प्रदूषण छोटे शहरों की सुध कौन लेगा राज्य सरकारों की प्रदूषण….



राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी), केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की प्रदूषण के खिलाफ शुरू की गई मुहिम तमाम कोशिशों के बावजूद बेअसर साबित हो रही हैं।


लाख मना करने के बावजूद लोग कूड़े-कचरे में आग लगा देते है। सड़कों पर ट्रैफिक जाम की वजह से अपेक्षाकृत ज्यादा इंधन जलते हैं और हवा में प्रदूषण फैलता है।

ऑटो चालक पेट्रोल की जगह कई बार केरोसिन तेल डालकर ईजन चलाते हैं। पुराने व जर्जर वाहनों से उत्पन्न काला धुंआ सांस के जरिए हम निगल रहे हैं।

कहीं ईट -भ_ों के बेरोक-टोक संचालन किए जा रहे हैं तो कहीं धड़ल्ले से पराली जलाई जा रही है। वहीं विकास के बहाने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है।

जिन खुशियों के लिए हम आतिशबाजी या पटाखे फोड़ रहे हैं, वही हमें विपरीत प्रतिक्रिया के तहत लगातार बीमार बना रहे हैं।

पेड़ों की कटान और निर्माण कार्य स्वाभाविक रूप से हमें धूल और धुआं से बीमार कर रहे हैं।

शायद इसी वजह से दिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी के इस संक्रमण काल में पटाखे छोडऩे पर सख्त पाबंदी लगा दी है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने आगामी 30 नवम्बर तक दिल्ली ही नहीं नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद समेत पूरे एनसीआर में पटाखे बैन कर दिए हैं।

अगर इस नियम का कोई उल्लंघन करता पकड़ा गया तो उनपर एयर पल्यूशन एक्ट के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी।

दिल्ली या एनसीआर में प्रदूषण को लेकर सरकार की चिंता लाजिमी है। मगर क्या पूरे देश में इसके सिवाय और कहीं प्रदूषण नहीं है, बड़ा सवाल है।

सरकारी महकमा जब भी प्रदूषण की बात करता है तो दिल्ली, एनसीआर पर ही उनका ध्यान क्यों केंद्रित रहता है? क्या इन्हीं शहरों में ही प्रदूषण की समस्या है,

देश के अन्य शहरों में नहीं? कई ऐसे बड़े शहर है जहां प्रदूषण की गंभीर समस्या है। पंजाब और हरियाणा इसका ज्वलंत उदाहरण है।


जहां पराली जलाने की वजह से न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान भी प्रदूषण की मार झेल रहे हैं।

केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड या पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण देश के मेट्रो शहरों की चिंता तो करते हैं मगर छोटे या मंझोले शहरों को भूल जाते हैं।

आखिर इन शहरों के प्रदूषण की चिंता कौन करेगा? सरकारी संस्थाएं इसे लेकर सक्रिय नहीं रहतीं या वहां की जनता भी जागरूक नहीं दिखाई पड़ती।

जिस प्रकार दिल्ली में धूल-कण रोकने के लिए पानी का छिड़काव कराया जा रहा है या जगह-जगह हवा साफ करने वाली मशीनें लगाई जा रही हैं।

उसी प्रकार, क्या देश के अन्य शहरों की चिंता वहां की राज्य सरकार या केंद्र सरकार कर पाती हैं? चीन में जिस प्रकार प्रदूषण की गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए एयर क्वालिटी कंट्रोल मशीनें लगाई गई

उसी प्रकार देश के अन्य शहरों में भी यह मशीनें लगाई जानी चाहिए, जिससे खतरनाक प्रदूषण से मुक्ति मिल सके।

हालांकि एनजीटी इस मामले में काफी सक्रिय है और राज्यों को इस बारे में कई बार सख्त निर्देश जारी करते हुए मदद का भरोसा भी दिलाया है।

मगर स्थानीय सरकार एवं प्रशासन की निष्क्रियता की वजह से स्थिति जस-की-तस बनी हुई है।

बिहार की ही बात करें तो मुजफ्फरपुर शहर ने प्रदूषण के मामले में दिल्ली और लखनऊ को पीछे छोड़ दिया है।

वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो देश के कई चुनिंदा प्रदूषित शहरों में कानपुर, आगरा, बनारस, गया और पटना में हवा की गुणवत्ता काफी खराब है।

औद्योगिक शहरों में शुमार कई उत्तर भारतीय शहर भंयकर प्रदूषण की चपेट में है। वहां की हवा सर्दियों में और खराब होने वाली है।  


हवा की गुणवत्ता के हिसाब से भारत के 21 शहरों की हवा खराब है और ये सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं-

गाजियाबाद, दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, ग्रेटर नोएडा, लखनऊ, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, बागपत, जींद, फरीदाबाद, कोरोट, भिवाड़ी, पटना, पलवल, मुजफ्फरपुर, हिसार, जोधपुर, मुरादाबाद आदि।

प्रदूषण की समस्या गंभीर स्तर पर पहुंचने के कारण देश की चिंता बढ़ गई है।

पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हमारी लचर व्यवस्था भी इसके लिए जिम्मेदार है और जिम्मेदार वह सरकार भी है

, जो प्रदूषण के खिलाफ बुनियादी स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं कर रही है।

देश में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों का धुंआ, भवन निर्माण स्थलों से धूल मिट्टी का होना, टूटी सड़कें और इधर-उधर कचरा फैलाना आदि है।

राज्य सरकार जब तक जागरूक नहीं होगी तब तक प्रदूषण की समस्या से हमें निजात नहीं मिल सकता।

केंद्र के साथ राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में और गंभीर तथा योजनाबद्ध तरीके से काम करने की जरूरत है।

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