- सदर तहसील की ग्राम पंचायत मरौली मे 17 हेक्टेयर के लाल बालू-मौरम पट्टेधारक महोबा निवासी प्रशांत गुप्ता पर दो दिन पूर्व ही डीएम बाँदा ने जांच टीम की रिपोर्ट पर खदान मे 2332 घन मीटर अवैध खनन पाए जाने के चलते 20.98 लाख रुपया अर्थदंड लगाया है।
- मरौली गांव की जीवनरेखा और किसान के लिए सिंचाई का मूल आधार केन नदी पर यह पट्टेधारक अर्थ मूविंग प्रतिबंधित पोकलैंड मशीनों से रातदिन सूर्यास्त के बाद भी खनन करते है। पट्टेधारक खदान खंड संख्या 333/7 का भाग खण्ड संख्या 1 पर मौरम पट्टा लिए है। विगत वर्ष की भांति इस सत्र मे भी बाँदा के समाजवादी नेता इमरान अली राजू, राजू द्विवेदी, अभिमन्यु सिंह आदि के साथ यह खदान संचालित है।
- गांव मे गरीब ज़रूरत मंद कुछ व्यक्तियों को इन्होंने बुधवार को अपने स्तर से सिलाई मशीन वितरण कार्यक्रम किया है।
- गांव मे माहौल बना रहे, किसानों मे खदान की गतिविधियों पर प्रतिरोध / विरोध का वातावरण न बने और प्रशासनिक महकमें मे पट्टेधारक की छवि समाजसेवी की बन सके इसलिए यह कार्यक्रम ठीक वैसे है जैसे राजनीतिक लोगों के चुनाव की सुगबुगाहट पर गांवों मे होने वाले भंडारे, दंगल,क्रिकेट प्रतियोगिता और धार्मिक अनुष्ठान आदि।
- खदान पट्टेधारक यदि वास्तविकता मे मरौली का शुभचिंतक है और विकास ही चाहता है तो मरौली की जीवनरेखा केन नदी पर भारीभरकम पोकलैंड मशीनों से अवैध खनन क्यों करते है ? खनिज लीज डीड की शर्तों और पर्यावरण एनओसी की गाइडलाइंस, सर्वोच्च न्यायालय, एनजीटी के दिशानिर्देश उन्हें अनुपालित करने मे नैतिक संवेदना क्यों नही आती है ?
- गांव की नदी ही मर गई अथवा सुखाड़ का भविष्य देखने लगेगी तो प्रशांत गुप्ता जी क्या मरौली की ग्रामीण जनता, मजदूरों का पेट भर पाएंगे ? गांव मे खदान पर मानव श्रम से खनन नियमानुसार करवाते तो ग्रामीण रोजगार पाते और नदी की जैवविविधता संरक्षित रहती।
- नदियों की भगौलिक दिशा परिवर्तित करके केन नदी को अर्थ मूविंग मशीनों से खोदने वाले पट्टेधारक क्या सिलाई मशीनों से गांव का भविष्य बचा सकते है ? तब जब यह मरौली गांव और समीप का चटगन गांव केन बेतवा लिंक परियोजना के डूब क्षेत्र मे है और विस्थापित होना है ?
- क्या प्रशांत गुप्ता बतौर सामाजिक नागरिक व पट्टेधारक की भूमिका मे इस गांव को विस्थापन से बचाने की लड़ाई लड़ेंगे ? या वे समाजवादी इमरान अली जो इनके साथ अवैध खनन की टीम का हिस्सा है ?
- नदी हमारी माता है और हम बालू का पट्टा लेकर उसकी छाती पर पोकलैंड से उत्खनन करते है कितने मानवीय संवेदनाओं से भरे उदार हृदय के प्राणी है हम काश इस पर कोई खुली परिचर्चा कर लेता ?
