बारह दिन मे दो जल संगोष्ठीयां लेकिन साढ़े सोलह करोड़ खर्च होने के बावजूद खेत तालाबों की सूरत नही बदली… | Soochana Sansar

बारह दिन मे दो जल संगोष्ठीयां लेकिन साढ़े सोलह करोड़ खर्च होने के बावजूद खेत तालाबों की सूरत नही बदली…

बाँदा मे तालाबों पर सरकारी भ्रष्टाचार को पढ़ने के लिए नीचे दिया खबर लिंक खोले –

https://soochanasansar.in/thursday-16-jan-banda-cdo-ved-prakash-and-padmashri-umashankar-pandey-with-others-local-people-opening-turist-development-calendar-2025-but-water-conversation-district-banda-not-ground-fact-analysis-a/

@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा

  • ग्राम लुकतरा के 42 खेत तालाबों पर कुल खर्च हुआ 3747500 लाख रुपया। वहीं लिया गया जलप्रहरी सम्मान किंतु उनमें पानी नही।
  • लुकतरा के ही बीरा तालाब पर अमृत सरोवर योजना से खर्च हुए 3731776.00 लाख रुपये और तालाब की सूरत नही बदली। तालाब की मिट्टी बेच ली गई।
  • बाँदा मे मनरेगा योजना से निर्मित और गांव के पुराने तालाबों का रिनोवेशन / डिसिल्टिंग / गहरीकरण करके बने 405 अमृत सरोवर तालाब लेकिन ग्राउंड मे ज्यादातर अतिक्रमण,गंदगी का शिकार है।
  • हर घर नल जल योजना से पैलानी के सांडी, खपटिहा कला और दूरस्थ चयनित गांवों मे ओवरहेड टंकी से पेयजलापूर्ति नही होती है।
  • हर घर नल जल योजना से गांव-गांव खुदी सड़के और केन मे प्रतिबंधित पोकलैंड से रातदिन मौरम खनन से बेजार केन, ओवरलोडिंग से टूटी खदान प्रभावित गांव की सड़कें बाँदा का जलसंकट कैसे दूर करेंगे अफसर और पद्मश्री जी ?


बाँदा। चित्रकूट मंडल मुख्यालय बाँदा मे बीते शनिवार भी रानी दुर्गावती मेडिकल कालेज सभागार मे जल संरक्षण के लिए विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। बीते 23 फरवरी को भी मंडल आयुक्त की उपस्थिति मे जिलाधिकारी बाँदा श्रीमती जे.रीभा जी ने पद्मश्री उमाशंकर पांडेय के साथ जल संगोष्ठी आयोजित की थी।

शनिवार 8 मार्च को भी यही पूरी टीम पुनः मंच पर जल संगोष्ठी मे उपस्थित थी। मंडल आयुक्त श्री अजीत कुमार जी के द्वारा पिछली जल संगोष्ठी की तर्ज पर इसमे भी मेड़बंदी, पौधरोपण, तालाबों के संरक्षण की बातें दोहराई गई। वहीं जिलाधिकारी जी ने भी पानी की एक-एक बूंद को सहेजने की बात कही। पिछले 3 वर्ष से पद्मश्री पाने के बाद हर सरकारी जल संगोष्ठी मे उपस्थित पद्मश्री उमाशंकर पांडेय ने मेडिकल कालेज के बन्द सभागार मे सरकारी तरीके से जुटाई गई भीड़ मे पानी बचाने की तरकीब बतलाई। उन्होंने हर बैठक की तरह शनिवार भी अपना वक्तव्य दिया। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि एक तरफ दो सप्ताह मे मेडिकल कालेज के सभागार मे जल संगोष्ठी होती है।

वहीं दूसरी तरफ ज़िले की एक दर्जन लाल-मौरम खदानों मे रातदिन गरजती प्रतिबंधित पोकलैंड मशीन केन नदी का मर्दन कर रहीं है। इन मृत होती नदियों मे 3 मीटर से ज्यादा भारीभरकम अवैध खनन होता है। खानापूर्ति को मीडिया हलचल पर जुर्माना कार्यवाही हो जाती है लेकिन एक भी पट्टेधारकों की खदानें सीज नही होती है। क्योंकि पूरा सिस्टम सेट है और ऊपर तक जुगाड़बाजी से काम हो रहा है। वहीं लोकल मीडिया प्रबंधन ने इस मुद्दे पर मौन साध रखा है जिन्हें खदान से आसरा नही मिला वो लिख देता है।


