उम्मीदों की वैक्सीन जब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वैक्सीन के दूसरे चरण की कामयाबी की खबर

उम्मीदों की वैक्सीन
जब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वैक्सीन के दूसरे चरण की कामयाबी की खबर आई तो वैश्विक महामारी के चलते सकते में आई विश्व बिरादरी की उम्मीदें उफान मारने लगीं। इस संकट से सामान्य जनजीवन ठप हो जाने के बाद सबकी उम्मीदें कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर है ताकि दुनिया का सामान्य जनजीवन पटरी पर लौट सके। निस्संदेह महामारी का दायरा बढ़ा है तो उसका इलाज खोजने की होड़ उससे कम नहीं है। ऐसे वक्त में जबकि दुनिया में संक्रमितों का आंकड़ा डेढ़ करोड़ के पास पहुंच गया है और छह लाख से अधिक लोगों को जीवन गंवाना पड़ा है, विश्व की आर्थिकी भी चौपट हो गई है, दुनिया के वैज्ञानिक और वायरोलॉजिस्ट दिन-रात वैक्सीन की खोज में लगे हैं। यही वजह है कि बेहद श्रमसाध्य व जटिल प्रक्रिया वाली वैक्सीन की खोज की प्रक्रिया भी युद्धस्तर पर जारी है। दुनिया भर में 23 टीकों पर अनुसंधान अग्रिम चरण पर है और 140 अन्य टीकों पर काम चल रहा है। संकट की इस घड़ी में वैक्सीन के ट्रायल में भाग लेने वालों का उत्साह देखते ही बनता है। इसमें स्वस्थ और संक्रमित रह चुके लोगों को भी?शामिल किया गया है। अगर जल्दी ही कारगर टीका सामने आता है तो इसे विज्ञान और मानव की उपलब्धि माना जायेगा। अच्छी बात यह है कि जिन लोगों पर ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन का परीक्षण किया गया है, उनके कोई गंभीर साइड-इफेक्ट नजर नहीं आये हैं। इस वैक्सीन से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होने की बात कही जा रही हैै जो कोरोना वायरस को निष्प्रभावी बनाती है। इसके अलावा टी-कोशिकाओं के बढऩे के संकेत हैं जो संक्रमित कोशिकाओं का पता लगाकर उन्हें नष्ट करने में मददगार होती हैं लेकिन इसके बावजूद परीक्षण के नतीजे शुरुआती दौर के हैं और इसे बाजार में उतारने से पहले कई अन्य प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा ताकि उसके किसी भी नकारात्मक प्रभाव को टाला जा सके। उसके बाद ही इसे व्यावसायिक उपयोग के लिये बाजार में उतारा जा सकेगा।
बहरहाल, कोरोना वायरस से त्रस्त दुनिया को आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नतीजों ने उत्साहित किया है। वजह यही है कि जिन एक हजार से अधिक लोगों पर वैक्सीन का प्रयोग किया गया था, उसके नतीजे सकारात्मक व भरोसा बढ़ाने वाले माने जा रहे हैं। इन लोगों में एंटीबॉडीज व टी-सेल्स विकसित हुए हैं जो वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा तंत्र विकसित करते हैं। सवाल यह भी है कि लगातार स्वरूप बदलते कोरोना वायरस के खात्मे में वैक्सीन किस हद तक कामयाब होगी। इसकी कितनी मात्रा कारगर होगी। यह एक बार प्रयोग करने के बाद कितने समय तक सुरक्षा कवच उपलब्ध करायेगी। क्या यह जीवनपर्यंत प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर पायेगी। दरअसल, महामारी के व्यापक प्रभाव के चलते ही तमाम तरह की आशंकाओं का जन्म हुआ है। यही वजह है कि वैक्सीन बनाने की लंबी और जटिल प्रक्रिया के बावजूद पूरी दुनिया में वैक्सीन खोजने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है ताकि करीब छह माह से भय व असुरक्षा में जी रही दुनिया की आबादी को सामान्य जीवन जीने लायक बनाया जा सके। दुनिया की बड़ी आबादी को राहत देने के लिये वैक्सीन डेवलेप करने वाली संस्था बड़ी दवा कंपनियों के साथ? मिलकर व्यावसायिक उत्पादन कर सकेंगी, जिसमें सारी दुनिया में साठ प्रतिशत वैक्सीन निर्यात करने वाले भारत की बड़ी भूमिका निर्विवाद रूप से होगी। पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड से वैक्सीन उत्पादन के लिये समझौता किया है। भारत के लिये अच्छी खबर यह है कि स्वदेशी वैक्सीन भी परीक्षण के दौर में पहुंच चुकी है। आईसीएमआर और भारत बायोटैक द्वारा मिलकर तैयार की जा रही वैक्सीन के ट्रायल के लिये बड़ी संख्या में लोग उत्साह से आगे आ रहे हैं। इसके लिये हमें कुछ समय?और इंतजार करना होगा।

००

Like us share us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *