भारतीय सामरिक हित समझेंगे बाइडेन



जोसेफ बाइडेन जूनियर जल्द ही अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के पद की शपथ लेंगे

लेकिन बहुत से आलोचकों को यह पक्का नहीं है कि बाइडेन-कमला हैरिस द्वय मानवाधिकार स्थिति, खासकर कश्मीर में, किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे।

साथ ही क्या वे चीन के प्रति नरम होंगे। यदि ऐसा हुआ तो चीन के साथ मौजूदा सैन्य तनातनी में भारत पर असर पड़ सकता है।


बाइडेन एक परिपक्व और दक्ष राजनेता हैं। उनके पास सीनेट की विदेश कमेटी में अध्यक्ष पद समेत बतौर सदस्य दशकों का अनुभव है।

दूसरे, वह शांत चित्त, मननशील और एक ऐसे दल-नायक हैं जो दूसरों की भी सुनता है और अमेरिकी प्रतिष्ठानों द्वारा दी गई पेशेवराना सलाह के मुताबिक चलना गवारा कर सकते हैं।

इन विषयों में गृह, रक्षा, राष्ट्रीय और घरेलू सुरक्षा, सीआईए, व्यापार एवं अन्य विभाग इत्यादि शामिल हैं।

राष्ट्रपति ओबामा के साथ दो बार उपराष्ट्रपति की लंबी पारी के दौरान दिखाई दिए उनके स्पष्ट नजरिए इसकी पुष्टि करते हैं।


इस साल मार्च महीने में फॉरेन अफेयर जर्नल पत्रिका में बाइडेन ने एक लेख में बताया था कि क्यों अमेरिका को फिर से विश्व-अगुआ की भूमिका निभानी होगी।

इसमें उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका की साख को ठेस पहुंचायी है, क्योंकि अधकचरे सलाहकारों की मानकर व्यापार-युद्ध करने जैसे उपाय अपनाना,

जिससे उलटे अमेरिका के अपने घरेलू उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ा है और मित्र राष्ट्र परे हटते गए, जो कि अमेरिका की सबसे बड़ी शक्ति हैं।

कोविड-19 महामारी के बाद वाली दुनिया वर्ष 2016 वाली से काफी अलग होने वाली है, जब ओबामा-बाइडेन की जोड़ी सत्ताच्युत हुई थी।

इस अंतराल में चीन की आर्थिकी ने बड़ी कुलांचे भरी हैं। चीन का आर्थिक विकास अनुचित व्यापारिक तौर-तरीकों का काफी ज्यादा इस्तेमाल करने वाले पैंतरों पर टिका है,

इसमें दूसरे मुल्कों के बाजार में घुसपैठ, विदेशी तकनीक चोरी करना, राज्य की मल्कियत वाले और अन्यों उद्योगों को भारी सब्सिडी देना शामिल हैं।

तेज गति से हुई आर्थिक तरक्की के साथ-साथ चीनी सेना का व्यापक स्तर पर आधुनिकीकरण हुआ है।

इसी तरह चीन ने उभरती तकनीक जैसे कि 5-जी, क्वांटम कम्यूटिंग, नूतन पदार्थ, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष हथियार विकसित किए हैं।

तेजी से तरक्की के बूते चीन अब एशिया में अमेरिका की आर्थिक एवं सैन्य श्रेष्ठता को खुलकर चुनौती देने लगा है।

इसने अमेरिका के सहयोगी रहे अनेक मुल्कों जैसे कि भारत, ताइवान, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है और अंतर-अटलांटिक गठजोड़ में फूट डालने की कोशिश कर रहा है।


बाइडेन ने आगे कहा- ‘चीन के दबंग व्यवहार और मानवाधिकार हनन से निपटने हेतु अमेरिका के पुराने सहयोगी राष्ट्रों, दोस्तों और साझेदारों को साथ लेकर हमें ‘अमेरिका का संयुक्त मोर्चाÓ बनाना होगा और देश को पुन: विश्व-नेतृत्व की भूमिका में लाया जाएगा।

अन्य सहयोगी लोकतंत्रों के साथ गठजोड़ करने से हमारी ताकत दोगुणी हो जाएगी।

ऐसे में चीन विश्व के इस लगभग आधे भाग की अनदेखी नहीं कर पाएगा।Ó जर्मनी, फ्रांस और यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों ने बाइडेन की इस उत्साहवर्धक चुनावी घोषणा का स्वागत किया था।


हालांकि चीन को लेकर ट्रंप प्रशासन द्वारा अपनाए गए गीदड़भभकी भरे रुख में अंतर आ सकता है क्योंकि बाइडेन चाहेंगे

कि पर्यावरण बदलाव, परमाणु अप्रसार और संक्रामक रोगों पर नियंत्रण जैसे विषयों पर चीन का सहयोग पाया जाए।