साढ़े सोलह करोड़ खेत तालाब पर पिछले वित्तीय वर्ष मे खर्च हुआ-


मार्च से पहले वर्ष 23-2024 के वित्तीय वर्ष मे किसानों को सिंचाई संसाधन उपलब्ध कराने को चारों ज़िलों मे 2581 तालाबो मे कच्चा व 610 मे पक्का काम हुआ। शुरुआती वित्तीय वर्ष मे विभाग को 18.8 करोड़ रुपये बजट मिला। इसमे 16.55 लाख रुपया लाभार्थियों के खाते पर डाला गया। वहीं साढ़े सोलह करोड़ रुपया महज 15 दिन मे खर्च कर दिया गया। कृषि विभाग / भूमि संरक्षण विभाग की जुगलबंदी से इन 15 दिन मे बजट कोटा पूरा हुआ और विभागीय खेत तालाब ठेकेदार ने तयशुदा व्यवस्था मे किसानों को खेत खुदवा भी दिए। ठेकेदार को बाद मे भुगतान होता रहेगा लेकिन लक्ष्य पूरा कर दिया गया। यह बदनीयती हर साल कृषि विभाग के मार्फ़त खेत तालाब पर मेहरबान है। इस योजना मे लाभार्थी किसान-खेत तालाब निर्माण करने वाला ठेकेदार-विभाग का अधिकारी यह तिकड़ी योजना को बट्टा लगा रही है। ऑनलाइन खाता भुगतान प्रक्रिया से किसानों को धनराशि देकर बाद मे उन्ही से सिस्टम फिट हो जाता है।


लुकतरा ग्राम मे वर्ष 2019-20 मे बने 42 खेत तालाब मे भ्रष्टाचार-


बाँदा के ही लुकतरा गांव मे खेत तालाब योजना से पूर्व महिला प्रधान शांतिदेवी ने वर्ष 2029-20 मे 42 खेत तालाब पड़वा मिट्टी मे बनवाये। वर्तमान प्रधान तुलसीराम यादव ने भी लघु औऱ दीर्घ तालाब का लाभ लिया लेकिन उनमें पानी नही है। गांव के बीरा तालाब पर 3 करोड़ से ज्यादा रुपया खर्च हुआ, इस तालाब की मिट्टी बेच ली गई लेकिन सुंदरीकरण के नाम पर बजट ठिकाने लगा दिया गया। वहीं ज़िले मे 405 अमृत सरोवर तालाबो की ग्राउंड स्थिती दयनीय है। ग्राम सांडी, खरेई, जलालपुर, मवई, मरौली, लामा आदि दूरस्थ गांवों मे तालाबों की सूरत देखने काबिल है। वहीं भूमि संरक्षण विभाग ने एक दशक मे लाखों रुपया बन्धियों, चेकडैम मे खर्च किया। मनरेगा से आदर्श तालाब बने फिर उन्ही का अमृत सरोवर से डिसिल्टिंग कार्य हुआ लेकिन हकीकत नही बदल सकी। ग्राम पंचायतों मे कुआं सफाई पर हर गर्मी मे खेल होता है, ग्राम प्रधान, सचिव की जोड़ी बजट निकाल लेती है और सरकारी व्यवस्था विचार गोष्ठियों मे समस्या का समाधान खोजती है।


प्राचीन जल स्रोतों को खत्म करके, नदी दोहन से जल नही बचेगा-


बाँदा मे ही वर्षा जल, भूगर्भीय जल संरक्षण को बुजुर्गों ने हर गांव तक तालाबों की संरचना खड़ी की थी। ज़िले के शहर मे 11 तालाबों को विकास की दौड़ ने आज खत्म सा कर दिया है। जिसमे कंधरदास, छाबी तालाब, प्रागी तालाब,परशराम तालाब, लाल डिग्गी तालाब, स्टेडियम रोड का साहब तालाब, अतर्रा रोड का बाबू साहब तालाब इसको भूमाफिया बेचकर आवासीय मोहल्ला बना दिये, यह आंशिक बचा है। बाँदा नवाब का नवाब टैंक ही पानीदार है क्यों अभी शहर से दूर है। अतर्रा के प्राचीन तालाबों पर कब्जा है। कस्बा मटौंध, तिंदवारी के पुराने तालाब पर आज विकास का रंग और भूमाफिया की नजर है। यह तब होता है जब तालाबों पर अतिक्रमण हटाने सर्वोच्च न्यायालय व हाईकोर्ट के कई आदेश दफ्तरों की फ़ाइल गार्ड पर है। कालिंजर किले पर प्राचीन तालाब तक तो बचे नही जबकिं चंदेल कालीन जल संरक्षण का यह नायाब उदाहरण थे। ठीक वैसे ही जैसे महोबा और चित्रकूट के पुराने तालाबों की दुर्दशा ने उन्हें भी बेपानी कर दिया है। इस व्यवस्था पर यही कहा जा सकता है कि –


मेजों पर बैठकर सवालों का हल ढूढ़ते है, हम चाय के प्यालों पर अपना कल ढूढ़ते है। घरों और दफ्तरों मे लगा दिए प्लास्टिक के गमलें, विकास की बदरंगी मे मीठे फल ढूढ़ते है। बेखौफ खनन और कब्जों से हलकान जल स्रोत, लेकिन फिर भी जल गोष्ठियों मे अमृत-जल ढूढ़ते है।”

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