- खदान प्रभावित गांवों मे खनिज न्यास फाउंडेशन के तहत पर्यावरण संरक्षण मसलन पौधरोपण, स्कूल मे विकास कार्य,गांव की सड़कों का सुंदरीकरण / मरम्मत आदि के लिए सरकार ने पूर्व मे ही एक सुनिश्चित बजट धनराशि सभी पट्टेधारक को अंशदान करने की गाइडलाइंस दे रखी है। खनिज न्यास फाउंडेशन के अध्यक्ष सम्मानित जिलाधिकारी ही होते है।
बाँदा। ग्राम पंचायत मरौली मे गाटा संख्या 333/7 का भाग खंड संख्या 1 मे संचालित मौरम खदान महोबा निवासी पट्टेधारक प्रशांत गुप्ता की है। इन्होंने हाल ही मे दो दिन पूर्व संयुक्त जांच टीम की आख्या पश्चात जिलाधिकारी द्वारा 20.98 लाख रुपये जुर्माना खदान मे 2332 घन मीटर अवैध खनन करने के फलस्वरूप पाया है। इस खदान मे लगातार अवैध खनन की खबरे गत वर्ष से सुर्खियों मे है। बतलाते चले सपा नेता इमरान अली राजू, राजू द्विवेदी, अभिमन्यु सिंह के साथ पट्टेधारक प्रशान्त गुप्ता इस खदान मे विगत वर्ष से खनन कर रहे है। वहीं खनिज लीज डीड, खनिज एक्ट की उपधारा 41 ज का सीधा उल्लंघन यहाँ होता है। सूर्यास्त के बाद खनन गतिविधियों को संचालित करके प्रतिबंधित अर्थ मूविंग मशीनों से खनन होता है। नियमानुसार 3 मीटर से ज्यादा खनन करते है और गांव के किसान की सिंचाई का मूल आधार केन नदी की जैवविविधता बर्बाद करने मे तत्पर है। सरकार को राजस्व नुकसान देकर अपने घर भरने वाले पट्टेधारक प्रशांत गुप्ता जी ने बुधवार को गांव मे सिलाई मशीन बांटकर ग्राम प्रधान को गांव मे सोलर लाइट, सीमेंट बेंच लगवाने का प्रस्ताव दिया है। गौरतलब है हर पट्टेधारक को खदान संचालित गांव मे खनिज न्यास फाउंडेशन के तहत पर्यावरण संरक्षण हेतु पौधरोपण, स्कूल मे शिक्षा उन्नति को विकास कार्य, खनन से प्रभावित उखड़ी सड़कों की मरम्मत कराने की शर्तें होती है। बावजूद इसके पट्टेधारक अपवाद मे किसी गांव का भला कर दे तो बड़ी बात है। क्योंकि ग्रामीण बंधुओं को प्रशासन व पट्टेधारक इस खनिज न्यास फाउंडेशन के विषयक जानकारी ही नही देते है। जो गांव अपनी क्षेत्र की नदी से खनिज के जरिये सरकार को राजस्व देता है। पट्टेधारक धन अर्जन करता है उस गांव के समुचित विकास व पर्यावरण की ज़िम्मेदारी खनिज न्यास फाउंडेशन मे निर्धारित है। इसका बजट होता लेकिन यह धरातल पर मुकम्मल ज्यादातर नही होता है। सरकार की मंशा नदियों मे मानव श्रम से उत्खनन कराने की रहती है। एक दशक पूर्व यह होता भी रहा है। इससे गांव को रोजगार मिलता था।
लोग गांव से पलायन नही करते थे। कुछ मदद मनरेगा से मजदूरों को हो जाती थी। इधर कुछ वर्षों से रास्ता निर्माण को जेसीबी और पोकलैंड मशीनों की धमक नदियों की जलधारा मे होने लगी और अवैध खनन का कारोबार पोषित किया जाने लगा। सरकार को राजस्व क्षति देकर पट्टेधारक जुर्माना भरने से बचता है और पांच साल के खदान की बालू एक सीजन मे मशीनों से निकालकर खदान छोड़ देता है या सरेंडर होती है। गांव के विकास मे नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह अवैध खनन से बचेंगी तो किसान को सिंचाई का पानी मिलेगा। निषाद समाज को आजीविका मिलती है और गांव आत्मनिर्भर बनता है जो वास्तव मे उत्तरप्रदेश सरकार चाहती है। लेकिन क्षणिक स्वार्थ को गांव की नदी सूखे की तरफ ले जाई जा रही है और पट्टेधारक ग्रामीण जन को कुछ फौरी मदद देकर उनका सस्टेनेबल डेवलपमेंट / स्थायी विकास रोक रहें है। यह बात समुदाय व सरकार को समझनी चाहिए।