@आशीष सागर दीक्षित, बांदा।
- फर्जी रायल्टी वाले ने भुगतान लिया और असली वाला जुर्माना भरने को मजबूर हुआ।
- सिक्योरिटी पेपर और ठेकेदार के यूनिक कोड का गलत इस्तेमाल करने वालों का असली सरगना कौन है ?
- महोबा पुलिस छुटभैये दुमछल्ला अपराधियों को पकड़कर पीठ थपथपा रही है। उधर इस खेल मे शामिल बड़े मालिक और सफेदपोश अपराधी मौज काट रहें है।
- सीएजी की आडिट रिपोर्ट मे यूपी के 6 ज़िलों मे बिना भंडारण लाइसेंस के संचालित होने का खुलासा।
महोबा। ज़िले मे बीते माह सोशल मीडिया मे रीलबाज कुछ युवकों का गिरोह फर्जी रायल्टी के दस्तावेज तैयार करके जारी करने के बड़े खेल मे पकड़ा गया था। उन पर फौरी कार्यवाही भी हुई थी। लेकिन इस फर्जी रायल्टी सिंडिकेट के असली आका महफूज है। ग़ौरतलब है कि सिक्योरिटी पेपर मे एक ही सीरियल नंबर की दो रॉयल्टी कैसे हो सकती है यह जांच का विषय है।
वहीं फर्जी रायल्टी वाले ने सरकारी पोर्टल मे फीड कराकर भुगतान ले लिया जबकिं असली दस्तावेज वाला जुर्माना भर गया है। अब पुलिस और प्रशासन छुटभैये/दुमछल्लो को जेल भेजकर अपनी पीठ थपथपा रही है। उनकी रॉबिनहुड की तर्ज पर वाहवाही है। लेकिन मोटी मलाई खाने वाले ठेकेदार साहब और सिक्योरिटी पेपर के यूनिक कोड का गलत प्रयोग करके बड़ा माल कमानें वाले पट्टा धारक छुट्टा है। वे बड़े अधिकारियों और नेता-मंत्रियों के साथ बैठकी का आनंद ले रहे है।
महोबा के गुगौरा निवासी भैया पंकज परिहार जी इस मसले पर दो टूक कहतें है कि गरीब पादे तो गंध मारता है अमीर की गैस पास हो रही होती है! वाला हाल इस सिस्टम का है।
वे पूछतें है कि क्या इस रायल्टी स्कैंडल मे फर्म ठेकेदार और सिक्योरिटी पेपर धारक दोषी नहीं है ? यदि है तो महोबा पुलिस प्रशासन ने उन्हें आशीर्वाद कैसे किसकी सरपरस्ती मे दे रखा है ? क्या करोडों रुपया कमाने वाले काले कारोबार के खिलाड़ी सिर्फ वे पकड़े गए युवा थे ? या उनके इर्दगिर्द बड़े कद्दावर लोग भी आड़ देकर खड़े है। फिलहाल महोबा का यह फर्जी रायल्टी सिंडिकेट रहस्यमय पहेली की तरह है जिसमें मुख्य किरदार का जवाब मिलना जनता को बाकी है। युवा की धरपकड़ तो छोटी सी झांकी है। महोबा के ग्रेनाइट व स्टोन क्रेशर उद्योग पर हाल ही मे सीएजी ने बड़े खुलासे किए है।
महोबा,बाँदा, चित्रकूट, हमीरपुर समेत 6 ज़िलों मे चल रहे फर्जी स्टोन क्रेशर-
उत्तरप्रदेश सरकार की ज़ीरो टॉलरेंस नीति को धता बतलाकर अफसरों ने सीएजी की रिपोर्ट मुताबिक अंधेरगर्दी की है। आडिट रिपोर्ट अनुसार कुल 6 ज़िलों मे 613 स्टोन क्रेशर प्लांटों को बिना भंडारण लाइसेंस दिए ही संचालन कराया गया है। जिसमे सर्वाधिक फर्जी स्टोन क्रेशर 284 सोनभद्र के है। कैग के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट वाल्यूम नम्बर 9 साल 2024 मे अवैध परिवहन के लिए बिना भंडारण संचालन के ही स्टोन क्रेशर को चलवाया। स्टोन क्रेशर को भंडारण लाइसेंस जारी न करने से यूपी की योगी राज्य सरकार को 61 लाख रुपया की चपत लगी है। जिसके कसूरवार अधिकारी है। सीएजी ने 16 ज़िला मे इसकी जांच की है। जिसमे 6 ज़िलों ने स्टोन क्रेशर को भंडारण लाइसेंस ही नही दिया और वे चलते रहे। उल्लेखनीय है उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अप्रैल 2017 से फरवरी 2023 तक की उपलब्ध कराई सूची मे इन जिलों मे 1335 स्टोन क्रेशर इकाइयां संचालित थी। जिसमे महज 708 क्रेशर को ही पीसीबी ने अनुमति दी थी। नियमतः इन्हें भण्डार करने का लाइसेंस मिलना था लेकिन 613 स्टोन क्रेशर अवैध संचालित होते रहे। मज़ेदार है कि किसी खनिज अधिकारी या पीसीबी ने इस पर कोई कार्यवाही नही की है।
कहां कितने स्टोन क्रेशर प्लांट का लाइसेंस-
यूपी मे सीएजी रिपोर्ट अनुसार सोनभद्र ने 384, बाँदा 30, चित्रकूट 119, हमीरपुर 11, महोबा 311, प्रयागराज 85, सहारनपुर 95 कुल 1035 स्टोन क्रेशर थे। जिसमे पीसीबी / उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोनभद्र मे 284, बांदा मे 9 , चित्रकूट मे 50, हमीरपुर मे 9, महोबा मे 202, प्रयागराज मे 67, सहारनपुर मे 95 को स्वीकृति दी थी। जिसमे सहारनपुर मे 95 को भंडारण लाइसेंस था। शेष हवाहवाई चल रहे थे। सवाल यह कि बसपा और सपा सरकार मे अवैध खनन भ्रष्टाचार पर सीबीआई को उतारने वाली मौजूदा योगी सरकार अपनी इस कार्यसेवा और अफसरों की कार्यशैली पर यूं खामोश क्यों बैठी है ? किसी बड़े मीडिया प्लेटफार्म व टीवी पर इसकी चर्चा तक नही है। क्या यह संघठित लूटतंत्र है जो पर्यावरण को तहसनहस कर देना चाहता है ?