@आशीष सागर दीक्षित, बुंदेलखंड
“वर्ष 2005 को कागजों मे उभरकर आई बहु-प्रतीक्षित केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना का शिलान्यास 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी खजुराहो से करेंगे। अभी स्थानीय छतरपुर प्रशासन ने प्रस्तावित बांध स्थल या डूब क्षेत्र के आसपास प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम का कोई प्रोटोकॉल जारी नही किया है। करीब 20 साल बाद यह परियोजना पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र के 17 गांव और बुंदेलखंड के लगभग 23 गांवों की खेतिहर भूमि को अधिग्रहण करके अपने शिलान्यास कार्यक्रम की तरफ बढ़ रही है। पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र की 6 हजार हेक्टेयर वनभूमि इस परियोजना के दायरे मे है। वहीं सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी मे गठित सीईसी ( सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी) की 175 पेजों के दस्तावेज मे इसके पर्यावरणीय नफा-नुकसान का आंकलन और विश्लेषण है। पेज 42 दर्शाता है कि करीब 23 से 40 लाख बड़े-छोटे पेड़ ग्रेटर गंगऊ बांध परियोजना की जद मे होंगे।”
बाँदा /छतरपुर । उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र मे केंद्र सरकार के सहयोग सिंचाई एवं विद्युत पावर प्लांट परीक्षा वियर को आकार देने वाली ‘केन बेतवा लिंक’ परियोजना शुरू होने जा रही है। इस बहुउद्देश्यीय परियोजना का शिलान्यास आगामी 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी खजुराहो से करेंगे। छतरपुर प्रशासन ने परियोजना बांध क्षेत्र मे प्रधानमंत्री के जाने को लेकर अभी किसी तरह का कार्यक्रम शिड्यूल जारी नही किया है। स्थानीय किसानों एवं आदिवासियों के भारी विरोध को मद्देनजर नजर रखते हुए प्रधानमंत्री जी का योजना शिलान्यास कार्यक्रम खजुराहो आसपास ही आयोजित हो सकता है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस परियोजना का प्रारंभ से स्थानीय नागरिकों एवं देश के पर्यावरण पैरोकार लगातार विरोध करते रहें है। बतलाते चले कि पन्ना टाइगर रिजर्व बफर क्षेत्र मे 10 गांव पहले डूब क्षेत्र मे आते थे जो अब 17 गांव है। इनमे से बांध स्थल का प्रमुख गांव दौढन सहित मैनारी, पल्कोहा, सुखवाहा, भोरखुहा, खरयानी आदि गांव मुख्य है।
कागजों मे वर्ष 2010 को विस्थापित हो गए थे 6 गांव:-
कांग्रेस की सरकार मे जल संसाधन मंत्रालय से सूचनाधिकार मे जानकारी मिली कि वर्ष 2010 मे ही डूब क्षेत्र के 6 गांव विस्थापित हो चुके थे। जबकि धरातल पर वह पूरी तरह आबाद थे। पन्ना टाइगर के अंदर बच्चों के सरकारी प्राइमरी स्कूल और लोगों के घर इस बात का प्रमाण थे कि योजना की शुरुआत से ही वनविभाग / वननिगम एवं पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अफसरों ने कागजी घालमेल किया है। स्थानीय गोड़ आदिवासियों, अन्य जातियों के किसानों को कभी भी खुली बैठाके, पब्लिक हेयरिंग की विस्तृत जानकारी नही दी गई। उनसे परियोजना डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी साझा नही की गई। इस परियोजना के आंदोलन से जुड़े बिजावर के सामाजिक कार्यकर्ता एवं आम आदमी पार्टी प्रदेश संगठन सचिव अमित भटनागर कहते है कि फर्जी ग्राम सभा बुलाई गई है। वहीं सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश की अनदेखी करके सीईसी की रिपोर्ट को दरकिनार किया गया है। उन्होंने बताया कि इस परियोजना मे आदिवासियों की मूल लड़ाई भूमि विस्थापन के बाद उचित मुआवजे की थी। जिसमें भी राजस्व अधिकारियों ने व्यापक भ्रष्टाचार किया है। एक किसान की ज़मीन दूसरे के नाम चढ़ गई है। ऐसे एक दर्जन केस पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर बसे गांवों मे देखने को मिलेंगे। उन्होंने कहा कि हमने शुरू