महोबा की हरियाली को विकास की गिद्ध नजर लगी... | Soochana Sansar

महोबा की हरियाली को विकास की गिद्ध नजर लगी…

@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा।

डूब गए है लोग सभी हैरानी मे, जाने क्या बात कह दी है रवानी मे, मुझको चुप रहने की आदत है वरना, सब जानता हूं कौन है कितने पानी मे। बड़े दिलचस्प मोड़ आएंगे इन जख्मों के, हमने तो मरहम रखा है कुर्बानी मे।

महोबा। विकास की अंधाधुंध रफ्तार ने सरकारों की नीतियों को बेलगाम कर दिया है। खाशकर यह बात पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर बिल्कुल सटीक है। प्रशासन राज्य सरकारों की नीतियों के अनुकूल उन्हें धरातल पर मुकम्मल करने की कवायद करता है। नतीजा निकलता है पर्यावरण का विनाश और हरेभरे-पुराने पेडों की कुर्बानी। जी हां हम बात कर रहें है बुंदेलखंड के महोबा ज़िला की जहां कबरई-कैमहा सड़क चौड़ीकरण फोर लेन के लिए 4669 पुराने और बड़े पेड़ो पर कुल्हाड़े चलाये जा रहें हैं। विडंबना है कि महोबा का प्रिंट और टीवी मीडिया इस विनाश पर चुप्पी साधे है।

काबिलेगौर है कि एक दशक पुराने या लगभग 50 साल पुराने छायादार घने पेड़ो को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर काटा जा रहा है। इस सड़क चौड़ीकरण का ठेका बंसल कंपनी को मिला है। दिनरात जेसीबी से जलसंकट और ग्रेनाइट खनन वाले महोबा में विकास का उजाड़नामा लिखा जा रहा है। बावजूद इसके कोई समाजसेवी, अधिवक्ता, पर्यावरण प्रेमी या पद्मश्री का तमगा लिए बुंदेलखंड बचाने का दावा करने वाले तक मौन बैठें है। गौरतलब है कि करीब 50 किलोमीटर लंबी इस कबरई-कैमहा रोड ने विकास की दौड़ मे महोबा की वर्षो पुरानी हरियाली को ध्वस्त करने का बीड़ा उठाया है। उधर मौजूदा सरकार एक पेड़ माँ और गुरु के नाम लगवाने का ड्रामा करती नही थकती है। मज़ेदार है इस वर्ष यूपी मे 36 करोड़ पौधरोपण होने का दावा है।

साथ ही 5 बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड भी बन चुका है। लेकिन महज 10 फीसदी जंगल वाले बुंदेलखंड के महोबा का वनक्षेत्र 4.5 फीसदी है। जो राष्ट्रीय वननीति के सापेक्ष 33 फीसदी होना चाहिए। कमोबेश यही ग्राउंड स्थिति बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट और झांसी मण्डल की है। सरकारी स्टंटबाजी से जनता को हरियाली का अहसास कराने वाली सरकारें बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे निर्माण पर 1 लाख 89 हजार पेड़ो की कुर्बानी ले चुकी है। वहीं झांसी-खजुराहो हाईवे पर 65 हजार पेड़ काटे है। लेकिन एनओसी के मुताबिक पौधरोपण के नाम पर मौसमी फूलदार पेड़ गाहेबगाहे लगा दिए है। इसी महोबा से 300 पहाड़ दफन हो चुके हैं। सवाल यह कि वीर भूमि महोबा क्या भविष्य का मरुस्थल बनेगा जहां चन्देलों के दर्जनों तालाबों तक को कूड़ादान बनाया गया है।

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