जितिन प्रसाद की कांग्रेस से बगावत की जानिये क्या रही बड़ी वजह | Jitin Prasada Joined BJP

कांग्रेस से तीन पीढ़ियों से चला आ रहा रिश्ता जितिन प्रसाद ने यूं ही नहीं तोड़ा। हालांकि उन्होंने दिल्ली में तमाम वजह गिनाईं, लेेकिन इतना बड़ा निर्णय अचानक नहीं लिया। इसकी भूमिका 2019 के लोकसभा चुनाव से ही बनने लगी थी। जब उनका लोकसभा चुनाव क्षेत्र बदलने की बात उठी थी। पार्टी की प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा ने उन्हें धौराहरा की बजाय लखनऊ लोकसभा सीट से उतारने का प्रस्ताव रखा था। इसका केंद्रीय नेतृत्व ने भी मन बना लिया था। लेकिन तीन बार धौराहरा से चुनाव लड़ चुके जितिन अचानक क्षेत्र बदले जाने को लेकर राजी नहीं थे। उन्होंने अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई।

How Jitin Prasada may help BJP in 2022 Uttar Pradesh polls and gain in  return - India News

इसके बाद से उनकी अनदेखी शुरू हो गई। कुछ समय बाद प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम एक बार फिर से जोर-शोर से उठा। ब्राह्मण चेहरा होने के कारण उनकी ताजपोशी पक्की मानी जा रही थी, लेकिन प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले अजय कुमार लल्लू अक्टूबर 2019 में अध्यक्ष बना दिए गए। हालांकि जितिन कभी स्वयं को प्रदेश अध्यक्ष की रेस में नहीं बता रहे थे। उनके पास कोई महत्वपूर्ण पद भी नहीं था। लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव भी हार गए थे।

वहीं अजय लल्लू उस समय कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता भी थे। इसके बावजूद पार्टी नेतृत्व के इस कदम को नारजागी के रूप में देखा गया। इसके बाद जितिन प्रसाद ने भी अपने आपको पार्टी में तो सीमित कर लिया, लेकिन ब्राह्माणों को लामबंद करने में जुट गए। विकास दुबे एनकाउंटर प्रकरण हो या प्रदेश में हुईं ब्राह्मणों को लेकर अन्य घटनाएं। उन्होंने खुलकर बयान दिए थे। सभाओं व बैठकों में भी गए थे। वर्चुअल मीटिंग भी शुरू की थीं।

हालांकि उन्होंने खुले मंच से पार्टी को लेकर कभी कोई बयान नहीं दिया। उन्हें बंगाल व अंडमान का चुनाव प्रभारी बनाए जाने से भी समर्थक नाराज थे। दरअसल दोनों राज्यों में कांग्रेस के पास करने के लिए कुछ खास नहीं था। हुआ भी ऐसा। माना जा रहा था कि ऐसा इसलिए किया गया कि जितिन प्रदेश से दूर रह सकें। इसके बाद से वह सक्रिय भी नहीं थे। बुधवार को उन्होंने निर्णय ले लिया।

सबसे ज्यादा करीबी, बढ़ गई दूरी : जितिन प्रसाद राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के सबसे ज्यादा करीबी थे। उन्हें राहुल गांधी से मिलने के लिए समय नहीं लेना होता था। सोनिया गांधी के सामने अपनी हर बात खुलकर रखते थे। जब प्रियंका गांधी ने यूपी की जिम्मेदारी संभाली तो जितिन को अपनी कोर टीम में रखा, लेकिन उनके कुछ करीबी लोगों जितिन का कद कम करने की कोशिशों में जुट गए। प्रियंका भी बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दे सकीं और धीरे-धीरे दूरी बढ़ती गई।

जितिन प्रसाद के इस कदम पर कांग्रेस के साथ-साथ अन्य दलों की भी नजर थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद उनके भी भाजपा में जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा तो स्वयं उनका खंडन किया।अगस्त 2020 पार्टी के 23 नेताओं की ओर से सोनिया गांधी को लिखी गई चिट्टी में जितिन के भी साइन थे। जिससे साफ हो गया था कि वह कितना नाराज हैं। लखीमपुर के नेताओं ने उन्हें पार्टी से निष्कारसित करने की मांग तक कर डाली थी।

पार्टी लखनऊ में राजनाथ सिंह के सामने मजबूत प्रत्याशी के तौर पर उन्हें मैदान में उतारना चाहती थी, लेेकिन जितिन इस बदलाव के लिए कतई राजी नहीं थे। दबाव बढ़ा तो अनुशासित सिपाही की तरह उन्होंने लखनऊ जाने का निर्णय लिया, पर जगह-जगह समर्थकों के उनका रास्ता रोके जाने को नेतृत्व ने गंभीरता से लिया और उन्हें धौराहरा से ही टिकट दिया गया। यहीं से जितिन प्रसाद व प्रियंका के बीच दूरी बढ़ने लगी। हालांकि उनके प्रचार में प्रियंका गांधी ने रोड शो किए, लेकिन राहुल गांधी नहीं आए। जितिन चुनाव भी हार गए।

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