प्रकरण से संबंधित 10 फरवरी की खबर नीचे लिंक मे पढ़े-
“अपहरण के पांच पुरुष अभियुक्तों को बचाने के लिए आईटी एक्ट मे नामजद 17 महिलाओं की ढाल,
पुलिस अफसरों को गुमराह करते राजाभैया की चाल”….
- सीओ अतर्रा से लेकर डीआईजी दफ्तर तक मुल्जिमान के संगठन चिंगारी का प्रदर्शन।
- एफआईआर तक नही पढ़ते अफसरों से शिकायत प्रार्थना पत्र पढ़कर कार्यवाही के आदेश देने की उम्मीदें कौन करे ?
- दो माह से भटकते पीड़िताओं के अंतर्मन मे व्यवस्था के प्रति अवसाद, भ्रष्टाचार ने डाल रखी है नैतिकता पर ‘मवाद’
बाँदा। बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल का जिला बाँदा उत्तरप्रदेश की इस राज्य सरकार मे ‘अनशन,सत्याग्रह,भूखहड़ताल’ की अवधारणा लगभग खत्म कर चुका है। लगातार शिकायत प्रार्थना पत्र लिए पीड़ित याचक जिलाधिकारी और पुलिस अधिकारियों की चौखट पर नाक रगड़ते है। जनसुनवाई के वक्त दफ्तरों मे बेबसी को रोते आम नागरिक की वेदना सुनने वाला कोई नही है। समाज की संवेदना तो जैसे मृतप्राय हो चुकी है। उत्तरप्रदेश सरकार की यही पुलिस आम जनता पर एनजीओ माफिया, दबंगों द्वारा षड़यंत्र रचकर जब झूठे मुकदमेबाजी कराती है। तब खाकी वालों से सांठगांठ करना आसान होता है।
लेकिन जब फर्जी मुकदमों के मोहरे खुद अपने आकाओं का खुलासा कर देते है और आपबीती बतलाकर स्याह एफआईआर दर्ज कराते है तब पुलिसिया व्यवस्था धृतराष्ट्र बन जाती है। वैसे राज्य सरकार द्वारा जनसुनवाई पोर्टल पर प्रथम रैंक पाकर आत्ममुग्ध ब्यूरोक्रेसी के लिए यह अमानवीय तानाबाना अतिश्योक्ति पूर्ण कार्य नही है।
उदाहरण के लिए बाँदा के अतर्रा कस्बा तहसील के राजाभैया यादव जो विद्याधाम समिति / चिंगारी नाम से महिलाओं का कथित संगठन संचालित करते है उनके कारनामों से इस समय बाँदा की खबरिया दुनिया तरबतर है। समाज के जुझारू कलमकार और सच्चाई पर चलने वालों के ऊपर अपने चिंगारी संगठन की दलित महिलाओं के सहारे फर्जी मुकदमे लादना ताकि उनका चरित्र हनन किया जा सके। फिर अपने चिंगारी नेक्सेस से समाज कल्याण विभाग मे सिस्टम भिड़ाकर अनुसूचित जाति,जनजाति अधिनियम का बेजा लाभार्जन करके आर्थिक मदद लेना। साथ ही बाँदा के न्यायालय मे अभयस्त एक-दो साज़िश विशेषज्ञ अधिवक्ता से उन मुकदमों की पैरवी कराकर देशी-विदेशी फ़ंडरों को एडवोकेसी / जनपैरवी की खबरों से खुश करना यह आम चलन है जिससे फंडिंग हो सके।
गौरतलब है एनजीओ संचालक राजाभैया यादव पर चिंगारी से जुड़ी पूर्व दो महिलाओं ने गत 17 दिसंबर से 2 फरवरी के मध्य 3 एफआईआर दर्ज कराई है। जिसमें मुकदमा अपराध संख्या 0314/2024 दुष्कर्म आदि की एफआईआर है। मुकदमा अपराध संख्या 0315/2024 छेड़छाड़, गाली देने आदि पर दर्ज है। वहीं मुकदमा अपराध संख्या 0043/2025 दिनांक 2 फ़रवरी यह थाना अतर्रा मे ही 5 पुरुष अभियुक्तों पर दलित महिला के अपहरण व 17 महिलाओं पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम / आईटी एक्ट के अंतर्गत लिखा गया है। सत्रह महिलाओं का कुनबा वही है जिन्होंने चिंगारी संयोजिका मुबीना खान के दम पर दलित पीड़िता निवासी ग्राम बगदरी, मानिकपुर व अतर्रा ग्रामीण की राजपूत महिला पर वसूली के मिथ्या आरोप बिना सबूत सोशल मीडिया मे वायरल किये थे।
