बर्फ की सफेदी में लिपटा कश्मीर, पिछले 10 साल में सबसे ज्यादा बर्फबारी, इसके बाद भी ज्यादातर टूरिस्ट प्लेस हाउसफुल

Snowfall In Kashmir: An Encounter With Heaven In 2020

कश्मीर में इस साल सर्दियों ने तीस साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और बर्फबारी ने पिछले दस सालों का। श्रीनगर में 26 जनवरी भी चार से पांच फीट बर्फबारी और -2.4 डिग्री के बीच मनाई गई। दक्षिण कश्मीर से लेकर मध्य कश्मीर तक भारी बर्फबारी हुई है। ऐसी कड़कड़ाती ठंड कश्मीर के लोगों के डेली रूटीन पर भी असर डालती है। खानपान से लेकर पहनावा तक, सब बदल जाता है। कश्मीर में सर्दी का यह मौसम वहां टूरिस्टों के भी आने का होता है। और इसी मौसम में यहां की परंपरा और संस्कृति के भी रंग दिखाई देते हैं।

बर्फबारी इतनी, मानों लोग आने-जाने के लिए बर्फ की सुरंगों में सफर कर रहे हैं

इस साल हुई भारी बर्फबारी को लेकर सोशल मीडिया पर इस तरह की कई पोस्ट शेयर हुईं कि दक्षिण कश्मीर में लोग अपने घरों में आवाजाही दूसरी मंजिल से कर रहे हैं। क्योंकि, पहली मंजिल पूरी तरह से बर्फ में दब गई है। कुछ हद तक यह बात सही भी है। कुछ दिनों पहले पुलवामा के सांगरवानी गांव में छह फीट बर्फ गिरी और लोगों को आने-जाने का रास्ता बनाने के लिए बर्फ के बीच खुदाई करनी पड़ी। एक घर से दूसरे घर या बाजार तक जाने में ऐसा महसूस हो रहा था कि लोग बर्फ की सुरंगों में चल रहे हैं।

चिल्लई कलां… यानी वो 40 दिन, जब ठंड अपने चरम पर होती है

इस समय कश्मीर में चिल्लई कलां चल रहा है। इसे सर्दियों के सबसे कठिन समय के तौर पर जाना जाता है। 40 दिन का चिल्लई कलां 20 दिसंबर से शुरू होकर 31 जनवरी तक रहता है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इन 40 दिनों के दौरान रात का तापमान अक्सर माइनस में चला जाता है। अधिकतम तापमान भी 6 से 7 डिग्री के ऊपर नहीं जाता है। 40 दिनों की इसी कड़ाके की सर्दी को स्थानीय भाषा में चिल्लई कलां कहा जाता है। कश्मीर के लोग पहले से ही इस हालात के लिए तैयार होते हैं।

चिल्लई कलां के दौरान पूरी तरह से बदल जाती है दिनचर्या

चिल्लई कलां के दिनों में लोग आमतौर पर फेरन पहनते हैं। यह एक लम्बा सा कोट जैसा वस्त्र होता है। युवा, बूढ़े, पुरुष हों या महिलाएं, हर कोई फेरन का इस्तेमाल करता है। फेरन में एक जगह बनी होती है, जहां कांगड़ी रखी जाती है। कांगड़ी मिट्टी के कटोरे से बनी होती है। इसके ऊपर विलो वर्क होता है। इसके कटोरे के अंदर कोयला डाल के सुलगाया जाता है। कांगड़ी 8 से 10 घंटे तक आराम से शरीर को गरम रखती है।

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