पैलानी थाना क्षेत्र के अदरी गांव मे अजगर निकला तो ग्राम वासी उसके पीछे भागने लगे।
खेतों मे सरपट दौड़ रहा अजगर उनके लिए कौतूहल का विषय था जबकि उन्ही के बुजुर्गों ने कभी इन्ही खेतों और उनसे लगे जंगलों मे अजगर, काले नाग, विषखांपर,लकड़बग्घा, बघर्रा, सियांर, चीतल, लोमड़ी, तेंदुआ,बाघ तक खुली आँखों से देखे होंगे।
विकास की पैबंद ने गांवो की बसावट और सोच बदल दी है। विकास ने गांव मे घुसपैठ की शहर की शराब गांव तक और गांव का दूध, छांछ-मट्ठा, शुद्ध घी शहर तक मिलावट के साथ आने लगा है।
वनविभाग को मिली सूचना तो उनकी टीम ने अदरी के अजगर को कब्जे मे लिया।
बाँदा के पत्रकारों मे इस अजगर पर हल्ला है जैसे आधुनिक समाज मे पुनः कोई ‘डायनासोर’ निकल आया हो। बाँदा। ज़िले के तहसील पैलानी क्षेत्र अंतर्गत ग्राम अदरी मे बीते शुक्रवार को एक मध्यम अजगर खेतों पर विचरण करते निकल आया। पास के ग्रामीण देखे तो हो-हल्ला मचा दिया। अजगर खेत पर भागने लगा और कुछ युवा हाथ मे लकड़ी की छड़ी लिए उसका रास्ता रोकने लगे। वीडियो बन रहे थे और लोगों को मजा आ रहा है। खैर अजगर भी क्या करता वह दो पैर वाले आदमियों के झुंड मे घिर चुका था। अजगर उनके लिए अतिश्योक्ति पूर्ण था कि गांव मे निकल कैसे आया !! अजगर जान बचाने को पेड़ पर चढ़ा, फिर खेत पर खड़ा भी हो गया ठीक वैसे जैसे चारों तरफ दुश्मन से घिरा असहाय और निहत्था आदमी बचने को चीघता, चिल्लाता है। हाथ पैर जोड़कर छोड़ देने की मिन्नत, गुहार करता है। उल्लेखनीय है कि शहरों की तर्ज पर विकास ने गांवों का तानाबाना बदल दिया है। गांव मे पंचायती चुनावों ने आपसी वैमनस्यता और ईर्ष्या को चर्मोत्कर्ष पर ला दिया है। जातिगत दुर्भावना, ब्राह्मण, ठाकुरों मे आज भी सामंती विकृतियों ने पीछा नही छोड़ा है। वहीं गांव से युवाओं का रोजगार को पलायन होता है। ज्यादातर विकास की जद और स्वाद मे व्याकुल हुए परिवार अब शहरी चकाचौंध मे घिर चुके है। गांव की बैठक, बरगद-पीपल के नीचे लगने वाली चौपाल अब अपवाद मे दिखती होंगी। हां फुर्सत मे तास के पत्तो पर जुआरियों फड़ सजाए बैठे युवाओं की टोली अपनत्व के रिश्तों पर लगने वाली चंदापौआ को आज भूल चुकी है।
गांवों मे बुजुर्गों से बात करिये तो वह कहते है लाला यहीं वो गांव थे जिनके चारों तरफ हरेभरे पेड़ थे। बुजुर्ग के नाम पर एक कुआं अथवा तालाब होता था। लोकाचार के ग्रामीण उत्सवों मे किसी को पता ही नही चलता था कि इसकी मेजबानी और मेहमानी कौन कर रहा है। मसलन गांवों मे बेटियों के ब्याह सामूहिक सरोकार की तरह होते थे। हर घर से अनाज, खाट, बारातियों के ठहरने को व्यवस्थित स्थान,देशी पकवान के दौर मे गांव की बेटियां हर देहरी का मान-सम्मान होती थी। तब न इतनी लक्जरी शिक्षा थी और न उजाड़ होते गांवों से वीरानी झेल रहे जंगलों के मध्य मेड़ खोते बंजर खेतों मे विचरण करने वाले वन्यजीवों उदाहरण स्वरूप ( अजगर,काले नाग, सियांर, चीतल, तेंदुआ, बाघ, बघर्रा,लकड़बग्घा आदि) का अकाल नही था। आज किसी गांव मे अजगर,तालाब मे मगरमच्छ और नदी मे मगर मिल जाये तो हड़कंप मच जाता है। शहरी मीडिया और सिटीजन जनर्लिस्ट मोबाईल से वीडियो बनाने लगते है। उन्हें सरकार समर्थित सिंडिकेट पर नदियों का उत्खनन मासिक वसूली को रोजमर्रा मे दिखता है लेकिन जनमुद्दों की खबरनवीसी अब विलुप्त है। कमोबेश यह विडंबना सर्वत्र है।