अमेरिका और सहयोगी देश चीन की गैरवाजिब व्यापारिक नीतियों पर संयुक्त कार्रवाई करना चाहेंगे।

अलबत्ता चीन को संवदेनशील तकनीक निर्यात पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध आगे भी जारी रहेंगे।

अपने पिछले अवतार में बाइडेन ने वर्ष 2005 में भारत-अमेरिकी सिविल परमाणु संधि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

इसके बाद ही वर्ष 2006 में ओबामा प्रशासन ने भारत को अपना ‘मुख्य रक्षा सहयोगीÓ बताया था।

हाल ही में अमेरिका के साथ की गई ‘लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरंडम ऑफ एग्रीमेंटÓ (लेमो) और ‘बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो-स्पेशिएल को-ऑपरेशनÓ (कॉमकासा) संधियों से भारत की अमेरिकी सुरक्षा तंत्र से साथ गहनता बढ़ गई है।

दोनों की संयुक्त विशाल आर्थिकी, पेशेवर सैन्य बल और चीन का प्रतिरोध करने को दृढ़ निश्चय रखने से सामरिक रिश्ता और मजबूत हुआ है।

विश्व व्यवस्था को बहु-ध्रुवीय बनाने के अपने प्रयासों में लगा भारत चीन की अभिमानपूर्ण और एशिया में दबदबा कायम करने का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

बाइडेन ने विदेश नीति को लेकर अपने विचारों में स्पष्ट किया था कि समान विचारों वाले अन्य लोकतांत्रिक मित्र राष्ट्र जैसे कि ऑस्ट्रेलिया,

जापान, दक्षिण कोरिया और भारत से लेकर इंडोनेशिया तक फैले मुल्कों के साथ गहरी निकटता बनाकर वे इस क्षेत्र की साझा समस्याओं पर सहयोग बढ़ाएंगे, जिससे आगे अमेरिका का भविष्य तय होगा।


बाइडेन ने अमेरिका की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में सुधार लाने को निवेश करने, व्यापारिक रोक हटाने, संरक्षणवादी नीतियों में कमी लाने और जायज व्यापारिक नीतियों पर ज्यादा जोर देने को कहा है।

अन्य देशों से साथ लगातार बढ़ते द्विपक्षीय व्यापारिक असंतुलन और अमेरिका में बेरोजगारी के मद्देनजर हो सकता है

कि भारत के साथ कुछ विषयों जैसे कि ऊंचे आयात कर, बाजार पहुंच, तकनीक आधारित महाकाय अमेरिकी कंपनियां

मसलन अमेजऩ-गूगल इत्यादि पर लगाए कर इत्यादि को धमकी एवं प्रतिशोधात्मक कर लगाए बगैर दोस्ताना रुख से सुलझाया जाएगा।

आप्रवास से संबंधित मामले जैसे कि एच1-बी वीज़ा और अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों को पढ़ाई करने की छूट में उम्मीद है

कि बाइडेन अपने देश की बेरोजगारी के मद्देनजर और ज्यादा सकारात्मक रुख अपनाएंगे।


बाइडेन के कुछ सलाहकारों ने कहा है कि ओबामा की तर्ज पर अमेरिका भारत के साथ मानवाधिकार हनन की बात उठाएगा।

हालांकि यह दोस्ताना संवाद के रूप में होगा।

दोनों देशों की उभयनिष्ठ सामरिक समस्याओं पर भारत की संवेदनशील और महती स्थिति के आलोक में इस मुद्दे को आपसी संबंधों में अमेरिका की भारत को लेकर कुल नीति निर्धारण में मुख्य रुकावट नहीं बनने दिया जाएगा।

बाइडेन ने कहा है कि जिन क्षेत्रीय खतरों और सीमा विवादों का सामना भारत को करना पड़ रहा है, उसमें अमेरिकी प्रशासन साथ खड़ा होगा।

उपरोक्त खाके के मद्देनजर उम्मीद है कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का पोषण करने पर भारत अमेरिका का ज्यादा ध्यान आकृष्ट कर पाएगा।

ठीक इसी तरह पेरिस पर्यावरण संधि में अमेरिका की पुन: वापसी, साझा हितों को लेकर लोकतांत्रिक मुल्कों के बीच शिखर सम्मेलन, कार्बन उत्सर्जन के लिए

उत्तरदायी बड़े देशों के मध्य बैठक कर खतरनाक प्रदूषण में कमी लाने और संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने की दिशा में अमेरिकी पहलकदमी भारतीय हितों के लिए महत्वपूर्ण होगी।

सार में, वह विषय जो भारतीय हितों से जुड़े हैं, उनमें उम्मीद है कि बाइडेन प्रशासन ट्रंप के बनिस्पत भारत को ज्यादा सामरिक तवज्जो देगा।

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