लाल मौरम के तीन ठेकेदारों ने किया अवैध खनन, जांच टीम ने लगाया 66 लाख रुपये जुर्माना... | Soochana Sansar

लाल मौरम के तीन ठेकेदारों ने किया अवैध खनन, जांच टीम ने लगाया 66 लाख रुपये जुर्माना…

@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।

“केन नदी को सुखाने का अभीष्ठ लक्ष्य साधकर ‘अर्जुन’ की तर्ज पर रातदिन (सूर्यास्त के पश्चात भी) अर्थ मूविंग प्रतिबंधित हैबिबेट मशीनों से केन की जलधारा / नदी के कैचमेंट क्षेत्र मे लाल बालू,मौरम का उत्खनन करते है। खनिज के नियम-कानून / खनिज लीज डीड और यूपी उप परिहार खनिज नियमावली के सैतालिसवें संशोधन की उपधारा 41-ज का उल्लंघन करते हुए बाँदा आसपास खनन कारोबार करते है। जबकि खनिज लीज डीड की शर्तों मुताबिक  खनन पट्टेधारक जेसीबी से सिर्फ खनिज की लोडिंग व अन-लोडिंग कार्य एवं रस्ता निर्माण कार्य ही कर सकता है। लेकिन यहां तो उपजाऊ खेतों को व्यापारिक उपयोग मे लाकर गांवों के किसानों को साधकर या दबाव बनाने के बाद उससे खेत का अनुबंध रस्ते के लिए कराया जाता है। इसमे सदर रजिस्ट्रार दफ्तर के कुछ बिचौलिए, क्षेत्र में सक्षम लोग और खनन / रस्ता निर्माण मैनेजमेंट लेने वाले प्रभावशाली व्यक्ति का पूरा गठजोड़ होता है। विचार कीजिये कि बिना डीएम की अनुमति लिए ही खेतिहर भूमि का किसान से एग्रीमेंट कराकर मौरम पट्टेधारक व उससे जुड़े कद्दावर लोग व्यापारिक उपयोग करते है। गरीब व बेबस किसानों को कुछ मामूली रकम देकर हर सत्र मे यह भ्रस्टाचार लाल बालू-मौरम के खदान स्थल से गांव बाहर तक रस्ते निर्माण को किया जाता है। अन्यथा यह प्रतिबंधित पोकलैंड, लिफ्टर जैसी मशीनों को नदी कैचमेंट क्षेत्र / जलधारा तक पहुंचाया नही जा सकता है। अवैध खनन का बुंदेलखंड और बाँदा मे सारा मामला ठेकेदार / रास्ता निर्माण फर्म व किसान के मध्य हुए खेत अनुबंध से प्रारंभ होता है।”


  • क्या हर साल यूपी अथवा अन्य जगह खनिज पट्टेधारक को उत्खनन करने के लिए निविदा के माध्यम से ई-टेण्डर प्रक्रिया पूरी कर पट्टा देने वाली सरकार की ज़िम्मेदारी नही होनी चाहिए कि वह ग्राम सभा अथवा बंजर, निष्प्रयोज्य भूमि से पट्टेधारक के लिए रस्ता निर्माण करे और अवैध खनन की बुनियाद को तोड़ने का काम करे ?
  • खदान स्थल / धर्मकांटे पर बड़े सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बावजूद यदि ओवरलोडिंग ट्रक निकासी होती है तो यकीनन इसमे बड़ी प्रशासनिक लापरवाही है। तब जबकिं दावा हो कि खदान स्थल की सतत डिजीटल मॉनिटरिंग की जा रही है।
  • एमएम 11 प्रपत्र व लेआउट प्रपत्र की अनदेखी करके एनआर ( बिना रवन्ना ) परिवहन, ओवरलोडिंग वाहन निकासी होती रहती है।
  • क्या संभव है कि बिना मुखबिरी किये जांच टीम के खदान स्थल पहुंचने से पूर्व प्रतिबंधित अर्थ मूविंग मशीनों को हटाकर गायब कर दिया जाए। जबकि पूरा विभागीय सिस्टम इस पेशे मे परोक्ष रूप से सहभागी है।