अजगर पर हल्ला और चिंगारी के राजाभैया पर मौन- हाल की खबर ये है कि अतर्रा स्थित विद्याधाम समिति एवं चिंगारी संगठन संचालक राजाभैया यादव,चिंगारी संयोजिका मुबीना खान, राजाभैया के खासकार शिवकुमार गर्ग उर्फ नन्ना पर बीते 17 दिसंबर को क्रमशः मुकदमा अपराध संख्या 0314/2024 मे धारा 376, 504,506,120 बी, एससी.एसटी एक्ट वहीं 0315/2024 मे धारा 354, 506 मे थाना अतर्रा मे दर्ज होने के बाद के बाद खबरी बाजार मे चुप्पी है। अब यह घास की रोटी या नाले को नदी बनाने वाली सनसनीखेज खबर तो नही जो कवरेज की जाएगी। तो अजगर के पीछे भागते पत्रकार अभी तक उन अभियुक्तों को आजाद छोड़ने वाली सरकारी व्यवस्था से सवाल पूछने पर बच रहें है। अतर्रा थाने की जिम्मेदार पुलिस ने अब तक दोनों पीड़िताओं के 161 व 164 के बयान तक लेने की जहमत नही की है। इस बीच पीड़िताओं के परिजनों, परिचित लोगों और गुलाबी गैंग ( सुमन सिंह चौहान गुट) कमांडर अपनी महिलाओं के साथ 20 दिसंबर को चित्रकूट धाम के डीआईजी से मिलने पहुंची थी।
करीब 20 मिनट के संवाद पर उन्होंने कार्यवाही का भरोसा दिया है। वहीं महिलाओं ने अतर्रा थाने जाकर एसएचओ श्री कुलदीप तिवारी से वार्ता की और एफआईआर प्रति हासिल की है। सूत्रानुसार राजाभैया इस दरम्यान हाईकोर्ट का रुख कर चुके है। वहीं मानिकपुर ग्राम बगदरी की पीड़िता व चिंगारी की पूर्व कार्यकर्ता के परिजनों को दूसरे मोबाइल नम्बर से राजाभैया ने फोन कराकर पीड़िता के बारे मे पूछा है। वहीं जोड़तोड़ और रुपयों से अपने पाले मे करने की जुगत भिड़ाई जा रही है। बीते 17 दिसंबर से आज तक बाँदा की पीत पत्रकारिता ने खाशकर बड़े इलेक्ट्रॉनिक चैनलों की माइक आईडी तो जैसे गंगा तीरे कुम्भ स्नान पर चली गई हो। वहीं लोगों मे खबरिया उजाला देने का माद्दा रखने वाले दैनिक अखबार सन्नाटे पर है। दो पत्रकार अनवर रजा रानू और भगत सिंह सत्य के साथ खड़े होकर पीड़िताओं के दुखदर्द पर साथ देते दिखते है। वहीं चिंगारी के अपराध नेक्सेस मे झुलसे, तबाह हुए कई परिवार ज़िले के अधिकारियों से मिलने को आशान्वित है। कानून को मजाक और उपहास की कूटरचित साज़िश से हास्यास्पद बनाने वाले राजाभैया को फिलहाल ज़िले की मीडिया का खुला समर्थन है। सूचना संसार के पास कुछ प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारों की वो तस्वीर हाथ लगी है जो राजाभैया को चिंगारी सुलगाने का रास्ता दिखाती है। जिसने कई घर अदालती चक्करों मे बेसुध कर दिए है। देखना होगा ज़मीर कब जगता और गांव के अजगर पर हुल्लड़ मचाते कलमकारों मे समाज के जनमुद्दों, गांव की असली खबरों और नारी सुरक्षा पर सुध कब आती है।