बतलाते चले कि 2 फरवरी की एफआईआर मे अपहरण के साक्ष्यों के साथ एक वीडियो पेनड्राइव भी थाना प्रभारी अतर्रा श्री कुलदीप तिवारी जी को दी गई थी। जिसका अध्ययन करने के बाद उन्होंने अपहरण का मुकदमा लिखा था। यह प्रार्थना पत्र 30 जनवरी को दलित पीड़िता ने अतर्रा थाने सहित अन्य अफसरों / आईआरजीएस पोर्टल पर प्रेषण किया था। अब चलिए मान लेते है कि दलित पीड़िता ने पहले 13 दिसंबर फिर एफआईआर मे 14 दिसंबर को अपहरण की बात लिखी है जो संदिग्ध है किंतु सवाल यह कि दलित पीड़िता का ओहन के जंगल और रेलवे ट्रैक पर चित्रकूट 112 पुलिस व सरैंया चौकी टीम को पीड़िता का बरामद होना, उसके मौका वारदात के वीडियो की जांच तो होनी चाहिए कि यह षड़यंत्र या साज़िश किसने की है ? ज़िम्मेदार व्यक्ति का खुलासा होना चाहिए क्योंकि यह वीडियो घटनाक्रम की पुष्टि करतें है। जिस अवस्था मे दलित महिला मिली थी वह सामान्य घटना नही है।
राजाभैया और मुबीना अफसरों को बतला रहे साहब 22 लोगों पर अपहरण की रिपोर्ट दर्ज है-
चित्रकूट-बाँदा मंडल के डीआईजी से लेकर अतर्रा सीओ तक निराधार तथ्यों का माहौल बनाते विद्याधाम समिति के राजाभैया यादव और चिंगारी संयोजिका मुबीना खान अफसरों को रटा रहीं है कि साहब 22 लोगों पर अपहरण का मुकदमा लिखा गया है। जाहिर है ग्रामीण परिवेश से आने वाले परिवार और आईटी एक्ट मे नामजद 17 महिलाओं को भी यही बताया गया है कि आपका नाम भी अपहरण के मुकदमे मे शामिल है। ठीक वैसे जैसे दोयम जींवन जीने वाले गांववासियों को चिंगारी झांसे मे फंसाकर ( राशन, कपड़े, कम्बल आदि देकर ) फर्जी मुकदमों को करवाने और भीड़ का हिस्सा बनने का मोहरा बनाती है। उल्लेखनीय है बीते डेढ़ दशक से राजाभैया यादव इसी चिंगारी से समाज के जन सामान्य सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, भ्रष्टाचार पर बोलने वालों का न्यायिक शिकार कर रहें है। खासबात है कि इस कुचक्र मे राजाभैया का साथ बाँदा की पतनशील पत्रकारिता ने दिया है। वहीं प्रेस विज्ञप्ति को ही खबर का आधार स्वीकार करने वाले पत्रकार की संख्या ज़िले मे पर्याप्त है। खाशकर उन इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट पत्रकारों की भी जो राजाभैया यादव के तिलिस्म से प्रसन्न होकर भुजयारी पुरवा तो कभी देवरती समाधान केंद्र मे मछली, शराब पार्टी और भर्ता-टिक्कड़ का लुफ्त लेते है।
डेढ़ दशक मे एक मॉडल नही, कोई पत्रकार का सवाल नही-
राजाभैया यादव चिंगारी के सहारे अपने छद्म स्वरूप का मायाजाल विद्याधाम के अनुदानी हुनर से दुरस्त किये है। बावजूद इसके सन 2002 से पंजीकृत एनजीओ का डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी एक आदर्श मॉडल ग्राम विकास या समाज उत्थान मे उदाहरण को मौजूद नही है। जबकि इस दरम्यान करोड़ों रुपया देशी विदेशी अनुदान संस्था के एफसीआरए खाते मे आया है। इसकी बानगी 21 जनवरी को संस्था संचालक द्वारा हाईकोर्ट मे दी गई वित्तीय जानकारी है। लेकिन उसमें भी लोचा किया गया कि बिल बाउचर, बजट प्रोग्राम डिटेल छुपा ली गई ज़िससे ग्राउंड पर अन्वेषण या मूल्यांकन न किया जा सके। ठीक वही योजनाबद्ध रणनीति तीन एफआईआर पर अधिकारियों / पुलिस अफसरों को लामबंद करने को चल रही है कि ‘साहब 22 लोगों पर अपहरण’ लिखा दिया है। राजाभैया यादव का यह प्रलाप उस दौर मे क्यों नही आता है जब वह चिंगारी की महिला से अन्य लोगों के परिजनों, व्यक्तिगत उनपर फर्जी मुकदमे पेशेवर अधिवक्ता के जरिये लिखवाते है ?
तब बाँदा के पीत पत्रकार सवाल तक नही पूछते है। ब्यूरोक्रेसी तब झूठे मुकदमे मे निर्दोषों को जेल भेजती है और घूसखोरी से फर्जी चार्जशीट लगती है। आज वही राजाभैया चिंगारी का रोना लेकर विद्याधाम के कुकृत्यों पर पर्दा डालने की ढकोसला वादी नूराकुश्ती करते नजर आते है।
फिलहाल पुलिस अफसरों से शिकायत प्रार्थना पत्र और पीड़िता के द्वारा लिखवाई एफआईआर पढ़ने की आशा तो की ही जा सकती है जिससे माननीय न्यायालय की साख पर बट्टा न लग सके।