बाँदा। चित्रकूट मंडल के बाँदा मे हर सत्र की भांति इस साल भी लाल बालू,मौरम खदानों से पट्टेधारक द्वारा अवैध खनन की खबरें रोजमर्रा की खबरों का हिस्सा है। सोशल मीडिया से दैनिक अखबार, डिजीटल टीवी न्यूज़ चैनल तक यह खबरें पटी है लेकिन असर उतना ही होता है जब प्रशासन को लगता है अब असर होना चाहिए कहीं बात सूबे के मुख्यमंत्री तक न पहुंचने लगे। खनिज निदेशक भी बिना बड़ी खबर के ब्रेकिंग न्यूज़ से अवैध खनन पर कार्यवाही नही करते है। क्योंकि ब्रेकिंग और सोशल मीडिया खबरों की भीड़ मे सत्यता पर खरे उतरने की सरकारी शर्तो पर फिट नही है।

प्रशासन ने तीन खदानों पर 66 लाख रुपया जुर्माना की कार्यवाही की है-
विगत सप्ताह बाँदा प्रशासन ने जिलाधिकारी जी के निर्देशन मे संयुक्त टीम बनाकर जांच की थी। जांच की गई क्रमशः तीन मौरम बालू खदान पर 66 लाख रुपया जुर्माना हुआ है। इसमे मरौली खंड 5 के संचालक कानपुर किदवई नगर रहवासी संजीव गुप्ता पर पूर्व मे 54 लाख रुपया जुर्माना हो चुका है। जाहिर है वो अभी भरने की प्रक्रिया मे होगा लेकिन साहस देखिए कि पुनः श्रीमान जी की मौरम खदान अवैध खनन मे दोषी है और इनकी खदान मे 2991 घन मीटर अवैध खनन पाया गया है। डीएम श्री नागेंद्र प्रताप जी ने पट्टेधारक पर 26.92 लाख रुपया अर्थदंड किया है। वहीं थाना मटौंध की मरौली ग्राम पंचायत मे ही संचालित मौरम खदान गाटा संख्या 333/7 का भाग खंड संख्या 1 जिसके पट्टेधारक महोबा निवासी प्रशांत गुप्ता है। लगभग 17 हेक्टेयर का पट्टा रकबा है। इन्होंने 2332 घन मीटर अवैध खनन किया है। डीएम ने जांच टीम की आख्या पर 20.98 लाख रुपया जुर्माना किया है। वहीं लुकतरा क्षेत्र की पथरी मौरम खदान पर छापेमारी मे जांच टीम को 2166 घन मीटर अवैध खनन मिला है। पट्टेधारक पर 19.49 लाख रुपया अर्थदंड हुआ है। बड़ी बात है अधिकांश पट्टेधारक समयबद्ध जुर्माना भरते ही नही है बल्कि खदान चलाते रहते है जब तक ओटीपी बंद नही होती। इसके बाद घाटे की दुहाई देकर खदान सरेंडर कर देते है। अगले सत्र मे फिर नई कम्पनी / फर्म लेकर खनन कारोबार मे उतर जाते है।

ज़िले मे चल रही मौरम खदानें-

थाना मटौंध क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत मरौली मे  मरौली खादर गाटा संख्या 333/7 का भाग खंड संख्या 1, इसी का भाग खंड संख्या 5, पथरी मौरम खदान,तिंदवारी क्षेत्र के बेंदा घाट ,पैलानी मे खपटिहा कला, व मड़ौली खदान, नरैनी की बरियारी खदान संचालित है। इसमे मरौली खादर खंड 5 व बरियारी की फर्म का संचालनकर्ता एक ही आदमी कानपुर के मौरम ठेकेदार संजीव कुमार गुप्ता है। अवैध खनन मे इस सीजन के सर्वाधिक चर्चित और नदी के साथ पोकलैंड मशीनों से खेलने वाले यही बतलाए जा रहें है। बिना किसी डर के पूरी तैयारी के साथ ऊपर से नीचे तक सिस्टम सेट करके केन मे प्रतिबंधित अर्थ मूविंग मशीनों 3 मीटर से कहीं ज्यादा जितने गहराई तक लाल बालू मिलती है ये ठेकेदार बेखौफ मौरम, बालू की निकासी कर रहें है। नदी के कैचमेंट क्षेत्रफल मे जगह-जगह पोकलैंड से होते बड़े-बड़े गड्ढों ने आने वाले दिनों मे क्षेत्र के रहवासियों, पशुओं हेतु डूबने की पूरी चाक चौबंद व्यवस्था कर रखी है। अकाल से बचोगे भी तो नदियों के यह गड्ढे काल बनकर असमय मृत्यु तक ले जाने मे सहायक व कारण साबित होंगे, पूर्व मे होते रहें है।

