बिहार में LJP दो-फाड़, चाचा-भतीजे में चल रही जंग खासी चर्चा में | Bihar Latest News | Soochana Sansar

बिहार में LJP दो-फाड़, चाचा-भतीजे में चल रही जंग खासी चर्चा में | Bihar Latest News

बिहार में चाचा-भतीजे में चल रही जंग इस समय खासी चर्चा में है। जंग लोक जनशक्ति पार्टी पर कब्जे को लेकर है। हालांकि राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले लोग इस जंग को कतई हैरत भरी नजरों से नहीं देख रहे हैं। रामविलास पासवान के निधन के बाद से ही ऐसे ही घटनाक्रम का अंदेशा था, जो विधानसभा चुनाव में चिराग के एकतरफा फैसले के बाद और गहरा गया। चाचा पशुपति कुमार पारस जमीन तैयार करते रहे जिसकी भनक तक भतीजे चिराग को नहीं लगी।

चाचा के अब तक के दांव चिराग पर भारी पड़े हैं और अब वह भी डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं। रविवार को चिराग भी कार्यकारिणी की बैठक बुला रहे हैं। अब कार्यकारिणी का कितना हिस्सा किसके साथ खड़ा है या होगा, यह तुरंत स्पष्ट नहीं होने वाला। इसका फैसला चुनाव आयोग करेगा। दोनों गुट चुनाव आयोग पहुंच चुके हैं और बहुमत का दावा दोनों ही कर रहे हैं। लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि वहां जो भी दल नुकसान में आएगा, वह सुप्रीम कोर्ट तक पीछा नहीं छोड़ने वाला।

Amid ongoing feud in LJP, Chirag Paswan appoints new Bihar unit chief

ऐसे मामले जल्दी नहीं सुलझते, इसलिए चिराग ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में लड़ने की घोषणा कर दी है। ताकि इसे आधार बनाकर वे जल्दी फैसले के लिए दबाव बना सकें। उनकी अब यही कोशिश है कि पांच सांसदों का नुकसान भर ही उन्हें हो और पार्टी पर उनका कब्जा बना रहे, ताकि अगले चुनावों में उनकी जमीन बनी रहे। चिराग जानते हैं कि विधानसभा चुनावों में भाजपा के हिमायती व नीतीश विरोधी बनी उनकी छवि में अगर वे पार्टी नहीं बचा पाते हैं तो हिमायती भी साथ नहीं रहेंगे।

पारस द्वारा मंत्री बनने पर संसदीय दल के नेता पद को छोड़ने का वादा यह कह भी रहा है कि पारस को मंत्री पद की आस है। जातीय राजनीति के लिए जाने वाले बिहार में सभी राजनीतिक दलों की निगाहें लोजपा के इस प्रकरण पर लगी हैं। औसतन पांच से आठ फीसद वोटों वाली इस पार्टी की दलितों में बढ़िया पैठ है। इसलिए भाजपा, जदयू और राजद तीनों इसमें अपना नफा ढूंढ रहे हैं। चुनाव में चिराग के विरोध का खामियाजा भुगते जदयू की तो भूमिका ही इस तोड़फोड़ में अहम रही है।फिलहाल जदयू भले ही शांत दिख रहा हो, लेकिन उसके सांसद ललन सिंह टूट के बाद इन सांसदों के साथ खाना खाते नजर आए। इससे इस बात को बल मिला कि नीतीश चिराग को नहीं छोड़ने वाले। जदयू के लिए पासवान वोट बहुत मायने रखता है। उसके दलित प्रकोष्ठ में 60 फीसद से ज्यादा पासवान ही हैं। प्रदेश में इस बार एनडीए में बड़ा भाई बनकर उभरी भाजपा की भी इस वोट बैंक पर नजर है। गोपालगंज, किशनगंज व जमुई में दलितों व मुसलमानों के बीच हुए संघर्ष को भाजपा हवा देने में जुटी रही। राजद भी इस प्रकरण में भले ही चुपचाप खड़ा दिख रहा हो, लेकिन वह भी शांत नहीं बैठा है। भीतर की खबर है कि लालू भी पारस गुट के दो सांसदों के संपर्क में हैं। अब भविष्य बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठता है?

केवल पांच सांसदों का समर्थन या फिर पार्टी पर कब्जे भर से पारस तात्कालिक फायदे में जरूर दिख रहे हों, लेकिन इतने भर से उनका काम नहीं चलने वाला। उन्हें उस वोट बैंक का भी विश्वास जीतना होगा जो रामविलास पासवान ने खड़ा किया था। यहां चुनौती फिर चिराग पासवान से ही है जो रामविलास के बेटे होने के कारण मजबूत रोड़ा बनेंगे। जनता भावुक होती है और उसका झुकाव हमेशा शोषित की तरफ ही होता है। इसीलिए पारस भी भतीजे के द्वारा बार-बार अपमानित होने व भाई के आदर्शो की दुहाई देते हुए उनकी खड़ाऊं का असली हकदार बताने में जुटे हैं और अपने कदम को सही ठहरा रहे हैं। दूसरी तरफ चिराग इसे विश्वासघात बताकर पारस की छवि धूमिल करने में जुटे हैं। उनकी कोशिश पारस को सत्ता का लालची ठहराने की है। पारस द्वारा नीतीश के महिमामंडन को इसी रूप में रखने की उनकी कोशिश है।

नतीजा पांच सांसदों ने तो भतीजे का साथ छोड़ा ही, पार्टी पर भी उनके नेतृत्व पर सवाल खड़ा हो गया है। पार्टी के छह में से पांच सांसदों के चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ जाने के बाद अब चिराग पार्टी हाथ से नहीं जाने देना चाहते। जबकि संसदीय दल के नेता पद पर कब्जे के बाद पारस गुट ने कार्यकारिणी की बैठक बुला उन्हें अध्यक्ष भी घोषित कर दिया।

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