बंगाल में सियासी ‘युद्ध’ मिलिंद जानराव (राजनीतिक विश्लेषक)


पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव  की करीब आती तारीखों के साथ ही बयानबाजी का दौर तेज होता जा रहा है।

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के सामने अभी बीजेपी  ही सबसे बड़ी विपक्षी दल के रूप में खड़ी नजर आ रही है।

दोनों ही दलों में बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज होता जा रहा है। सीएम ममता बनर्जी कभी पीएम नरेंद्र मोदी की तुलना हिटलर से करती हैं

तो कभी बीजेपी अध्यक्ष के लिए नड्डा-फड्डा-चड्ढा जैसे शब्द का प्रयोग कर रही हैं।ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती टीएमसी की आंतरिक कलह बनी हुई है।

शुभेंदु अधिकारी, मिहिर गोस्वामी, नियामत शेख, शीलभद्र दत्ता जैसे पार्टी के कई कद्दावर नेताओं की नाराजगी और बगावती तेवर आने वाले चुनाव में ममता के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं।

पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था ममता बनर्जी के लिए बड़ी मुश्किल बनी हुई है। लेफ्ट दल, टीएमसी के बीच राजनीतिक हिंसा के दौर चला।

डायमंड हार्बर में बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले पर हुए हमले पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है।

ममता के लिए कानून व्यवस्था को बेहतर करना सबसे बड़ी चुनौती होगी।बीजेपी पश्चिम बंगाल में 200 सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

पिछले महीने पश्चिम बंगाल में अमित शाह के दौरे के बाद से बंगाल बीजेपी यूनिट की रणनीति में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है।

पार्टी अब ममता सरकार पर पहले से ज्यादा आक्रामक हो गई है। जे पी नड्डा, कैलाश विजयवर्गीय सहित कई कद्दावर नेता संगठन को मजबूत करने में जुटे हुए हैं।

इससे ममता के माथे पर बल पड़ना लाजिमी है।ममता हमेशा से जनाधार वाली नेत्री रही हैं। लेफ्ट के 35 साल के शासन को उन्होंने उखाड़ फेका था।

लगातार दो बार बड़े अंतर से चुनाव जीतकर सत्ता की कुर्सी भी बरकरार रखी। लेकिन बीते कुछ समय में बीजेपी बंगाल में मजबूत विकल्प बनकर सामने आई है।

2016 के विधानसभा चुनाव में महज 3 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने 2019 के लोकसभा में 18 सीटें जीतकर चौंका दिया था। बीजेपी हमेशा ममता पर मुस्लिम कार्ड का आरोप लगाती है।

और पिछले साल CAA-NRC मसले पर ममता के स्टैंड का भी बीजेपी फायदा उठाएगी।ममता बनर्जी की एक और बड़ी चिंता पार्टी में भरोसेमंद चेहरों की कमी का बढ़ना है।

मुकुल रॉय जैसे कद्दावर नेता के बीजेपी खेमे में शामिल हो जाने के बाद अब भतीजे अभिषेक बनर्जी के बढ़ते कद से कई सीनियर नेताओं में नाराजगी है।

इसके साथ ही चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बढ़ती दखलअंदाजी भी पार्टी के कई नेताओं को रास नहीं आ रही है।

ऐसे में ममता के लिए बड़ी चुनौती सभी भरोसेमंद साथियों को साथ बनाए रखने की होगी।

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