?25 थाना पैलानी लिखना चाहिए था। लेकिन ऊषा को अकेले जेल भेजना ज़रूरी चाहिए था अलबत्ता यह कृत्य शनिवार को किया गया। यहां साज़िश कर्ता ही इस रहस्यमय एफआईआर का मूलाधार है जिसने खुद पुलिस को किसानों द्वारा खदान स्थल पर शांति भंग करने की सूचना दी थी। यह बात एसडीएम व पैलानी उपनिरीक्षक रोशन गुप्ता के पाबंद नोटिस आख्या पर लिखा है। जिसमे ब्यूरोक्रेसी ने अपने दागदार किरदार को सहभागी बनाया है। जाहिर है मौरम कारोबार मे आकंठ रुपया है जिसको मौका मिले तो कद्दावर लोग छोड़ना नही चाहते है। संवाददाता की महिला किसान के भतीजे से वार्ता एक अधिवक्ता के माध्यम से जब हुई तो उन्होंने पूरी कहानी बयान कर दी। महिला किसान ऊषा निषाद अक्सर इस दोयम सिस्टम की शिकार रहीं है। ये मुकदमे उन्ही का उपहार है।

बाँदा पुलिस ने वर्ष 2022 मे मुकदमा अपराध संख्या 424/22 नगर कोतवाली झूठा लिखा –


तत्कालीन अमलोर खदान खंड 7 से उठा खबरिया विवाद अफसरों को इतना खला कि मौरम माफिया / गैंगस्टर विपुल त्यागी खास हिस्सेदार के इशारे पर सूचना संसार संवाददाता (उस वक्त द वाइस आफ बुंदेलखंड डिजीटल एडिटर थे) पर ही 15 साल पुराने अतर्रा रहवासी दुश्मन राजाभैया यादव को खोजकर उसकी कार्यकर्ता रही ग्राम मानिकपुर बगदरी, चित्रकूट की दलित ललिता पत्नी कमलेकर प्रसाद से झूठा मुकदमा अपराध संख्या 424/22 नगर कोतवाली मे दर्ज किया गया। तमाम बड़ी धारा तत्कालीन पुलिस अफसरों ने लगा दी और सिविल लाइन क्षेत्र (संवाददाता का गृह निवास परिक्षेत्र) एडीएम आवास के सामने, डिग्री कालेज मैदान मे प्रदर्शनी स्थल की घटना दर्शाकर एफआईआर लिख दी गई। काल्पनिक घटना को 25 मई 2022 का दर्शाया गया और 6 दिन बाद 31 मई को सीधे कप्तान साहब अभिनंदन सिंह के आदेश पर नगर कोतवाल ने मुकदमा लिख दिया। पूरी स्क्रिप्ट तैयार की गई थी कि कैसे पत्रकार का सम्मान व चरित्र धूल धूसर किया जाए। इसके विरोध मे जब संवाददाता / पर्यावरण पैरोकार के परिजन व ग्रामीणों ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय मे प्रोटेस्ट किया तो उन पर भी झूठा मुकदमा अपराध संख्या 428/22 नगर कोतवाली ने महिला एसआई मोनी निषाद से लिखवाई गई। विडंबना है कि इन दोनों मुकदमे की जालसाजी जानते हुए फर्जी चार्जशीट / आरोपपत्र माननीय न्यायालय मे सीओ सिटी व नगर कोतवाल राजेन्द्र सिंह रजावत ने दाखिल की थी। क्योंकि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्री अभिनंदन सिनवः जी का व्यक्तिगत इंटरेस्ट / दबाव आईओ (क्रमशः श्री राकेश कुमार सिंह सीओ सिटी / श्रीमती अंबुजा जी) पर था। यह तथ्य आईओ ने पीड़ितों को बतलाए थे। सनद रहे इन दोनों मुकदमों की पोलपट्टी बीते 17 दिसंबर 2024 को वादी मुकदमा ललिता व केस की गवाह मीरा राजपूत ने पुलिस अधीक्षक रहे श्री अंकुर अग्रवाल जी के समक्ष व मीडिया को उजागर कर दी है। लेकिन फिर भी भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी की अनैतिकता ऐसी की इन मुकदमों की पुनः जांच अर्थात रि-इंवेस्टीगेशन नही करा पा रहें है। उधर फर्जी मुकदमा लिखवाने वाला स्वयं अपने कर्मो से ज़िला कारागार पहुंच गया। किंतु षड़यंत्र को झेलते पीड़ित कचहरी और न्यायपालिका के चक्कर काटते रहते है।

मुकदमा अपराध संख्या 0187/18 नगर कोतवाली बाँदा व मुकदमा संख्या 078/2021 भी संवाददाता पर सिस्टम की मार है-

यह दोनो मुकदमे भी पुलिसिया तिकड़म को खोलते है। जिसमे मुकदमा अपराध संख्या 0187/2018 नगर कोतवाली मे वादी मुकदमा पंकज शुक्ला पुत्र डाक्टर नंदलाल शुक्ला ( वर्तमान मनरेगा लोकपाल/पूर्व प्राचार्य) की साज़िश पर तत्कालीन अफसरों ने लिखा था। तब जिलाधिकारी श्री डीपी गिरी (दिव्यप्रकाश गिरी) जी ने जन आंदोलन का थोड़ा साथ दिया था। जिससे सरकारी संपति हथियाने वाले मौजूदा मनरेगा लोकपाल पर फौरी कार्यवाही हो सकी थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू कालेज की ज़मीन छूट गई लेकिन प्राचार्य आवास आज तक ब्यूरोक्रेसी खाली नही करा सकी है क्योंकि आत्मबल कमजोर है। वहीं मुकदमा अपराध संख्या 078/21 थाना जसपुरा भी अमलोर खदान से उठे विवाद और स्थानीय नागरिक व खदान हिस्सेदार के खास रहे वादी मुकदमा की देन है। मुकदमा लिख गया,चार्जशीट आ गई जब कोर्ट से सम्मन आया तब अभियुक्त बनाये गए संवाददाता को जानकारी मिलती है। इन सभी मे केस डायरी के लोचे देखकर न्याय व्यवस्था और कार्यप्रणाली से कोफ्त होता है। क्या वास्तविकता मे लोकतंत्र कोलैप्स हो रहा है। क्या मीडिया सरकारी नियंत्रण का ‘पट्टाधारक टॉमी’ बन दी गई है ? जो सत्य लिख देता उसको अर्बन नक्सली, नकारात्मक और सरकार की बुराई करने वाला घोषित कर दिया जाता है। ज़िले मे ऐसे दर्जनों पीड़ित होंगे जिनकी केस डायरी ही उनके जीवन के अनुभवों एवं कष्टों की चलती-फिरती पिक्चर है जिसे देखना तो समाज भी नही चाहता है क्योंकि समाज रोजीरोटी, परिवार की जद्दोजहद मे इस भयावह व्यवस्था से तौबा-तौबा करता है।

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