बाँदा मे तालाबंद सामुदायिक शौचालय, 67 करोड़ से ज्यादा खर्च फिर भी नही मिलता लाभ… | Soochana Sansar

बाँदा मे तालाबंद सामुदायिक शौचालय, 67 करोड़ से ज्यादा खर्च फिर भी नही मिलता लाभ…

@आशीष सागर दीक्षित,बाँदा

बांदा। उत्तरप्रदेश के चित्रकूट मंडल मे 67 करोड़ रुपया के बजट से निर्मित किये गए अधिकांश ग्रामीण सामुदायिक शौचालयों में ताला बंद हैं। इनका इस्तेमाल न तो ग्रामीण कर पा रहे हैं। और न ही ग्रामों व समुदाय मे आने वाले राहगीर ही लेकिन सरकार की योजना थी तो 67 करोड़ से ज्यादा बजट खर्चा कर दिया गया था। आज अधिकांश ग्रामीण सामुदायिक शौचालय देखरेख के अभाव मे निष्प्रयोज्य साबित होने लगे है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इनकी देखरेख को ज़िले मे हर माह करीब एक करोड़ रुपये खर्च दिखा दिया जाता है। ग्रामपंचायत मे बने इन शौचालयों को संचालित करने का कार्य राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित महिला समूहों को दिया गया था। किंतु उन्हें समय से न तो वेतन मिलता और न उनकी निगरानी होती है। अलबत्ता यह उपयोगी सामुदायिक शौचालय हासिये पर खड़े अपने दुर्भाग्य को रो रहें है।

बतलाते चले कि चित्रकूट मंडल मे चारों जिलों के अंतर्गत कुल 1403 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय बनवाने का लक्ष्य है। जिसमें अब तक 1383 निर्मित हैं। यूपी सरकार के निर्देश पर इनमें से 1279 शौचालयों को वर्ष 2022 के जुलाई माह में पंचायती राज विभाग ने संचालन के लिए ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) को सौंप दिया था। इनका संचालन का कार्य समूह ग्रामपंचायत स्तर पर समूह की महिलाएं कर रही है अथवा थी।

उल्लेखनीय है कि समूह की महिलाओं को तीन माह का मानदेय व शौचालयों मे साफ-सफाई व इससे संबंधित दैनिक सामग्री खरीद के लिए वर्ष 2022 माह सितंबर तक 4 करोड़ 29 लाख 42 हजार रुपये निकासी की जा चुकी है। वहीं सूत्रानुसार प्रत्येक माह करीब एक करोड़ रुपये इन पर खर्च होना बताया गया है। बावजूद इसके यह सामुदायिक शौचालय खड़े-खड़े जर्जर होने की तरफ है। या यूं कहिये की गांव मे विकास की अनुउपयोगी शोभा का प्रतीक बन चुके है। बानगी के लिए आप पैलानी तहसील की ग्रामपंचायत खपटिहा कला मे दिनांक 25 नवंबर 2024 की यह तस्वीर ही देख लीजिए। इस सामुदायिक शौचालय की संचालनकर्ता / महिला समूहों ने इसमे तालाबंदी कर रखी है। गांववासियों ने पूछने पर बताया कि ये महिलाएं तर्क देती है कि ग्रामीण लोग शौचालय गंदा कर देते है, पानी नही डालते है। कहीं- कहीं पानी का संकट है तो शौच को पानी नही मिलता है क्योंकि आसपास हैंडपंप या बोरिंग साधन नही है।
वहीं पंचायतीराज के अधिकारियों को इतनी फुर्सत कहां मिलती है कि ग्रामीण सामुदायिक शौचालयों का ग्राउंड पर निरीक्षण कर सकें। उनके पास सरकार की प्रशंसा के लिए इतने कार्य पहले से लगे है कि गांव का यह सामुदायिक शौचालय कौन देखेगा ? विडंबना है कि न तो समूह से धन की रिकवरी होती है और न उनपर नियंत्रण है कि ये शौचालय नियमित खोले जाते रहें।
वर्ष 2022 तक मंडल में 1403 शौचालयों में 1383 पूरे हो चुके थे। जिसमें कुल 1279 सामुदायिक शौचालय महिला समूह को संचालन के लिए सौंपे जा चुके थे। वहीं 104 शौचालय संचालन के लिए शेष थे। जिसमें ज़िला बांदा में 22, चित्रकूट में 42, हमीरपुर व महोबा में 20-20 शौचालय समूहों को दिए नही गए थे । इनकी नवंबर 2024 मे क्या वास्तविक स्थिति है यह इन तालाबंदी मे सुरक्षित शौचालय से समझ सकतें है। जानकारी मुताबिक हर माह 9 हजार रुपये सामुदायिक शौचालय को संचालन करने के लिए दिए जाते है। इसमे देखरेख करने वाली समूह की महिला को प्रतिमाह छह हजार रुपये मानदेय दिया जाता रहा है। यह भी वक्त से मिल जाये तो गलिमत है, उम्मीद है इसमे बढोत्तरी नही की गई होगी। वहीं इसके अलावा सफाई कार्य में उपयोग होने वाली सामग्री आदि के लिए तीन हजार रुपये मद मे अलग से दिए जाते है। अर्थात हर माह एक सामुदायिक शौचालय में सरकार नौ हजार रुपये प्रति माह खर्च कर रही है लेकिन वह फिर भी अनुउपयोगी है।

