डॉ मनमोहन सिंह की एक खासियत थी कि वह पत्रकारों के सवालों का सामना सहजता से करते थे और बतौर वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री लगातार मीडिया से मुख़ातिब होते रहे। उनकी हर साल होने वाली प्रेस कांफ्रेंस के अलावा भी किसी मौके पर उनसे कोई भी कठिन सवाल पूछा जा सकता था।
इससे जुड़ा एक मेरा निजी अनुभव आज बताने लायक है।
बात वर्ष 2012 की है, जब असम में दंगे भड़के थे और एनडीटीवी की ओर से मुझे उसे कवर करने के लिए भेजा गया। कोकराझाड़ और चिरांग के इलाकों में। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राहत कैंपों का दौरा करने आये। कई शिविरों की हालत बहुत ख़राब थी जैसा कि इन घटनाओं के वक़्त होता था। लोगों में काफी गुस्सा था और यहां शरणार्थियों की हालत देखकर बहुत बुरा लगा और हमने इसकी रिपोर्टिंग भी की।
लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दौरे से पहले दो शिविरों को ( जिनमें एक बोडो और दूसरे में मुस्लिम शरणार्थी थे) दुरस्त किया गया। वहां सफाई की गई, लोगों के लिए ज़रूरी सामान, मेडिकल सहूलियत, पीने का पानी, पका हुआ भोजन आदि सब लाया गया।
स्वाभाविक रूप से उन दो कैंपों को मनमोहन सिंह के दौरे के लिए तैयार किया गया था ताकि प्रधानमंत्री को लगे कि राहत का काम अच्छा चल रहा है। इन्हीं में से एक कैंप के बाहर पीएम मनमोहन सिंह ने खड़े होकर पत्रकारों को संबोधित किया और तब प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार @PankajPachauri भी उनके साथ दिल्ली से आये थे। उनकी यह पत्रकार वार्ता लाइव थी और सभी टीवी चैनलों पर इसका सीधा प्रसारण हो रहा था।
करीब 5 फुट की दूरी से इस पत्रकार वार्ता में मैंने पीएम से ज़ोर से पूछा था कि प्रधानमंत्री जी आप इन दो कैंपों का दौरा कर रहे हैं लेकिन यहां से कुछ दूरी पर जायेंगे तो पता चलेगा कि लोगों के पास हालात बहुत ख़राब हैं। आपको पता है कि इन दो कैंपों को बस आपके मुआयने के लिए चमकाया गया है?
डॉ मनमोहन सिंह अपने स्वभाव के मुताबिक ज़रा भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने बस इतना कहा कि सभी कैंपों में सारी ज़रूरी सुविधायें देने और हालात बेहतर करने के लिए आदेश दिये हैं और यह सुनिश्चित किया जायेगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह “ओजस्वी वक़्ता” नहीं थे लेकिन वह कभी सवालों से नहीं डरे और हर वक़्त पत्रकारों में भेदभाव किये बिना उनके सवालों का सामना करते थे।