डॉ दिलीप अग्निहोत्री
आपदा काल में कर्तव्य निष्ठा की वास्तविक परख होती है। आज कोरोना संकट में अनेक अधिकारी व कर्मचारी जोखिम उठा कर अपनी सेवाएं दे रहे है। लेकिन गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी पद हटाये गए बी एन सिंह
अपने कर्तव्यों के निर्वाह में विफल साबित हुए। मुख्यमंत्री की उनसे नाराजगी अकारण नहीं थी। योगी आदित्यनाथ दिन रात एक करके लोगों को सुविधाएं उपलब्ध कराने में जुटे है। इसलिए उन्हें जिलाधिकारी के रूप में बी एन सिंह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं हुई।
यह मान सकते है कि कई बार व्यक्ति से चूक हो जाती है। इसमें वह सुधार कर सकता है। योगी की बात को ठीक से समझने की आवश्यकता थी। लेकिन बी एन सिंह ने अपने को सुधारने की जगह जिम्मेदारी से पलायन और अनुशासनहीनता का परिचय दिया है। उन्होने गलती सुधारने की जगह मुख्य सचिव को पत्र लिखा। आपदा के समय पलायन करने वाले अधिकारी का आचरण उचित नहीं कहा जा सकता। शासन में उनको हटा कर तत्काल प्रभाव से हटाते हुए सुहास एल वाई को गौतमबुद्धनगर का जिलाधिकारी नियुक्त कर दिया।
बी एन सिंह को राजस्व परिषद लखनऊ से सम्बद्ध किया गया है। उनके विरुद्ध कोविड-19 की रोकथाम, सर्विलांस में कमी, आउटब्रेक रिस्पाॅन्स कमेटी के अध्यक्ष के रूप में अपने दायित्वों के निर्वहन में लापरवाही बरतने के कारण राज्य सरकार द्वारा विभागीय कार्यवाही के आदेश दिए गए है। औद्योगिक विकास आयुक्त आलोक टण्डन को जांच अधिकारी नामित किया गया है। उनके विरुद्ध यह भी आरोप है कि जनपद की समीक्षा के दौरान उनके द्वारा अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया। समीक्षा के बाद उन्होंने अवकाश का प्रार्थना पत्र दिया।
इतना ही इस पत्र को स्वयं ही मीडिया में जारी कर दिया। बी एन सिंह ने सेवा शर्तों और जिलाधिकारी के रूप में कर्तव्यों का कितना उल्लंघन किया,इसका खुलासा जांच से होगा। लेकिन इतना तय है कि नैतिक व मानवीय आधार भी उनका आचरण अनुचित था।