संघ ने इस मुश्किल समय में अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ खड़े रहने और उनकी हरसंभव मदद करने का एलान किया है। लेकिन संघ की पहली प्राथमिकता हिंसा को रोकना है। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस और राज्य प्रशासन की ओर से होने वाली ज्यादतियों के मुकाबले की तैयारी शुरू होगी।पिछले कई दशकों से बंगाल में पैठ जमाने की कोशिश में जुटे आरएसएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हिंसक हमलों से आरएसएस के समर्थन और जनाधार को कम करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। देश के दूसरे भागों में भी कमोवेश इसी तरह संघ को रोकने की कोशिश की गई थी, लेकिन इसके बावजूद संघ संगठन विस्तार करने में सफल रहा।
विचारधारा के लिए कीमत चुकाने को तैयार हैं स्वयंसेवक
उन्होंने कहा कि 2018 के बाद बंगाल में भाजपा के उत्थान के साथ-साथ बढ़ी राजनीतिक हिंसा को वामपंथी शासन के दौरान बड़े पैमाने राजनीतिक हत्याओं की कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। उनके अनुसार वामपंथी शासन में 1999 तक 50 हजार से अधिक राजनीतिक हत्याएं की गईं, लेकिन इसके बावजूद वह लंबे समय तक अपनी सत्ता नहीं बनाए रख सके। इसी तरह चुनावी जीत के बावजूद ममता बनर्जी लंबे समय तक राष्ट्रवादी ताकतों को दबाने में कामयाब नहीं हो पाएंगी।
आरएसएस के पदाधिकारी ने कहा कि अब बंगाल में बड़ी संख्या में लोग हिंसा के खिलाफ दिखने लगे हैं और भाजपा को 38 फीसद से अधिक वोट मिलना इसका सुबूत है। उन्होंने कहा कि भाजपा अपनी हार का अलग से विश्लेषण करेगी, लेकिन संघ परिवार इस मुश्किल घड़ी में अपने कार्यकर्ताओं के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा और उनकी हरसंभव मदद करेगा। ¨हसा को तत्काल रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ माहौल बनाने से लेकर अन्य सभी विकल्पों पर काम किया जाएगा।
पांच दशकों से पोषित जिहादी मानसिकता को मानता है इसका जिम्मेदार
उन्होंने दावा किया की बंगाल में भी संघ के कार्यकर्ता और समर्थक अपनी विचारधारा के लिए कीमत चुकाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक एक भी कार्यकर्ता ने हिंसक हमलों के कारण संघ से अलग होने की बात नहीं कही है। बंगाल में सक्रिय आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि यहां की हिंसक वारदातों को सिर्फ चुनावी हार या जीत से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। बल्कि यह चार-पांच दशकों से पोषित जिहादी और विरोधियों के सफाए की मानसिकता का परिणाम है।