से पर्यावरण को ध्यान मे रखकर इस प्रोजेक्ट का खुला विरोध किया है। बकौल अमित डीआईआर का आज तक किसी किसान को एक कागज सूचना अधिकार मे नही दिया गया। वहीं जल संसाधन मंत्रालय / जलशक्ति मंत्रालय से गोपनीय फ़ाइल गायब है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी खुद 175 पेज की रिपोर्ट पर केन बेतवा लिंक के भौगोलिक व पर्यावरण नुकसान का खुलासा करती है। इस रिपोर्ट के पेज 42 मे साफ लिखा है कि ग्रेटर गंगऊ बांध एवं लिंक परियोजना क्षेत्र मे 23 से 40 लाख पेड़ काटे जाएंगे। यह संख्या बक्सवाहा के जंगल से बहुत ज्यादा है लेकिन समाज और देश के पर्यावरण शुभचिंतक खामोश है। आदिवासियों को मुआवजा तो मिल गया लेकिन बुंदेलखंड को नेचुरल डिजॉस्टर की तरफ धकेलती यह परियोजना जैवविविधता के दृष्टिकोण से उचित नही है। अतः हम 25 दिसंबर को इसका विरोध करेंगे। स्थान और जगह मीडिया से साझा की जाएगी। अमित ने प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन योजना के नुकसान व सुझाव और जल संरक्षण के समाधान को लेकर लिखा है। सूचना संसार के पास उसकी पीडीएफ मौजूद है।
सरकार की नजर मे केन बेतवा लिंक से लोगों को लाभ के दावे-
इस केन बेतवा लिंक परियोजना की प्रस्तावित लागत 2020-21 के मूल्य स्तर पर 44,605 करोड़ रुपये है। यह 20 वर्ष पहले 6000 करोड़ थी जो बाद मे 17 हजार करोड़ तक पहुंची। आज इसकी बढ़ी बजट लागत इसके प्रतिरोध का नतीजा है जाहिर है इससे निर्माण कार्यदाई संस्था व कम्पनी को ही लाभ होना है। प्रोजेक्ट को 8 वर्षों में पूरा किया जाना है।
वहीं परियोजना के प्रथम चरण में पन्ना जिले में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा दौधन बांध प्रस्तावित है। यह मौजूदा गंगऊ वियर डैम से लगभग 2.5 किमी ऊपर की ओर है। दौढन जलाशय के कारण कुल 9,000 हेक्टेयर भूमि डूब क्षेत्र में आएगी, जिसमें पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) कोर की 4,141 हेक्टेयर, पीटीआर बफर की 1,314 हेक्टेयर और 10 गांवों की 2,171 हेक्टेयर भूमि शामिल है। इन गांवों में लगभग 1,913 परिवार प्रभावित होंगे ऐसा पुराने दस्तावेज बतलाते है लेकिन वक्त के साथ यह संख्या लगभग 3 हजार है। केन्द्र सरकार ने शिलान्यास पोस्टर पर इसके लाभ गिनाएं है। उसके मुताबिक मध्यप्रदेश मे 8 लाख 11 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचाई से लाभान्वित होगी। छतरपुर, पन्ना, विदिशा, रायसेन, सागर,दतिया,टीकमगढ़,शिवपुरी, निवाड़ी,दमोह सहित 2013 ग्राम लाभ लेंगे। वहीं 221 किमी लंबी लिंक कैनाल नहर के द्वारा सिंचाई साधन उपलब्ध होगा। साथ ही 44 लाख आबादी को पेयजल सुविधा मिलेगी। एवं 103 मेगावाट जल विद्युत, 27 मेगावाट सोलर विद्युत का उत्पादन किया जाएगा। उत्तरप्रदेश के झांसी बरुआ सागर स्थान मे बेतवा नदी पर एक विद्युत पावर प्लांट बनेगा। वहीं बाँदा के मरौली-चटगन (केन खनन प्रभावित गांव) को विस्थापित करके यहां भी एक छोटा डैम प्रस्तावित है। पैलानी क्षेत्र मे भी एक बांध बनाया जाना है। गौरतलब है कि पन्ना टाइगर क्षेत्र अंतर्गत आने वाले गंगऊ डैम की देखरेख बाँदा का केन कैनाल सिंचाई विभाग ही करता है। बुंदेलखंड के ज्यादा तर बांध जो यूपी को सिंचाई का पानी देते है वह मध्यप्रदेश के भूभाग पर है। दोनों राज्य सरकार अक्सर अपने हिस्से के जल बंटवारे पर नूराकुश्ती करती रहती है।
केन बेतवा लिंक से नुकसान-
एक नजर मे इस लिंक परियोजना से पन्ना टाईगर रिजर्व क्षेत्र के वन्यजीवों का विस्थापन होगा। वहीं गिद्ध प्रजनन क्षेत्र और खजुराहो स्थित केन नदी का रिने फाल मगरमच्छ प्रजनन केंद्र भी डूब क्षेत्र मे आने से खत्म होगा। जंगल के 40 लाख पुराने पेड़ कटने से बुंदेलखंड की नैसर्गिक प्राकृतिक संपदा को बड़ा नुकसान होने वाला है। केन नदी पर पहले से 11 से ज्यादा छोटे बांध निर्मित है।