चीन लगातार जिस तरह से एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कूटनीतिक जंग छेड़े हुए है उसमें उसकी एक नई डिप्लोमेसी भी सामने आ रही है। ये डिप्लोमेसी बिल्कुल अलग तरह की है। इसकी एक झलक चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में दिए गए भाषण में भी दिखाई दी है। इसमें उन्होंने जहां कोविड-19 महामारी को लेकर अपना पक्ष रखा, बल्कि इसके खिलाफ अपनी जंग के बारे में भी बताया। साथ ही इस संबोधन में उन्होंने अमेरिका और उनके सहयोगी देशों पर कटाक्ष भी किया। इसी संबोधन में उन्होंने वियतनाम के पूर्व में स्थित दक्षिण चीन सागर की तोंकिन खाड़ी में एक मिलिट्री एक्सरसाइज करने का इरादा भी साफ कर दिया। जानकार इसको ही ड्रैगन की नई तरीके की डिप्लोमेसी करार दे रहे हैं।
इस नई तरह की डिप्लोमेसी पर लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं कि एक तरफ शी आक्रामकता दिखा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दुनिया के देशों को इस अंतरराष्ट्रीय मंच से आपसी सहयोग बढ़ाने की अपील कर रहे हैं। इसको विश्व को गंभीरता से लेने की जरूरत है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में शी चिनफिंग ने दुनिया से जहां सहयोग को बढ़ाने की बात कही, वहीं अमेरिका पर ये कहते हुए कटाक्ष किया कि उसकी सोच चीन को लेकर पूर्वाग्रह से भरी हुई है।
प्रोफेसर पंत का कहना है कि शी की यही सोच वर्ष 2017 में दिए गए संबोधन में भी दिखाई दी थी। उस वक्त उन्होंने खुद को दुनिया के गारंटर के तौर पर पेश करने की कोशिश की थी। उस वक्त अमेरिका की सत्ता राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में थी और अब ये जो बाइडन के हाथों में है जो अमेरिका को दोबारा पुराना गौरव लौटाने की बात कई बार कर चुके हैं। वो मानते हैं कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में उन्होंने जो बातें कहीं उसको ही उन्होंने सही ठहराने की कोशिश की है। आपको बता दें कि दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस रूजवेल्ट की मौजूदगी का चीन जबरदस्त विरोध कर चुका है। अमेरिका का कहना है कि वो इस क्षेत्र में सभी देशों को नेवीगेशन का अधिकार देना चाहता है।