बंगाल चुनाव में तृणमूल और भाजपा की ओर से बेटियों को और अधिक तरजीह दी जा रही है। मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नारा दिया है-‘बंगाल अपनी बेटी को ही चाहता है।’ भाजपा ने अब इसका तोड़ निकालते हुए नया स्लोगन दिया है- ‘आखिर बंगाल की बेटियां क्या चाहती हैं’? भगवा कैंप ने यह मुहिम एक गैर राजनीतिक संगठन के माध्यम से शुरू की है जिसका नाम है-सेव बंगाल (बंगाल बचाओ) संगठन से जुड़े लोगों का दावा है कि उनकी मुहिम रंग ला रही है और महिलाओं के बीच दिनोंदिन लोकप्रिय हो रही है।
वैसे तो यह संगठन गैर राजनीतिक है, लेकिन इस में भाजपा और संघ से जुड़े लोग शामिल हैं। इस संगठन का मकसद राज्य के तमाम बुद्धिजीवियों, कलाकारों, शिक्षकों, डॉक्टरों व अन्य प्रोफेशनल लोगों के बीच जाकर भाजपा की विचारधारा को मजबूत करना और नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों के फायदे गिनाना है। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने इस संगठन की आधारशिला रखी थी। लोकसभा चुनाव के दौरान विदेशों में रहने वाले सैकड़ों प्रवासी बंगालियों को राज्य में आमंत्रित करके उन्हेंं अपने-अपने शहरों में भाजपा के पक्ष में हवा बनाने का जिम्मा सौंपा गया था। रणनीति सफल हुई, लिहाजा पार्टी को 18 सीटें मिलने में इस संगठन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
बंगाल बचाओ’ के राष्ट्रीय संयोजक अनिमेष बिस्वास कहते हैं कि हमारी मुहिम का इस कदर असर हो रहा है कि युवतियां व महिलाएं स्वयं आगे आकर संगठन से जुड़ रही हैं। इस बार हमने करीब आठ हजार प्रवासी बंगालियों को यहां बुलाया है जो लोकसभा चुनाव के मुकाबले दोगुने हैं। ये सभी अपने शहरों में गैर राजनीतिक लोगों के बीच जाकर ममता सरकार की विफलता और केंद्र सरकार की नीतियों के फायदे बताएंगे। हम लोगों से यह नहीं कहते कि आप भाजपा को वोट दीजिए, उन्हेंं सिर्फ यह समझाते हैं कि बंगाल के विकास और समृद्धि के लिए सत्ता परिवर्तन करना क्यों जरुरी है।
राज्य के डॉक्टरों, शिक्षकों, युवा वकीलों, वैज्ञानिकों व कवियों, कलाकारों, एनजीओ आदि प्रोफेशनल के समूहों के साथ ये संगठन अब तक ढाई सौ से ज्यादा बैठकें करके भाजपा की जमीन मजबूत करने की कोशिश कर चुका है। चुनाव के अंतिम चरण का मतदान होने तक इनका अभियान जारी रहेगा।
बिस्वास के मुताबिक अन्य राज्यों की तुलना में बंगाल में डॉक्टरों व शिक्षकों को ज्यादा महत्व व सम्मान दिया जाता है, लिहाजा उनकी कही बात को कोई टालता नहीं है। इसीलिए हम इन दो प्रोफेशनल को अपने वक्ता के रूप में उन वर्गों के बीच भेज रहे हैं, जहां इनकी बातों को कोई अनसुना नहीं करेगा। वैसे भी हमारे यहां चुनाव के वक्त ‘व्हिस्पर कंपैन’ ही चलता है, यानी कान में धीरे से बता दिया जाता है कि इस बार क्या करना है?