पश्चिम बंगाल: ज्यादा हिंसा, ज्यादा वोटिंग के क्या हैं सियासी मायने

लोकसभा चुनाव के चौथे चरण का मतदान संपन्न हो चुका है और सात चरणों वाले इस चुनाव में 3 चरण की वोटिंग और बाकी है. पिछले चार चरणों में पश्चिम बंगाल की 42 में 18 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है और चारों बार सूबे की जनता ने बड़ी तादाद में अपने घरों से निकलकर वोट दिया है. बंगाल में बंपर वोटिंग के बीच हिंसा की घटनाएं भी लगातार हुईं हैं. बावजूद इसके मतदाताओं के जोश को कम करने में यह नाकाम साबित हुई हैं.

पश्चिम बंगाल में वैसे तो मतदान फीसदी ज्यादा ही रहता है और अगर पिछले दो लोकसभा चुनावों की बात करें तो देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहां सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में 81.40 फीसदी वोट पड़े थे और 2014 की मोदी लहर में भी राज्य की 82.17 फीसदी जनता ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. बंगाल की बंपर वोटिंग दिखाती है कि विभिन्न दलों का काडर यहां अपने नेताओं के साथ मजबूती से खड़ा है. भीषण गर्मी और हिंसा की घटनाएं भी बंगाल की जनता का मनोबल तोड़ने में नाकाफी रहती हैं.

बंपर वोटिंग और ज्यादा हिंसा

पहले चरण में बंगाल की 2 सीटों पर 81 फीसदी वोटिंग हुई तो दूसरे चरण में 3 सीटों पर 81.68 फीसदी वोट पड़े. इसके अलावा तीसरे चरण में 5 सीटों पर 79.36 वोटिंग हुई और सोमवार को चौथे चरण में राज्य की 8 सीटों पर वोट डाले गए. इस चौथे चरण में भी बंगाल के 76.66 वोटरों ने अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष में मतदान किया. अब तक हुए चुनाव में राज्य में 80 फीसदी के करीब औसत वोटिंग हो चुकी है.

पिछले चारों ही चरणों में सूबे के विभिन्न इलाकों से हिंसा की घटनाएं भी देखने को मिलीं. चौथे चरण में बीजेपी के कब्जे वाली आसनसोल सीट पर टीएमसी और बीजेपी समर्थकों में झड़प देखने को मिली. यहां तक कि केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद बाबुल सुप्रिया के खिलाफ FIR तक दर्ज कराई गई है. टीएमसी और बीजेपी दोनों ने ही चौथे चरण की वोटिंग के बीच चुनाव आयोग में एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.

दूसरी ओर वीरभूम जिले से भी उपद्रव की घटनाएं सामने आई हैं. जबकि इससे पहले तीसरे चरण में सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम के कफीले पर वोटिंग के दौरान इस्लामपुर में हमला हुआ था. यहां चुनावी हिंसा का इतिहास पुराना है, हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण साबित हुए थे.

पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के लिए बंगाल किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद बंगाल पर पैनी नजर बनाए हुए हैं. पार्टी का दावा है कि सूबे में इस बार उन्हें पहले से काफी ज्यादा सीटें मिलेंगी.

बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें हैं और पिछले बार टीएमसी को यहां 36 सीटों पर जीत मिली थी. इसके अलावा कांग्रेस सिर्फ 4 और लेफ्ट 2 सीटों पर सिमट गया था. बीजेपी को तब 2 सीटें मिली थीं लेकिन इस चुनाव में पार्टी 20 से ज्यादा सीटें जीतने का टारगेट रखा है. बीजेपी ने केंद्र में सत्ता हासिल करने के बाद लेफ्ट का सबसे पुराना गढ़ त्रिपुरा ढहा दिया और वहां विधानसभा चुनाव जीत अकेले सरकार बनाकर इतिहास रच दिया. अब बीजेपी का फोकस ओडिशा और बंगाल जैसे राज्यों पर है, जहां क्षेत्रीय दलों का दबदबा रहा है.

मोदी Vs ममता

मोदी और ममता की सियासी जंग किसी से छुपी हुई नहीं है. केंद्र में बैठी सरकार पर अगर कोई नेता सबसे तीखे हमले के लिए जाना जाता है तो उसका नाम ममता बनर्जी ही है. 2014 में बीजेपी को बंगाल में सिर्फ 2 लोकसभा सीटें मिली थीं, लेकिन पार्टी ने पिछले 5 साल में यहां अपने संगठन को काफी मजबूत कर लिया है. इसका नतीजा है कि बीजेपी राज्य में चौथे नंबर से दूसरे नंबर की पार्टी बंगाल में बन गई है. वहीं, अब बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हो या फिर NRC ऐसे तमाम ज्वलंत मुद्दों पर दोनों दलों के बीच तलवारें पहले से खिंची हुई हैं.

हालांकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी बंगाल में बीजेपी के लिए कोई भी स्पेस नहीं देना चाहती हैं. यही वजह है कि दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ता अपने नेता को मजबूत करने के इरादे से वोट करने जाते हैं और पार्टी के प्रति उनके जुनून का गवाह यह बढ़ता वोटिंग प्रतिशत बनता है.

कहा यह भी जा रहा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों से होने वाली नुकसान की भरपाई के लिए बीजेपी ने बंगाल-ओडिशा को चुना है. इन सभी राज्यों से 2014 के चुनाव में बीजेपी को अपार समर्थन और सीटें हासिल हुई थीं लेकिन इस बार उसे दोहरा पाना चुनौतीपूर्ण साबित होगा. ऐसे में बीजेपी की रणनीति है कि इन राज्यों में अगर सीटों का नुकसान होता है तो बंगाल जैसे राज्य में बेहतर प्रदर्शन कर उसकी भरपाई की जा सके. इसके लिए कार्यकर्ताओं को साफ संदेश भी दिए गए हैं.

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