सदन की दीवारें सुराखदार होती हैं। न ठहाके रोकती हैं और न ही तल्खी। जो भीतर होता है, उसे बाहर कर देती हैं। इस समय सदन में बजट का मौसम है। सरकार आंकड़ों के साथ बैठी है और विपक्ष सवालों के साथ। लेकिन न हल्ला, न हंगामा। पक्ष-विपक्ष दोनों के अंदाज शायराना हैं। सदन को जानने वाले, सदन के इस बदले अंदाज पर हैरान हैं। उनके अनुसार ऐसा मौसम बहुत समय बाद आया है। दीवारों से छन कर बाहर आते ठहाके और चुटकियां सुन लोग मंसूबा बांधने लगे हैं कि अपना चिर-परिचित चोला (हंगामे वाला) छोड़ आगे भी सदन ऐसे ही चलेगा।
सभी राज्यों में इस समय बजट का बोलबाला है। बिहार में भी सोमवार को दो लाख 18 हजार 303 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तुत किया गया, जो पिछली बार से लगभग सात हजार करोड़ रुपये अधिक है। बजट में रोजगार पर जोर है, तो कृषि का भी रोडमैप है। शहरों और गांवों की तस्वीर में और रंग भरने का मंसूबा है। महिलाओं की शिक्षा और रोजगार का खाका है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जो बजट में होता है।
नीतीश सरकार के मुताबिक यह एक बेहतर बजट है जो प्रदेश को आगे ले जाने वाला है। लेकिन वह बजट ही क्या, जिससे विपक्ष संतुष्ट हो जाए। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के अनुसार यह झूठ का पुलिंदा है। इसमें नई योजनाएं नहीं हैं, यह केवल पुरानी योजनाओं का कट-पेस्ट भर है। हालांकि तेजस्वी हमलावर हैं, लेकिन इस बार उनके विरोध के तरीके की भी सराहना हो रही है। उनकी सदन में लगातार उपस्थिति और बोलने के तरीके पर कहा जा रहा है कि वे अब अनुभवी हो गए हैं। कहने वाले ये भी कह रहे हैं कि पहले सदन चार दिन के लिए प्रस्तावित था, तेजस्वी की मांग सात दिन की थी। इस पर सदन महीने भर का कर दिया गया तो अब उनकी भी मजबूरी है उपस्थित रहने और संयमित होकर बोलने की।