बात बिहार की करें तो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) सत्ता में रहें या विपक्ष में, उनकी प्रासंगिकता बनी रही है। चारा घोटाले (Fodder Scam) के दुमका कोषागार के मामले में उनकी जमानत अर्जी पर अब शनिवार को सुनवाई होगी। शनिवार को उन्हें जमानत मिले या नहीं, वे विपक्ष की राजनीति की धुरी बने रहेंगे। फिलहाल लालू चारा घोटाला में जेल की सजा के तहत दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (Delhi AIIMS) में इलाज करा रहे हैं। रांची हाईकोर्ट (Ranchi High Court) में उनकी जमानत पर सुनवाई पर सभी की नजरों टिकीं हैं। लालू परिवार (Lalu Family) और आरजेडी को उनकी जमानत की उम्मीद है।
विदित हो कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जमानत पर शुक्रवार को रांची हाईकोर्ट (Ranchi High Court) में सुनवाई होनी थी, लेकिन कोरोनावायरस संक्रमण पर नियंत्रण के लिए हाईकोर्ट परिसर सैनिटाइजेशन के लिए बंद कर दिया गया है। इस कारण अब उनकी जमानत पर शनिवार (17 अप्रैल) को सुनवाई होगी। रांची हाई कोर्ट में यह मामला जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत में सूचीबद्ध है, जिसमें सीबीआइ ने जवाब दाखिल कर जमानत का विरोध किया है।
बिहार में हारे तो केंद्र में रेल मंत्री बन चर्चा में आए
लालू की राजनीति पर साल 2005 में तब ग्रहण लगा था, जब बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई सरकार का गठन हुआ था। लेकिन लालू ने दूर नहीं करते हुए दिल्ली को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया। फिर केंद्र सरकार में रेल मंत्री के रूप में तब चर्चा में आए, जब घाटे में चल रहे रेलवे को पहली बार मुनाफे में ला दिया।
बिहार की सत्ता छूटी, चारा घोटाला में गए जेल
आगे बिहार में महागठबंधन की नीतीश सरकार के साथ फिर बिहार की सत्ता में आना, फिर नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड का महागठबंधन छोड़कर फिर एनडीए में शामिल होना भी बड़ा घटनाक्रम रहा, जिससे लालू की राजनीति को आघात लगा। लेकिन लालू को सबसे बड़ा आघात लगना अभी शेष था। आरजेडी के बिहार की सत्ता से बाहर होने के बाद झारखंड में चल रहे चारा घोटाला के तीन मामलों में एक-एक कर लालू को सजा हो गई। इसके साथ लालू रांची की होटवार जेल भेज दिए गए।
धीरे-धीरे बनाते गए राजनीति में मजबूत जगह
साल 1990 में जब लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वे तत्कालीन बड़े नेताओं जगन्नाथ मिश्रा, सत्येंद्र नारायण सिंह, भागवत झा आजाद और रामाश्रय प्रसाद सिंह के रहते अपनी मजबूत जगह बना पाएंगे। लेकिन लालू अपनी सूझबूझ से समय के साथ धीरे-धीरे राजनीति के शिखर पर पहुंचने में कामयाब रहे। आज बिहार में राजनीति उनके समर्थन या विरोध के इर्द-गिर्द घूम रही है।
सत्ता से बाहर रहकर भी बने हैं सियासत के केंद्र
लालू के बिहार के बाहर जेल जाने के बाद उनके सियासत के हाशिए पर जाने के कयास लगाए जाने लगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नीतीश कुमार के शासन की लालू-राबड़ी राज के दौर से तुलना के बहाने लालू हमेशा चर्चा में रहे हैं। लालू के मुस्लिम-यादव वोट बैंक के ‘एमवाई समीकरण’ में भले ही कई दलों में सेंध लगा ली हो, लेकिन बिहार के एक वोटबैंक पर उनका प्रभाव आज भी बरकरार है। अपने ठेठ गंवई अंदाज व लोगों से सीधे कनेक्ट करने की काबिलियत के कारण वे आज भी प्रभावी हैं। जेल में रहने के बावजूद उनके ट्वीट व अन्य सोशल मीडिया पोस्ट जनता से सीधे कनेक्ट करते हैं।