सेना में वीरांगनाएं

सेना में महिलाओं की भूमिकाओं के विस्तार के क्रम में सरकार ने अब जवान के रूप में उनके लिये द्वार खोल दिये हैं। अब तक वे थलसेना, वायुसेना  और नौसेना में अधिकारियों के रूप में विभिन्न भूमिकाओं में नजर आती रही थीं। अब सेना में मिलिट्री पुलिस कैडर में महिलाओं का कोटा बीस प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। फिलहाल जिस चयन प्रक्रिया की घोषणा की गई है, उसमें ऑनलाइन प्रक्रिया से सौ सेना पुलिस महिला जवानों की भर्ती की जा रही है, जिसकी प्रक्रिया जून तक चलेगी। इस योजना का यह प्रस्ताव थलसेना अध्यक्ष बिपिन रावत ने पदभार संभालने के बाद रखा था, जिसे रक्षा मंत्रालय ने अब जाकर अनुमति दी है। दरअसल, अब तक सेना में शिक्षा, कानून, सिग्नल कोर,  इंजीनियरिंग व चिकित्सा  शाखाओं में ही महिलाओं की भर्ती होती थी। अब पहली बार महिला सैनिकों की रूप में भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई है। दरअसल, सेना पुलिस की भूमिका सैन्य क्षेत्रों के भीतर पुलिस कार्य की होती है। धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से महिलाओं की संख्या को बढ़ाया जायेगा। इस भूमिका का विस्तार सेना की मदद के साथ ही महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की जांच तक हो सकता है। इसके अलावा सेना पुलिस के जवानों को सैनिक की तरह प्रशिक्षण तो दिया जाता है मगर उन्हें युद्ध क्षेत्र में नहीं भेजा जाता। यह बदलाव उम्मीद जगाने वाला है क्योंकि थलसेना में अन्य विकसित देशों के मुकाबले महिलाओं की संख्या बहुत कम है, जो करीब चार फीसदी बतायी जाती है। जबकि वायुसेना में यह स्थिति बेहतर है, जहां महिलाओं की संख्या 14 फीसदी है वहीं नौसेना में भी यह संख्या काफी कम है। महिलाओं की सेना में भूमिका बढ़ाने के मकसद से हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने का फैसला भी किया है। इसी क्रम में पर्सनल बिलो ऑफिसर रैंक में महिलाओं को शामिल किये जाने का फैसला ऐतिहासिक कहा जा सकता है।नि:संदेह भारत के इतिहास में महिला योद्धाओं की गौरवशाली शृंखला रही है। रानी लक्ष्मीबाई, चित्तूर की रानी चेनम्मा, चांद बीबी, रानी दुर्गावती ने युद्ध के मोर्चे पर अपनी वीरता से सुनहरी इबारत लिखी है। लेकिन आजादी के बाद देश में इस बात को लेकर बहस होती रही है कि क्या महिलाओं को युद्ध के मोर्चे पर भेजा जा सकता है  पिछले दिनों थल सेनाध्यक्ष का एक बयान चर्चाओं में रहा था कि अधिकांश सैनिक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं जो महिला अधिकारियों का नेतृत्व स्वीकार नहीं कर पायेंगे। सवाल यह भी उठाया जाता रहा है कि यदि महिलाएं सैनिक युद्ध के दौरान दुश्मन सेना की गिरफ्त में आती हैं तो उनके साथ बुरा व्यवहार हो सकता है। दरअसल, इस तरह की तमाम बहसों के बाद विकसित देशों में युद्ध के मोर्चे पर महिलाओं की भूमिका बढ़ी है। इसके पक्ष में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के संरक्षण की बात भी कही गई है। बहरहाल, सेना में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत विकसित देशों के मुकाबले पीछे है, मगर इस दिशा में तेजी से कार्य किया जा रहा है। हालिया फैसले को इसी दिशा में एक बड़ा कदम कहा जा सकता है। वायुसेना में 14 फीसदी महिलाओं की संख्या इस बात का प्रमाण है कि स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। यहां तक कि अब तो वे युद्धक विमान भी उड़ाने लगी हैं। पहले वे शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिये लॉजिस्टिक, लॉ, चिकित्सा, एयर ट्रैफिक कंट्रोल  आदि के दायित्वों को निभाती रही हैं। अब सरकार उनकी सेवा अवधि बढ़ाने की दिशा में  अग्रसर है। नि:संदेह यदि देश की बेटियां सेना के जोखिमों को महसूस करते हुए इस क्षेत्र में अपना भविष्य संवारने आना चाहती हैं तो उन्हें मौका मिलना ही चाहिए। उनके लिये हर तरह की भूमिका निभाने के अवसर देना वक्त की जरूरत है। यह अच्छी बात है कि भारत सरकार क्रमबद्ध ढंग से इस दिशा में बढ़ रही है। नि:संदेह देश में पहली महिला रक्षामंत्री की पारी में ऐसे बदलाव की उम्मीद देश की आधी दुनिया भी कर रही थी।००

Like us share us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *