भारतीय किसान यूनियन (मान) के नेता गुणी प्रकाश ने भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) को सप्ताह भर पहले यह चैलेंज कर चुके हैं कि गुरनाम चढ़ूनी-भिंडरावाला मुर्दाबाद। खालिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाकर दिखाएं। लेकिन चढ़ूनी उसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। उनका मौन यह बताता है कि वह ये नारे नहीं लगा सकते। वह कहते हैं न, मौनं स्वीकार लक्षणं। वैसे चढ़ूनी तो क्या कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन में शामिल किसी भी नेता के लिए यह नारा लगाना नामुमिकन तो नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है, क्योंकि आंदोलन में शामिल हर नेता को यह भली भांति पता है कि खालिस्तान समर्थक आंदोलन में बड़ी संख्या में शामिल हैं। यही कारण है कि कई नेताओं ने आंदोलन से दूरी बना ली है।
कुछ ने घोषित रूप से तो कुछ ने अघोषित रूप से। जैसे भारतीय राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के वीरेंद्र मोहन सिंह (वीएम सिंह)। अघोषित रूप से आंदोलन से दूर रह रहे नेताओं में सबसे बड़ा नाम शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का का। यद्यपि वह पारिवारिक कारणों का हवाला देते हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि अब आंदोलन में शामिल अराजक तत्त्वों की गतिविधियों से उनका मन खट्टा हो चुका है।
रही बात इस समय आंदोलन के सबसे चर्चित चेहरे राकेश टिकैत की तो वह खुद ही राष्ट्रविरोधी तत्त्वों से नफरत करते हैं। यही कारण है कि वह अन्य नेताओं से अलग हटकर चल रहे हैं। वह किसान आंदोलन को तो चरम परिणिति पर तो पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन देश विरोधी और अराजक तत्त्वों की आंदोलन में भागीदारी भी उन्हें स्वीकार नहीं है।
इसीलिए उन्होंने छब्बीस जून को संयुक्त किसान मोर्चे के राजभवनों के घेराव से खुद को दूर रखा। जब टिकैत नहीं गए तो उनके समर्थकों के जाने का प्रश्न ही नहीं था। इसीलिए चढ़ूनी और योगेंद्र यादव के नेतृत्व में पंचकूला में महज कुछ सौ लोग पहुंचे। यदि टिकैत उसमें शामिल होते तो संख्या इतनी होती कि भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता। चंडीगढ़ जहां हरियाणा का राजभवन है, वहां हरियाणा से लोग नहीं पहुंचे तो केवल इसीलिए कि हरियाणा के जो लोग आंदोलन में शामिल हैं, वे अपना नेता राकेश टिकैत को मानते हैं और राकेश टिकैत की तरह वे भी आंदोलन के तो पुरजोर समर्थन में हैं, लेकिन आंदोलन में शामिल राष्ट्रविरोधी तत्व उन्हें भी नागवार गुजरते हैं। अब ऐसे में गुरनाम चढ़ूनी और योगेंद्र यादव भले ही हरियाणा के हैं लेकिन हरियाणा के आंदोलनकारी उन्हें अपना नेता मानने से परहेज करते हैं और यदि गुणीप्रकाश का चैलेंज स्वीकार कर चढ़ूनी खालिस्तान मुर्दाबाद, भिंडरावाला मुर्दाबाद का नारा लगा दें तो उनकी बची खुची साख भी नहीं रहेगी।
विदेश में बैठे खालिस्तान समर्थकों से कुछ आंदोलनकारी नेताओं को अच्छी खासी रकम भी मिलती है। इसके बावजूद वे मौन रहते हैं। क्यों? इसके दो प्रमुख कारण हैं, एक तो खालिस्तान समर्थकों सहित राष्ट्रविरोधी तत्वों की आंदोलन में बड़ी संख्या में भागीदारी है। उनके संख्या बल पर ही आंदोलन के नेता स्वयं को नेता के रूप में पेश करते हैं। यदि आंदोलन में संख्या ही नहीं रहेगी तो वे नेता भी नहीं माने जाएंगे। फिर सरकार तो क्या कोई भी उन्हें नहीं पूछेगा। दूसरा कारण यह है कि वे आंदोलन में शामिल राष्ट्रविरोधी अराजक तत्वों से खुद भयाक्रांत हैं और इसीलिए उनका विरोध तो दूर वक्त-जरूरत उनके अपकृत्यों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं।