प्रकरण से जुड़ी खबर घटनाक्रम पर लिखी गई नीचे लिंक मे है-
@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।
- महज 3 वर्ष की बच्ची को हवसी गिद्ध बनकर बलात्कार किया,मरा समझकर जंगल मे फेंक दिया।
- सजातीय दुष्कर्मी सुनील निषाद निवासी मजरा चकला, ग्राम पंचायत चिल्ला ने टॉफी दिलाने के बहाने मासूम बिटिया से जघन्य अपराध किया।
- क्रूरता ऐसी की मलद्वार और योनि फटकर एक हो गए,अत्यधिक खून के रिसाव से हालत नाजुक हो गई थी।
- गत 3 जून की देररात बाँदा मेडिकल कालेज से कानपुर के हैलट अस्पताल भर्ती हुई थी।
- विवाहित दुष्कर्मी खुद पिता है लेकिन वहसीपन मे बच्ची को रौंदता रहा और कामवासना की भूख मे हत्या की इबारत लिख दी।
- बच्ची गंभीरावस्था मे कोमा मे चली गई,शरीर लगभग ब्रेनडेड हो चुका था। फिर डीप कोमा हुआ और अन्ततः कार्डियक अटैक से मौत हो गई।
कानपुर/बाँदा। ‘ओ री चिरैया, नन्हीं सी चिड़िया, अंगना मे फिर आना रे’ !!! लेकिन यकीनन यह मासूम नन्हीं चिरैया अब तो यही कहेगी हे भगवान ‘मोहे अंगले जन्म बिटिया न कीजो’ !!!
इस खबर को आज लिखने का मन नही हो रहा है,सिर्फ ऐसा लगता है कि बेटियों को मांस का लोथड़ा समझने वाले ऐसे दुष्कर्मी और हत्यारो को अरबी मुल्कों की तर्ज पर चौराहों मे मुनादी के साथ सजा दी जाए। इस सजा का सीधा प्रसारण देश की हर बस्तियों तक मुख्यधारा की पत्रकारिता करे ताकि भारत देश मे जहां नवरात्रि पर्व पर बेटियों को पांव पखराने का सत्कर्म किया जाता है। वहीं ऐसे अपराधों की व्याख्या दोषी अपराधी कानून की दांव-पेंची व जांच / न्यायिक तारीखों की लचर कार्यशैली से बेदम न कर सके।
मामला चित्रकूट मंडल मे कमतर शिक्षा, भ्रस्ट विकास, जातिवादी राजनीति, प्राकृतिक उत्खनन और माफियागिरी के लिए विख्यात ज़िला बाँदा से जुड़ा है। थाना चिल्ला अंतर्गत ग्राम चिल्ला के ही मजरा चकला निवासी एक तीन वर्षीय बच्ची का सजातीय पड़ोसी सुनील निषाद ने क्रूरतापूर्ण बलात्कार किया था। यातना की सारी हदें तोड़कर इस विवाहित वहसी ने अपनी बेटी की उम्र सी कोमल, मासूम 3 वर्षीय बच्ची को रौंदकर अधमरा करते हुए जंगल मे फेंक दिया था। भूखे भेड़िए की तर्ज पर यह पत्नी के मायके चले जाने पर फूल सी बच्ची पर टूट पड़ा। उसको फुसलाकर टॉफी देने के बहाने घर बुलाया और दुष्कर्म किया गया। बच्ची को मारपीट किया फिर लहुलुहान हलात मे मछली रखने वाले थर्माकोल के आइस बॉक्स मे छिपाकर जंगल छोड़ आया। इधर घटनाक्रम से अनभिज्ञ परिवार वाले उक्त बिटिया को खोजबीन करने लगे।
जब कहीं कोई सुराग नही मिला तो चिल्ला थाना पहुंचे। लेकिन सूत्रधार बतलाते है कि इलाके के एक सजातीय मंत्री जी का खुद को रिश्तेदार बतलाने वाले अभियुक्त पर शुरुआत मे कार्यवाही नही की गई। अलबत्ता परिजनों और ग्रामीणों ने चिल्ला-कानपुर मार्ग जाम कर दिया और हल्ला बोल शुरू हो गया। उड़ती हुई यह जानकारी ज़िले के कर्मठ पुलिस अधीक्षक श्री पलास बंशल को होती है। थानाध्यक्ष को फटकार लगती है फिर हर हाल मे 24 घण्टे के अंदर आरोपी दुष्कर्मी सुनील निषाद को पकड़ने एवं बच्ची को सकुशल बरामद करने का निर्देश जारी होता है। आनन-फानन मे चिल्ला थानाध्यक्ष टीम जसपुरा थाना प्रभारी के साथ एसओजी को लेकर निकलते है। उधर ग्रामीण साक्षी व मुखबिर बच्ची के जंगल मे होने की संदिग्ध सूचना देते है। एक ग्रामीण बतलाता है अभियुक्त को आइस बॉक्स साइकिल मे लादकर उसने जंगल जाते हुए देखा था।
एक्टिव पुलिस टीम जंगल पहुंचती है जहां खून से लथपथ 3 वर्षीय बच्ची अधमरी पड़ी मिलती है। जसपुरा थाना प्रभारी अनुपमा तिवारी स्वयं बेटी को गोद मे रखकर लाती है। उधर उस दुष्कर्मी हबसी को तलाशने के लिए घेराबंदी होती है। अन्ततः हाफ इनकाउंटर मे ऑपरेशन लंगड़ा मुकम्मल होता है। आरोपी सुनील निषाद पुलिस के शिकंजे मे आकर पकड़ा जाता है। जाहिर है यदि समय रहते पुलिस प्रशासन सक्रिय न होता तो यह मामला तूल पकड़ लेता और सरकार की किरकिरी हो जाती। खाकी ने वक्त रहते पुलिस अधीक्षक जी के नेतृत्व मे एक्शन लिया और आरोपी को सलाखों के पीछे जेल भेज दिया गया।
उल्लेखनीय है कि दुष्कर्म पीड़िता बच्ची को गंभीरावस्था मे मेडिकल कालेज इलाज हेतु भर्ती किया जाता है, लेकिन यहां डॉक्टर जवाब देते है तो नन्हीं पीड़िता कानपुर हैलट रिफर हो जाती है। वहां प्राचार्य डाक्टर संजय काला ने मीडिया को बताया कि बच्ची को पीडियाट्रिक आईसीयू मे भर्ती किया गया था। वह कानपुर ब्रेनडेड स्थिति मे आई थी। बच्ची के साथ हुई हैवानियत ऐसी थी कि पखाना व पेशाब द्वार एक हो गए थे। लड़कीं के पिता ने अलग से मलद्वार ऑपरेशन द्वारा बनाने की स्वीकृति नही दी थी। फिर भी टीम ने भरसक प्रयास किया लेकिन मासूम जींवन का संघर्ष करते अलविदा हो गई है। शायद माहौल उसके रहने काबिल ही नही था। उन्होंने कहा कि पूरा अस्पताल इस घटना से मर्माहत है, सब रोएं है यह दुनिया पता नही किस तरफ जा रही है !!! इस घटनाक्रम ने सामाजिक रूप से बाँदा रहवासियों को झकझोर कर रख दिया है। क्या खिलौनों की उम्र वाली नन्हीं बेटियां अब वहसी शिकारियों की भेंट चढ़ने का जरिया बनेगीं ? क्या बेटी सुरक्षा और सशक्तिकरण का नारा सरकारी तंत्र का शिगूफा है ? क्या भाजपा इस घटना को अपनी सामाजिक व्यवस्था का फेलियर मानेंगी ? इलाके के मंत्री जी को आत्मचिंतन की दरकार है क्योंकि 2027 का विधानसभा चुनाव आने पर यह सवाल ज़रूर उठेंगे कि माननीय तब आप कहां थे ? बेटियां और नदियां दोनों प्रकृति सर्जना का प्रत्यक्ष उदाहरण है आज यही दोनों बाँदा मे हासिये पर है। सिसक रहीं है और क्रूरता से बलात मारी जा रहीं है। देखना मुनासिब होगा कि पुलिस प्रशासन इस केस की चार्जशीट कब तक फ़ाइल करती है। वहीं पास्को,बलात्कार, हत्या और सबूत मिटाने की साज़िश मे आरोपी को न्यायपालिका क्या सजा देती है। अब उन पीड़ित परिजनों की सुरक्षा व निगरानी भी प्रशासन / यूपी सरकार को करनी चाहिए जिससे आरोपी पक्षकार उन पर मानसिक, सजातीय दबाव न बना सकें।