प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट में शृंगार गौरी की नियमित पूजा की मांग के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। हिंदू पक्ष की तरफ से 1937 के दीन मोहम्मद केस का उल्लेख कर बताया गया कि इसमें गवाहों ने शृंगार गौरी की पूजा की बात मानी थी। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता ने कहा कि मंदिर पक्ष चतुराई से केस कायम कर मस्जिद परिसर में पूजा की मांग कर रहा है। प्रकरण में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।
काशी में केवल एक ही विश्वेश्वर स्वयंभू महादेव हैं, जिसे तोड़ा गया
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने कहा, यह भी तय हो चुका है कि यहां मंदिर तोड़ा गया जो कि इस्लाम के अनुसार सही नहीं था। दीन मोहम्मद केस में केवल गुंबद में नमाज पढ़ने की वादी को अनुमति दी गई है। पूरे स्थल को वक्फ घोषित करने की मांग नहीं मानी गई। जैन ने पौराणिक ग्रंथों का उल्लेख करते हुए बताया कि काशी में केवल एक ही विश्वेश्वर स्वयंभू महादेव हैं, जिसे तोड़ा गया। जमीन का स्वामित्व अभी भी मूर्ति में निहित है। मस्जिद का स्वामित्व नहीं है। नमाज पढ़ने की पुरानी परिपाटी के आधार पर अनुमति मांगी गई थी। मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं मिली है।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की कोर्ट में हुई सुनवाई
अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की कोर्ट में हुई। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए बहस की। कहा कि 1937 में दीन मोहम्मद केस में 12 गवाहों ने पूजास्थलों के बारे में बयान दिया है। मस्जिद पक्ष की ओर से खसरा नंबर 9130 को गलत भी बताया जा रहा है और फिर उसका सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। मस्जिद पक्ष आलमगीर मस्जिद शब्द का इस्तेमाल कर रहा है जबकि दीन मोहम्मद केस में ज्ञानवापी मस्जिद शब्द प्रयुक्त हुआ है।