अर्थ मूविंग मशीनों से नदी को खतरा-

प्रतिबंधित अर्थ मूविंग मशीनों से किसी भी नदी की जैवविविधता नष्ट होती है। यह उत्खनन नियमानुसार मानव श्रम से होना चाहिए ताकि मजदूरों को रोजगार मिल सके और प्रकृति सम्यक तरीक़े से खनिज निकासी हो सके। विकास कार्यों के लिए मौरम बालू आवश्यक है लेकिन नदी की जलधारा को प्रभावित करके उसके डूब क्षेत्र मे इजाफा करते हुए भारी भरकम पोकलैंड,  लिफ्टर मशीन किसी भी नदी की समूल हत्या कर देती है। वैसे भी नदी मे जगह-जगह चेकडैम, बांध निर्माण से बालू अब वैसी नही आती जो वर्ष 1992 तक आती रही है। पट्टेधारक अब खदान की बालू एक सीजन मे पोकलैंड से निकालकर ठंडा हो जाता है। फिर अगले सत्र मे किसानों को साधकर उनके खेतों की मिट्टी हटाकर बालू निकासी करता है। नदी की कगार व तरी खोदने लगता है जिससे डूब क्षेत्र बढ़ रहा है। यहां तक की नदी मे अवैध अस्थायी पुल बनते है।


हर सरकार मे खनन की मार-


राजस्व की आमदनी मे लक्ष्य से ज्यादा मौरम निकासी होती है।  जुगाड़तंत्र की कदमताल से हर राज्य सरकार मे यह कारोबार सफेदपोश कद्दावर लोग करते है। बसपा, सपा से वर्तमान तक कई नामदार माफिया और ठेकेदारों ने बाँदा मे पहचान बनाई। अकूत धन अर्जित किया और फिर ‘माननीय’ बनकर नेताजी बन गए। कुछ बड़े स्थानीय कारोबारी अब बाँदा से बाहर यह काम करने लगे क्योंकि जिले मे बाहरी कम्पनियों ने दस्तक दी और उनके रसूख को सीधी चुनौती मिलने लगी। बाँदा से छतरपुर तक यह सिलसिला बदस्तूर एक प्रारूप मे चलता रहता है। कई मौरम ठेकेदार खदान से ‘प्रजापति’ बनकर नेता और पत्रकार पालनकर्त्ता बन चुके है। खैर इस पेशे मे बुनियादी कमी अनुश्रवण की है। ज़िम्मेदारी स्थानीय किसान व जनता की भी है जो केन नदी की आरती कर सकते है वे नदी को संरक्षित करने के लिए आमजन का नेतृत्व भी तैयार कर सकते है। केन यहां की जीवनदर्शन है। अध्यात्म व सांस्कृतिक विरासत का प्राकृतिक जल स्रोत है। यह नदी एक जिला, एक उत्पाद योजना के प्रोडक्ट ‘शजर’ की गर्भधात्री भी है। शहर के प्रबुद्ध जन, सम्मानित जन का केन की अस्मिता के प्रति मौन भविष्य मे नदी संरक्षण के लिए तमाशबीन योगदान की शक्ल मे पहचाना जाएगा। जब भावी पीढ़ियों के समक्ष जलसंसाधन और जलसंकट का संघर्ष जींवन को कटघरे मे खड़ा कर देगा।

Like us share us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *