चीन पुतिन का समर्थन कुछ शर्तों पर ही करेगा | Soochana Sansar

चीन पुतिन का समर्थन कुछ शर्तों पर ही करेगा


श्रुति व्यास | क्या दृश्य था.! अस्त होने के ठीक पहले का नर्म सूरज पेड़ों के पीछे से झांक रहा था। उसकी रोशनी दो प्रसन्नचित्त पक्के दोस्तों पर पड़ रही थी जो पांच साल के बाद मिले थे। इस मुलाकात से वे दोनों कितने रोमांचित थे, यह उनके गर्मजोशी से गले मिलने से जाहिर था।

सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की यात्रा पर मास्को पहुंचे। वे कूटनीतिक उलझनों को कम करने और संबंधों और मजबूत बनाने के लिए बातचीत करने आए थे।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने निवास पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोरदार स्वागत किया और रूस आने के लिए अपने ‘प्रिय मित्रÓ मोदी का शुक्रिया अदा किया। जवाब में मोदी ने कहा, “एक दोस्त के घर आना हमेशा बहुत अच्छा अनुभव होता है”।

एक-दूसरे के प्रति दोनों का रवैया बहुत सौहार्दपूर्ण था। यह करीब-करीब उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग-उन की रूस यात्रा जैसा ही था या फिर कुछ हफ्ते पहले पुतिन की उत्तर कोरिया की यात्रा जैसा। तब किम और पुतिन प्योंगयांग की एक सड़क पर एक महंगी कार में घूमते नजर आए थे, जिसे किम चला रहे थे। लगभग वैसा ही नजारा हमने मॉस्को में देखा जहां मोदी एक नीले रंग की चमचमाती गोल्फ कार्ट में बैठे थे जिसे, पुतिन चला रहे थे। दोनों नेता पुतिन के घोड़ों को देखने जा रहे थे।
जिस समय मॉस्को में प्रेम और सौहार्द का यह प्रदर्शन चल रहा था, उस समय जो बाइडेन वाशिंगटन में नाटो देशों के नेताओं की अगवानी कर रहे थे, जिनकी यात्रा का उद्देश्य था यूक्रेन युद्ध में रूस द्वार ढाए जा रहे जुल्मों के चलते उस पर और सख्त प्रतिबंध लगाने, उसके खिलाफ और कठोर कदम उठाने पर विचार करना। रूस ने उसी दिन अन्य नागरिक ठिकानों के साथ-साथ यूक्रेन के बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर मिसाइलों से हमला किया, जिसमें बच्चों सहित दर्जनों लोग मारे गए।
मोदी के रूस में हुए गर्मजोशी भरे स्वागत पर कीव से यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलदोमिर जेलेंस्की ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को खून-खराबे के सबसे बड़े अपराधी के गले लगते देखना अत्यंत निराशाजनक है और शांति के प्रयासों के लिए बहुत बड़ा झटका है”।
प्रधानमंत्री यूक्रेन युद्ध प्रारंभ होने के बाद पहली बार रूस पहुंचे थे। यह तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा भी थी। उन्होंने स्वयं उनके द्वारा कायम की गई इस परंपरा को तोड़ दिया कि पद संभालने के बाद वे सबसे पहले पड़ोसी देश की यात्रा करेंगे। उन्होंने रूस को चुना।
उनका इरादा पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के खिलाफ कोई सख्त रवैया अपनाने या पुतिन की बर्बरता की कड़े शब्दों में की निंदा करने का नहीं था, बल्कि, दोनों देशों के बीच लंबे समय से जारी रणनीतिक एवं आर्थिक संबंधों पर एक बार फिर मुहर लगानी थी। पहली विदेश यात्रा के लिए रूस को चुनने का एक उद्धेश्य क्रेमलिन की भारत के प्रतिद्वंदी चीन पर निर्भरता कम करने का प्रयास करना भी था।
यह करने के लिए उन्हें पूरब और पश्चिम के बीच एक नाजुक संतुलन कायम करना पड़ेगा। लेकिन इसकी बजाए वे अब तक रूस को काफी नरम अंदाज़ में समझाइश देते आ रहे हैं। उन्होंने 2022 में उज्बेकिस्तान में आयोजित क्षेत्रीय सम्मेलन में पुतिन से कहा था कि “आज का समय युद्ध का नहीं है”। पुतिन ने पिछले साल दिल्ली में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन में भाग नहीं लिया, जिसमें दुनिया भर के नेताओं ने यूक्रेन पर रूसी हमले की आलोचना की। वहीं मोदी पिछले सप्ताह कजाखस्तान में हुए शंघाई सहयोग संगठन, एससीओ सम्मेलन में नहीं पहुंचे, जिसमें रूसी राष्ट्रपति ने दावा किया कि मॉस्को एवं बीजिंग के संबंध इससे पहले कभी इतने अच्छे नहीं रहे।
इससे भारत के कान खड़े हो गए। उसे लगा कि मॉस्को-बीजिंग की बढ़ती निकटता से वह अलग-थलग पड़ जाएगा। लद्दाख इलाके में जून 2020 में हुई खूनी झड़पों में 20 भारतीय और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए थे और इसके कारण दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है।
यह स्थिति दिल्ली को चुभी और चिंतित सरकार ने आनन-फानन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा का कार्यक्रम बनाया। आखिरकार रूस को भारत की जितनी जरूरत है, उससे कहीं ज्यादा जरूरत भारत को रूस की है। प्रतिरक्षा और तेल के लिए अभी भी भारत काफी हद तक रूस पर निर्भर है। रूस के लिए भारत वित्तीय दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है और दोनों देशों का आपसी व्यापार पिछले वर्ष करीब 65 अरब डॉलर था मगर इसमें ज्यादातर राशि रूस से निर्यात के भुगतान की है, जिसके नतीजे में भारत का व्यापार घाटा बहुत तेजी से बढ़ा है। इस बात पर मोदी ने भी ‘गपशपÓ के दौरान चिंता जाहिर की।
लेकिन ‘गपशपÓ के दौरान सिर्फ मीठी-मीठी बातें ही नहीं हुईं, बल्कि इसमें तकरार के क्षण भी आए। आखिरकार युद्ध का दुष्प्रभाव भारत को भी झेलना पड़ा है। मोदी ने जल्दी से जल्दी उन भारतीयों को मुक्त कराने की मांग की, जिन्हें पिछले कुछ वर्षों में यूक्रेन से लड़ने के लिए रूसी सेना में शामिल होने के लिए बहलाया-फुसलाया गया था। अब तक इनमें से कम से कम चार की मौत युद्धक्षेत्र में हो चुकी है। पुतिन ने वायदा किया कि सभी भारतीयों को रूसी सेना की सेवाओं से मुक्त करके वापिस स्वदेश भेज दिया जाएगा।
मोदी की रूस की यह पहली दोपक्षीय विदेश यात्रा अमेरिका को पसंद नहीं आई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने मोदी से मॉस्को में यूक्रेन की अखंडता के मुद्दे पर जोर देकर बात करने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने रूस से संबंधों को लेकर भारत से चिंता जाहिर की है।
भारत इस समय किसी नट की तरह, दो खंभों के बीच बंधी रस्सी पर संतुलन बनाए रखकर चलने की कोशिश कर रहा है। वो दोनों पक्षों से पूरा-पूरा लाभ हासिल करना चाहता है। वह अमेरिका और पश्चिम का सहयोगी बनना चाहता है। वह चाहता है कि पूरी दुनिया उसे विश्वगुरु माने। लेकिन जो गुरु अपने चेलों की गलतियों पर चुप्पी साध ले वह कैसा गुरु।
इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी की रूस यात्रा शीत युद्ध के समय से जारी रणनीतिक संबंधों की ही एक कड़ी है। रूस और चीन की निकटता से नई दिल्ली में बेचैनी और चिंता उत्पन्न होना स्वाभाविक है। आने वाले समय में रूस और चीन की निकटता, भारत के लिए एक मुसीबत बन सकती है। पुतिन जरा सी भी झिझक के बिना बर्बरतापूर्ण रवैया अपनाए हुए हैं और आशंका कि वे रसायनिक और छोटे परमाणु हथियारों के जरिए और भी निर्दयतापूर्ण जुल्म ढा सकते हैं।
क्या भारत इसका मूक दर्शक बना रहेगा? और यदि युद्ध रूस को थका देता है, उसकी आर्थिक स्थिति को कमजोर कर देता है, तो क्या चीन पर उसकी निर्भरता और नहीं बढ़ेगी? क्या यह भारत के लिए नुकसानदायक नहीं होगा? हम यह जानते हैं कि चीन पुतिन का समर्थन कुछ शर्तों पर ही करेगा। और इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि भारत-चीन विवाद की स्थिति में रूस वैसा ही आचरण करेगा जैसा आज भारत कर रहा है– न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।

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