नामदार, कामदार और क्लीन चिट


सहीराम
देखिए साहब यह चुनाव का वक्त है, क्लीन चिट बांटने का वक्त नहीं है। फिर भी देश में दनादन क्लीन चिटें बंट रही हैं। प्रधानमंत्री को क्लीन चिट, विपक्ष के नेता को क्लीन चिट। बल्कि अब तो मुख्य न्यायाधीश को भी क्लीन चिट मिल गयी है। पर सच पूछो तो क्लीन चिट बांटने का यह सही समय नहीं है। क्लीन चिट बांटने का सही समय वह होता है, जब देश में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हों। तब अगर क्लीन चिट मिले तो लोग समझ जाते हैं कि भाई सचमुच इसकी जरूरत है। बिना घोटालों और उनके आरोपों के क्लीन चिट का कोई मतलब नहीं होता।
और चुनाव का समय तो वैसे भी पैसा बांटने का, दारू बांटने का, साडिय़़ां और बिंदियां बांटने का होता है। यही समय होता है जब चुनाव आयोग जनता में बंटने वाली इन चीजों को जब्त भी करता है। इस बार तो पता चला कि पैसे और दारू की रिकार्ड जब्ती हुई है। अगर किसी तरह यह जब्ती पुलिस के खाते में दर्ज हो जाती तो उसका तो रिकार्ड ही बन जाता और सुधर भी जाता, जो कि अक्सर बिगड़ा ही रहता है। खैर, एक अच्छी बात यह है कि इस बार तो मामला बताते हैं कि जेवर बांटने तक भी चला गया है। विकास इसी तरह होता है भाई। जनता सड़क, बिजली, पानी मांगने से आगे जा चुकी है।
वैसे चुनाव आयोग पैसा और दारू तो पहले भी जब्त करता रहा है पर इस बार वह गहने-जेवर वगैरह भी जब्त कर रहा है। अभी सभी पार्टियां जो गरीब-गरीब का जाप कर रही हैं, उनमें से जो भी सरकार में आए, उसे यह कानून बना देना चाहिए कि चुनाव आयोग द्वारा जब्त किया गया यह जेवर गरीबों की कन्याओं की शादी में दिया जाएगा। इसका विरोध करने वालों को यह कह कर शांत किया जा सकता है कि भाई कानून बनने से ही सब कुछ नहीं हो जाता।
खैर, असली बात यह है कि इस चुनाव में क्लीन चिटें भी खूब बंट रही हैं। बस समस्या यही है कि वे जनता के किसी काम की नहीं। पर एक अच्छी बात यह है कि मोदीजी जैसे तरह-तरह के सर्वे में बढ़त बनाए हुए हैं, वैसे ही चुनाव आयोग से क्लीन चिटें हासिल करने में भी बढ़त बनाए हुए हैं। उन्हें एक-एक दिन में दो-दो, तीन-तीन क्लीन चिटें मिल रही हैं।
राहुल गांधी इस मामले में भी पिछड़ रहे हैं। वैसे तो चुनाव के बाद यह क्लीन चिटें किसी काम की नहीं रहेंगी, फिर भी किसी दिन मोदीजी यह दावा कर सकते हैं कि मेरे पास राहुल गांधी से ज्यादा क्लीन चिटें हैं, इसलिए प्रधानमंत्री बनने का उनसे ज्यादा हकदार मैं ही हूं।

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