सामुदायिक शौचालय के निर्माण मे खर्च हो चुके 6735.74 लाख रुपया-

चित्रकूटधाम मंडल मे चार जिलों पर सामुदायिक शौचालयों के निर्माण मे वर्ष 2022 तक पंचायती राज विभाग 67 करोड़ 35 लाख 74 हजार रुपये खर्च कर चुका था। मुनासिब है आज 2024 मे यह धनराशि और ज्यादा होगी। जिसमें बांदा के 462 शौचालयों में 25 करोड़ 79 लाख 67 हजार रुपया, हमीरपुर के 326 शौचालयों में 17 करोड़ 90 लाख रुपया, महोबा के 273 शौचालयों में 11 करोड़ 60 लाख रुपया 16 हजार रुपया, चित्रकूट के 322 शौचालयों पर 12 करोड़ 5 लाख 26 हजार रुपया खर्च किया गया था। ग्रामपंचायत स्तर पर विकास के सकारात्मक उद्देश्यों को मुंह चिढ़ाते यह सामुदायिक शौचालय गांव-गांव ऐसे ही ज्यादातर तालाबंदी का शिकार है।

डीएम बाँदा ने दिए है निर्देश-

हाल ही मे जिलाधिकारी नगेन्द्र प्रताप ने विश्व शौचालय दिवस अभियान के अन्तर्गत 19 नवम्बर से 10 दिसम्बर के मध्य अभियान चलाकर सभी सामुदायिक शौचालयों का निरीक्षण कर संचालित रखने एवं उनमें पायी जाने वाली कमियों को 15वें वित्त आयोग में प्राप्त धनराशि से 5 दिसम्बर तक प्रत्येक दशा में ठीक कराये जाने के निर्देश दिये। ताकि समुदाय / ग्रामपंचायत को इसका लाभ मिल सके।
क्या थी इनकी उपयोगिता-

ग्रामीण सामुदायिक शौचालय समुदायों और घरों के पास बनाए जाते है। साथ ही यह उन लोगों के लिए दैनिक शौचालय होते है जिनके घर में शौचालय उपलब्ध नही होता है। या राहगीरों को उपयोग करने दिया जाता है।
सामुदायिक शौचालयों को आम तौर पर सार्वजनिक शौचालयों के बंद होने के लिए एक शमन के रूप में स्थापित किया जाता है।
सामुदायिक शौचालयों और सार्वजनिक शौचालयों में बेसिक फर्क यह है कि सामुदायिक शौचालयों में लाभार्थियों की आबादी अपेक्षाकृत स्थिर होती है। वहीं सार्वजनिक शौचालयों में अस्थायी आबादी होती है।
साथ ही सार्वजनिक शौचालय, बस स्टॉप और बाज़ार जैसे उच्च-यातायात क्षेत्रों में बनाए जाते है। बाँदा समेत यदि बुंदेलखंड मे इनकी ज़मीनी पड़ताल की जाए तो यकीनन ग्रामीण सामुदायिक शौचालय बेनतीजा व असिद्ध साबित होंगे। लोकल प्रशासनिक अधिकारियों को इन पर अनुश्रवण करना चाहिए जिससे सरकार की मंशा अनुरूप गांवों की गंदगी और विकास की तस्वीर मे बदलाव लाया जा सके।

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